Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ अहिंसा का प्रशिक्षण २७ • व्यक्ति को संयम और आध्यात्मिकता की शिक्षा दी जाए। भौतिक शिक्षा के बिना गृहस्थ-जीवन का औचित्य पूर्ण निर्वाह नहीं होता, इसलिए सामाजिक प्राणी उसकी उपेक्षा नहीं कर सकता, नियंत्रण रखने के लिए उसके साथ आध्यात्मिक शिक्षा का होना जीवन की अनिवार्य आवश्यकता • अपना सिद्धान्त दूसरे पर जबरदस्ती न थोपा जाए। • जातिवाद या साम्प्रदायिक संघर्षों को प्रोत्साहन न दिया जाए। अहिंसा के विषय में चिन्तन और मंथन चलता गया। ईसवी सन् १९४९ में अणुव्रत आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। उसे मैं अहिंसा के प्रशिक्षण की दिशा में आवश्यक चरण मानता हूं । वत-संकल्प शक्ति का प्रयोग है । अहिंसा के विषय में हमारा संकल्प यदि परिपक्व नहीं है तो उसके आचरण में सफलता की संभावना नहीं की जा सकती। अणुव्रत आन्दोलन अहिंसा का आन्दोलन है। अहिंसा में निष्ठा उसकी आधारशिला है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। इससे पहले वह वैयक्तिक प्राणी है। वह अपने साथ कैसा और कैसे व्यवहार करे,इसकी आध्यात्मिक व्याख्या का नाम है, अहिंसा। वह सामाजिक प्राणी भी है, इसलिए वह समाज के साथ कैसा और कैसे व्यवहार करे,समाज के साथ उसका संबंध कैसा हो, इसकी आध्यात्मिक व्याख्या का नाम है, अहिंसा । अणुव्रत में इन दोनों पक्षों पर विचार किया गया है। अपनी हिंसा भी न हो और दूसरों की हिंसा भी न हो । जो अपनी हिंसा से नहीं बचता, वह दूसरों की हिंसा से कैसे बच सकता है ? हम अहिंसा के प्रशिक्षण की बात करते समय अपने प्रति की जाने वाली हिंसा से बचने की बात को गौण न करें। लोभ, भय,क्रोध आदि के आवेश अपने प्रति की जाने वाली हिंसा के हेतु हैं। इस आवेश के परिष्कार का प्रशिक्षण अंहिसा के प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। ___आज निरपराध की हत्या एवं अनर्थ (प्रयोजन शून्य) हिंसा बढ़ रही है। इसका मुख्य हेतु है--व्यक्ति अपने प्रति होने वाली हिंसा के प्रति सजग नहीं है। व्यावसायिक हिंसा, मनोरंजन और प्रसाधन के लिए की जाने वाली हिंसा का संबंध मुख्यत: व्यक्ति से होता है। व्यक्ति की मनोवृत्ति का परिवर्तन हुए बिना उस हिंसा का विरोध संभव नहीं है । अणुव्रत आन्दोलन इस दिशा में गतिशील है कि व्यक्ति में हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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