Book Title: Vasudev Chupai Author(s): Rasila Kadia Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ 58 अनुसंधान-२८ ते जाणि अधिकुं दुख धरइ, नंदिषेण मनि चिंता करइ हुं अभागीउ सरजीउ ईसिउ, माहरउ माणसनुं भव किसउ ॥१६।। मझ देखइ स्त्री थूकइ बहू, मझ देखइ मुख मोडइ सहू हिव मझ मरण तणी छइ आहि, इम चीतवतुं गयउ वन माहि ॥१७|| ऊंचा पर्वत उपरि चडइ, खोह माहि जव हेठउ पडइ तव मुनिवर तिहां बोलइ एकं, कुमरण म करि वछ अविवेक ||१८।। ढाल वयण सुणी मुनि पासइ, नंदिषेण गयउ विमासइ पूरव करम प्रकासइ, तुंइ मुनिवर भासइ ॥१९॥ करम न छूटइ ए कोई, राजा हरिचंद जोइ डुंब तणइ घरि नीर, वहइ ते साहस धीर ॥२०॥ नामई ब्रह्मदत्त भणीइ, चक्रव्रती अंध ते सुणीइ सनतकुमार ज उत्कुष्ट, हीअडइ न थयुं ते दुष्ट ।।२१।। करमि तीर्तंकर नडीआ, पांडव वनमाही पडीआ कर्मह एवडी आहि, राम भमइ वनमाहि ॥२२॥ जउ तु मरइ अखूटइ, परभवि करम न छूटई लाख चउरासीअ भमीउ, काल अनंत नीगमीउ ॥२३॥ कीजइ जिणवर धम्मो जीव लहइ शिवशर्म नरभव दुर्लभ अपार, करि वछ पुण्य ते सार ॥२४॥ चउपड़ ऋषि प्रतिबोधि चारित्र लेई, निर्मल दुक्खर तपह करेई हिअडइ उपशम आणइ घणउं, मुनिवर करम खपइआ पणउ ॥२५॥ न सकइ डीलिं मुनिवर जेअ, मई वेआवच्च करिवलं तेअ एहवउ नियमनि निश्चयउ धरइ, तेहनी इंद्र प्रसंसा करइ ॥२६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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