Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan
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July-2004
जरासंध कहावर एकवार, समुद्रविजयनइ एह विचार सीमाहेडउ सोरीपुर पासि, एकइ गामि वसइ छइ वासि ॥ ७० ॥ माहरि आण न मानइ तेअ, एहनइं बांधी आणई जेअ जीवयस्था मझ पुत्री सारी, तेहनइ परणावंड सुविचार ॥७२॥
दूतमुखि ते एहवुं सुणी, चितइ सोरीपुरनउ धणी जरासंधनी विसमी आण, कीधी जोईइ ते परमाण ||७२ ||
कटक सजाइ राय गहगहइ, तव वसुदेव कुमर इम कहइ स्वामी एह काज मझ कहवु, तुम्हे सुखइ समाधई रहउं ॥ १७३॥
तुं नान्हउ ए वात अबूझ, दोहिलू करीय न जाणइ झूझ दडे रमतां छइ सोहिलउ, मस्तक झूझ सवे दोहिलूं ॥ ७४ ॥
इम कहीउं मानइ नहीं खेव, कंस सहित चालिउ वसुदेव सीमाहंडेउ छइ विसमइ ठामि, कटक लेइ गिउ तीणइ ठामि ॥७५॥
बिहु पासे तव मंडिडं झूझ, माहोमाहि प्रकासइ गूझ सुभट सवे मचकोडिआ जिसई, वसुदेवइ आकीउ तिसइ ॥ ७६ ॥
ताकीनइ एक मूंकिउ बाण, सीमाहडआ भागउ सपराण कंस ते अति बल बोलतुं, रथि बांधी घालिउ जीवतुं ॥७७॥
कटक लेइ पाछउ वलिउ, सोरिपुर आविनइ मिलिउ समुद्रविजय साहमुं आविउ, वसुदेव हरीखड़ बोलावीउ ॥७८॥ नगर माहि कीधउ परवेस, नगर महोत्सव हुइ सविसेस समुद्रविजय तेडइ एकंत, सुणि वसुदेव कहुं वृत्तं ॥ ७९ ॥ तुझ गियां तापस आविउ छेक, ज्ञानवचन कहीउं तिणि एक जीवयशा कन्या पापिणी, बिहुं वंशनइ क्षयकारिणी ॥८०॥
जरासिंधु तुझ देसिइ सखे, ते तुं कन्या परण रखे कंसजनइ दिवरावे सिरइ, सीगिइं सांकल जिम ऊतरइ ॥८१॥
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