Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 31
________________ विश्व शान्ति और अहिंसा सामाजिक संबंधों का दायरा बहुत विस्तृत होता है । पड़ौसी से लेकर दूर-दराज बसने वाले समाज के हर व्यक्ति के साथ किसी न किसी रूप में संबंध रहता है । संबंधों की स्थापना में स्वार्थ की प्रेरणा न हो,और स्वार्थ में बाधा पहुंचने पर संबंध तोड़ने की परिस्थिति भी पैदा न हो, यह अहिंसा की प्रेरणा है । जाति, रंग, लिंग,वर्गभेद आदि को आधार बनाकर मनुष्य-मनुष्य के बीच जो दूरियां बढ़ती जा रही हैं वे किसी न किसी रूप में हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं। इन सब भेदों से ऊपर एक तत्त्व है,वह है मनुष्यता। “यह भी मनुष्य है, मैं भी मनुष्य हूं । मै इससे जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा रखता हूं, इसको भी मुझसे वैसी ही अपेक्षा है" । चिन्तन के इस धरातल पर ही मानवीय संबंधों का विकास संभव हैं। मालिक-कर्मचारी, व्यापारी-मुनीम, स्वामी-सेवक, भागीदार-भागीदार आदि संबध त्यवसाय जगत् से जुड़े हुए हैं । इन संबंधों में मानवीय दृष्टिकोण न हो तो मालिक शोषण करता है और श्रमिक श्रम से जी चुराता है । चार डिग्री बुखार में काम करने की याध्यता और बहानेबाजी की आदत इसी परिवेश में पलती है। इस क्षेत्र में सहानुभूति और संविभाग के प्रशिक्षण से अनेक प्रकार की समस्याओं से राहत मिल सकती है। प्राणी-जगत् के साथ संबंधों का परिष्कार मनुष्य अपने आपको संसार का सबसे श्रेष्ठ प्राणी समझता है । इसी कारण अन्य प्राणियों के प्रति उसका दृष्टिकोण बहुत उदार नहीं होता। वह अपने जीवन के लिए प्राणियों की हिंसा करता है । हिंसा के दो रूप हैं-अपरिहार्य और परिहार्य । उसके द्वारा की जा रही अपरिहार्य हिंसा भी हिंसा ही है । उसे अपरिहार्यता की दृष्टि से एक ओर किया जा सकता है। किन्तु अपरिहार्य या अनावश्यक हिंसा प्राणी-जगत् के प्रति उसके अमानवीय दृष्टिकोण का परिणाम है। प्राणी-जगत् के साथ मनुष्य के संबंध कैसे होने चाहिए-इस संदर्भ में मनुष्य को प्रशिक्षण दिया जाता तो परिहार्य या अनावश्यक हिंसा नहीं होती,प्राणियों के प्रति निर्दय व्यवहार नहीं होते और मानव समाज में विलासिता नहीं पनपती । क्रूर हिंसा-जनित प्रसाधन सामग्री और परिधानों का उपयोग वे ही लोग कर सकते हैं जो सब प्राणियों के साथ तादात्म्य का अनुभव नहीं करते । कुछ लोग मनोरंजन के लिए पशुओं को आपस में लड़ाते हैं। थोडे से लोगों का क्षणिक मनोविनोद प्राणी-जगत् के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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