Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 46
________________ ऐसे मिला मुझे अहिंसा का प्रशिक्षण सामने का वातावरण आवेश और उत्तेजना से भरा हुआ था। उस पक्ष से रास्ता छोड़ने की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। इधर हमारे पक्ष के लोगों में भी उत्तेजना बढ़ने लगी। उनके होंठो से फिसलते हुए कुछ स्वर मेरे कानों तक पहुंचे-"हम रास्ता क्यों छोड़े? क्या हम कमजोर है?" ईश्वरचन्दजी चोपड़ा,जो बहुत प्रभावशाली व्यक्ति थे, नहीं चाहते थे कि हम रास्ता छोड़ें। मैंने सारी स्थिति का आकलन किया और एक निष्कर्ष पर पहुंच गया। लोग आपस में बतिया रहे थे। और मैं रांगड़ी चौक की ओर मुड़ गया। चाहे-अनचाहे सब लोग मेरे पीछे-पीछे आ गए । एक दुर्घटना होते-होते बच गई। महाराजा गंगासिंहजी के पास यह संवाद पहुंचा । उन्होंने स्थिति की जानकारी पाकर उस पर टिप्पणी करते हुए कहा- आचार्य तुलसी, अवस्था में छोटे हैं, पर उन्होंने काम बहुत बड़ा किया है । ऐसा करके उन्होंने बीकानेर की शान रख ली। यदि वे ऐसा नहीं करते तो न जाने कितने लोग कुचल जाते,मर जाते और एक भारी हंगामा हो जाता।" मैं अनुभव करता हूं कि पूज्य कालूगणी के बीकानेर चातुर्मास की सहिष्णुता ने ही मुझे ऐसा सजीव प्रशिक्षण दिया। उसके कारण मैं सहिष्णुता के प्रभाव को आंक सका और अपने जीवन में उसका अनेक बार प्रयोग कर सका। विरोध को विनोद समझना ____ मैंने एक बार लिखा-जो हमारा हो विरोध,हम उसे समझें विनोद ।” विरोध को विनोद समझना साम्ययोग है। इसकी साधना अहिंसा की विशिष्ट साधना है। इसका सक्रिय प्रशिक्षण मुझे मालवा की यात्रा में मिला। पूज्य कालूगणी जावरा और रतलाम-इन क्षेत्रों की यात्रा पर थे। वहां पर जैन सम्प्रदाय के व्यक्तियों ने तेरापंथ के अहिंसा विषयक सिद्धान्त की कटु आलोचना ही नहीं की, उसके विरोध में सड़कों और दीवारों पर इतने पैम्पलेट चिपकाए कि नगर का वातावरण आन्दोलित हो उठा। __पूज्य कालूगणी ने जनता को समझाने का प्रयल किया, सिद्धान्तों का स्पष्टीकरण किया। किन्तु आक्षेप के प्रति आक्षेप और निन्दात्मक पैम्पलेट के प्रकाशन का कोई प्रयल नहीं किया। सारे विरोध को बड़ी शान्ति के साथ झेला । रतलाम के एक पंडित ने कुछ दिनों बाद पूज्य कालूगणी से कहा-“मैं पूरे घटनाचक्र को तटस्थ भाव से देख रहा था । आपने विरोध का उत्तर विरोध से नहीं,शान्ति से दिया इसलिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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