Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan
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सीहलंकी सुंदरि इसीओ, ऊरु थंभकेरी कलहंसी ए हेम हुइ मही महमहंत, सिणगारी जउ इसी रूपवंत || १६२ || कुंअर वरघोडइ चडइ चडइए, वार्जित्रई अंबर गडगडइ ए सकल कला जिम चंदलउं ए, तिम कुंअर हिसिउं अवनितिलउ ए ॥ १६३॥ धवल मंगल दीइ अंगनाओ, सवि भाव धरइ अंगना ए तस आगलि नाचई सोलही ए, नर नारी जोवा सवि मिलइ ए || १६४॥ लाडण तोरणे आविउ ए तव सूहवि हरखि वधावीउ ए चतुर चउरीसीहि आवीउ ए तव विधिकन्या परणावीउ ए ॥ १६५ ॥ लाख गाइ तणउ जेअ स्वामि, करमोचनि आपीउं नंदन नामि कंस कुमर सहू संचरीओ, हिव हरखि आव्या मथुरापुरी || १६६ ॥
चउपड़ कंसि कन्या परणावा तणउ, नगर महोच्छव मांडिउ घणउं मदर्भिभल जीवयशा नारि, अयमत्तउ मुनि आविउ बार (रि) || १६७॥ मदवंतीणी मुनि राय देउर विगोइ कीधइ वाय
तव मुनि कोपि चडिउ इम कहइ, गहिली गर्व किसीउ ए वहइ ॥ १६८ ॥ देवकी नारि गर्भ सातमउ, अति बलवंत हूसिइ ए समुं तुझ भरतार अनइ तुझ तात, बिहुं तणउ करसिइ उपघात ॥ १६९ ॥
अनुसंधान- २८
आभ पडल जिम वाइ टलइ, सिंघनादि मयगलमद गलइ जळ सिंचीउ जिम दव उल्हाइ, जिम रवि ऊगिइ रयणी जाई || १७०||
जिम निर्धन नर मूंकइ माण, रणि जिम कायर पडइ परांण तिम मुनि वयण तणइ परमाणि, जीवयशान हुइ मदहांणि ॥ १७१ ॥ जइनइ कंस कहिउं ततकाल, कंसइ माग्या सातइ बाल वसुदेव आप उत्तम पणइ, क्षुद्र भावि नवि हिअडइ सुणइ || १७२॥
दूहा
द्रोह करइ मित्रह तणउ, ए दुर्जन आचार
रोस न आणई तेहनिई, ए सज्जन आचार || १७३ ||
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