Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 30
________________ शांति और अहिंसा-उपक्रम बाह्यजगत् में प्रशिक्षण के तीन बिन्दु बाह्यजगत् में अहिंसा के प्रायोगिक प्रशिक्षण की भूमिका बहुत विस्तृत है। मुख्य रूप में उसके तीन बिन्दु हो सकते हैं • मानवीय संबंधों का परिष्कार या विकास । • प्राणी जगत् के साथ संबंधों का विस्तार। • पदार्थ जगत के साथ संबंधों की सीमाएं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह समूह में रहता है। वहां वह अनेक प्रकार के संबंध जोड़ता है। संबंध जोड़ना कोई कठिन काम नहीं है । कठिन है उनका समुचित निर्वाह । कठिनाई का कारण है मनुष्य की स्वार्थपरायण मनोवृत्ति । स्वार्थ की आंख से देखने वाला और स्वार्थ की धरती पर चलने वाला परमार्थ की बात कैसे सोच सकता है? अहिंसा परमार्थ का दर्शन है । अहिंसा में विश्वास करने वाला व्यक्ति संबंधों की आंच पर स्वार्थ की रोटी नहीं सेक सकता। स्वार्थवाद या व्यक्तिवाद के कारण सम्बन्धों के संसार में जो जहर घुल रहा है, उससे बचने के लिए अहिंसा का प्रशिक्षण अत्यन्त आवश्यक है। मानवीय संबंधों का परिष्कार __मनुष्य के दृष्टिकोण को दो रूपों में देखा जाता है-मानवीय और अमानवीय । एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति कैसा संबंध या.व्यवहार होना चाहिए, नीतिसूत्रों में यह बात निर्धारित होती है। उसके अनुसार व्यवहार करने वाले व्यक्ति का दृष्टिकोण मानवीय कहलाता है । जो व्यक्ति दूसरे के हितों की उपेक्षा करता हो, उन्हें कुचल देता हो,किसी का शोषण करता हो या सताता हो, यह पाशवी या दानवी वृत्ति कहलाती है। इस वृत्ति को बदलने से ही मानवीय संबंधों का परिष्कार हो सकता है। ___मानवीय संबंधों को कई ईकाइयों में विभक्त किया जा सकता है । हम यहां मुख्य रूप से तीन इकाइयों की चर्चा कर रहे हैं-पारिवारिक संबंध, सामाजिक संबंध और व्यावसायिक संबंध। पिता-पुत्र, पति-पली, भाई-भाई, सास-बहु, देवरानी-जेठानी, मां-बेटी आदि पारिवारिक संबंध हैं। इनमें मानवीय दृष्टिकोण का विकास हो तो किसी को मारने,पीटने,सताने या प्रताड़ित करने का प्रसंग उपस्थित नहीं हो सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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