Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ 72 सीहलंकी सुंदरि इसीओ, ऊरु थंभकेरी कलहंसी ए हेम हुइ मही महमहंत, सिणगारी जउ इसी रूपवंत || १६२ || कुंअर वरघोडइ चडइ चडइए, वार्जित्रई अंबर गडगडइ ए सकल कला जिम चंदलउं ए, तिम कुंअर हिसिउं अवनितिलउ ए ॥ १६३॥ धवल मंगल दीइ अंगनाओ, सवि भाव धरइ अंगना ए तस आगलि नाचई सोलही ए, नर नारी जोवा सवि मिलइ ए || १६४॥ लाडण तोरणे आविउ ए तव सूहवि हरखि वधावीउ ए चतुर चउरीसीहि आवीउ ए तव विधिकन्या परणावीउ ए ॥ १६५ ॥ लाख गाइ तणउ जेअ स्वामि, करमोचनि आपीउं नंदन नामि कंस कुमर सहू संचरीओ, हिव हरखि आव्या मथुरापुरी || १६६ ॥ चउपड़ कंसि कन्या परणावा तणउ, नगर महोच्छव मांडिउ घणउं मदर्भिभल जीवयशा नारि, अयमत्तउ मुनि आविउ बार (रि) || १६७॥ मदवंतीणी मुनि राय देउर विगोइ कीधइ वाय तव मुनि कोपि चडिउ इम कहइ, गहिली गर्व किसीउ ए वहइ ॥ १६८ ॥ देवकी नारि गर्भ सातमउ, अति बलवंत हूसिइ ए समुं तुझ भरतार अनइ तुझ तात, बिहुं तणउ करसिइ उपघात ॥ १६९ ॥ अनुसंधान- २८ आभ पडल जिम वाइ टलइ, सिंघनादि मयगलमद गलइ जळ सिंचीउ जिम दव उल्हाइ, जिम रवि ऊगिइ रयणी जाई || १७०|| जिम निर्धन नर मूंकइ माण, रणि जिम कायर पडइ परांण तिम मुनि वयण तणइ परमाणि, जीवयशान हुइ मदहांणि ॥ १७१ ॥ जइनइ कंस कहिउं ततकाल, कंसइ माग्या सातइ बाल वसुदेव आप उत्तम पणइ, क्षुद्र भावि नवि हिअडइ सुणइ || १७२॥ दूहा द्रोह करइ मित्रह तणउ, ए दुर्जन आचार रोस न आणई तेहनिई, ए सज्जन आचार || १७३ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44