Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ शांति और अहिंसा-उपक्रम - गणाधिपति तुलसी अंधकार था, है और रहेगा। इसे दूर करने के लिए मनुष्य ने दीया जलाया, आज भी जलता है और भविष्य में जलता रहेगा। अंधकार को सत्ता कालिक है तो प्रकाश का अस्तित्व भी त्रैकालिक है। ऐसा कभी नहीं होता, जब अंधकार हो और प्रकाश का कोई उपाय न हो । अंधकार जितना सघन होता है,प्रकाश की अपेक्षा उतनी ही अधिक होती है । अंधकार रहेगा ही—यह सोचकर मनुष्य कभी दीया जलाना बंद नहीं करता। अंधकार के विरुद्ध उसका संघर्ष तब तक चलता रहेगा जब तक उसे प्रकाश की आवश्यकता रहेगी। हिंसा थी, है और रहेगी। अहिंसा के लिए प्रयल हुआ है, हो रहा है और होता रहेगा। हिंसा और अहिंसा--दोनों की सत्ता कालिक है । हिंसा जितनी प्रबल होगी, अहिंसा के लिए उतना ही तीव्र प्रयत्न करना होगा। संसार से हिंसा कभी समाप्त नहीं होगी,यह सोचकर मनुष्य की अहिंसक चेतना ने कभी उच्छवास लेना बंद नहीं किया। हिंसा के मुकाबले में अहिंसा की शक्ति कम नहीं है । अपेक्षा है उस शक्ति को जगाने की। शक्ति का जागरण तभी संभव है,जब उसका बोध हो,शोध हो,प्रशिक्षण हो और प्रयोग हो। संभव है अहिंसा का प्रशिक्षण हिंसा मनुष्य के संस्कारों में रहती है। निमित्तों का योग पाकर वह प्रकट होती है। आचारांग सूत्र में हिंसा के तीन कारण बताए गए हैं-प्रतिशोध, सुरक्षा और आशंका । कारण कुछ भी रहे हों,हिंसा का प्रशिक्षण नियमित रूप से चलता है। उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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