Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 60
________________ अनेकान्त और अहिंसा हिंसा और एकांगी दृष्टिकोण संवेग जितना तीव्र होता है, उतना ही प्रबल हो जाता है मिथ्या अभिनिवेश, एकांगी आग्रह । मिथ्या अभिनिवेश और एकांगी आग्रह हिंसा के मुख्य बिन्दु हैं। हम हिंसा को केवल शस्त्रीकरण और युद्ध तक सीमित करना नहीं चाहते। पारिवारिक कलह, मानवीय संबन्धों में कटुता, जातीय संघर्ष, सांप्रदायिक संघर्ष, क्षेत्रीय संघर्ष, सहानवस्थान-या तुम या हम की मनोवृत्ति – ये सब हिंसा के प्रारम्भिक रूप हैं और ये ही मानव जाति को शस्त्रीकरण और युद्ध की दिशा में ले जाते हैं। निःशस्त्रीकरण और युद्धवर्जना के सिद्धांत बहुत अच्छे हैं किन्तु सबसे पहले हिंसा के प्रारम्भ बिन्दुओं पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है। मिथ्या अभिनिवेश समाज को क्रूरता की रेखा तक जाता है, हिंसा के द्वार खुल जाते हैं। अभिनिवेश को कम करने के लिए अनेकांत एक महत्त्वपूर्ण विकल्प है। अनेकांत के आधार-सूत्र अनेकांत अभिनिवेश और आग्रह से मुक्त होने का प्रयोग है। उसके मूलभूत सिद्धांत पांच हैं: १. २. ३. ४. सप्रतिपक्ष सप्रतिपक्ष सह-अस्तित्व स्वतंत्रता सापेक्षता समन्वय ४९ दार्शनिक पक्ष - इस विश्व में वही अस्तित्व है, जिसका प्रतिपक्ष है। अस्तित्व सप्रतिपक्ष है यत् सत् तत् सप्रतिपक्षं। कोई भी अस्तित्व ऐसा नहीं, जिसका प्रतिपक्ष न हो । व्यावहारिक पक्ष – प्रतिपक्ष अपने अस्तित्व का अनिवार्य अंग है, पूरक है, इसलिए उसे शत्रु मत मानो । उसके साथ मित्र का सा व्यवहार करो। किन्तु राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों में परस्पर आदर का व्यवहार नहीं है, शत्रु जैसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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