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हर्षकुल रचित वसुदेवचुपइ
रसीला कडीआ
ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरना ग्रन्थभण्डारमाथी सू. नं. ८४६० नंबरना गुटकामांथी, पृ. ५१ थी ६० पर्यन्तना पृष्ठोमां आवेली प्रस्तुत कृति 'वसुदेव चुपइ' ने श्री लक्ष्मणभाई भोजकना मार्गदर्शन हेठळ तैयार करवामां आवी छे. १० पृष्ठ अने ३५८ कडीयुक्त आ कृति वसुदेवचरित्र तरीके हाल उपलब्ध तेमनां चरित्रोमां एक विशेष उमेरारूप कृति छे. वळी, तेमां प्रशस्ति तथा पुष्पिका आपेल होई, तेमां रचनाकारे पोताना नाम तथा गुरु परंपरानो उल्लेख करेल होइ तथा रचना संवत आपेल होवाथी कृति मूल्यवान बनेल छे. आ ज रीते लिपिकारे पण पोतानुं नाम, स्थळनाम तथा लखवानो हेतु जणाव्यो छे.
वि.सं. १५५७मां लास नगरमां तपागच्छना शणगारसमा श्री लक्ष्मीसागरसूरिना शिष्य सुमतिसागर - हेमविमलना शिष्य कुलचरणना सुपंडित शिष्य हरखकुल अर्थात् हर्षकुले प्रस्तुत कृति 'वसुदेवचुपइ' रचेल छे अने सिरोहीनगरमा भट्टारक विद्यासागरसूरिना लक्ष्मीतिलकसूरिना शिष्य श्री मुनि कर्मसुन्दरे आ कृतिने पोताना गच्छ माटे लखी होवानुं जणाव्युं छे. तेओए लेखन संवत आपी नथी कृति राग गुडीमां रचाई होवानुं अन्ते जणावेल छे.
जैन गूर्जर कविओ भा. ७नी संशोधित आवृत्तिमां वसुदेव चोपाइ तथा रासनी माहिती आपेल छे तेमां आ कृतिनो उल्लेख छे अने तेना पहेला भागमां पृ. २१४ उपर रचनाकार श्रीहर्षकुलनो परिचय आपेल छे. आ कविओ 'बन्धहेतूदयत्रिभंगीसूत्र' रचेल छे. हर्षकलशना नामे पण आ कृति मळे छे.
प्रस्तुत कृतिमा केटलेक स्थाने भ्रष्ट पाठ मळता होई, पूर्वापर सम्बन्धे अनुमानित शब्दने | ] चोरस कौंसमां मूकेल छे पण कडी ३०९ मां एक अक्षर भ्रष्ट होइने अवाच्य रह्यो छे त्यां खाली जग्या राखी खाली चोरस कौंस करेल छे.
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कथासार :
सौरिपुरनगरमा हरिवंशना यदुनरेन्द्र सूरराय तथा तेमनी पटराणी सूरप्रियाने अन्धकवृष्णि तथा भोज़कवृष्णि नामना बे पुत्रो हता. अन्धकवृष्णिने अनुकमे समुद्रविजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, धरण, पूरण, हिमवंत, अचल, अभिचन्द्र अने दसमा वसुदेवकुमार; जेओ दसार तरीके ओळखाता, एवा दस दीकराओ हता. भोजकवृष्णिने वे दीकरा पैकी एक उग्रसेन, बीजा देव. समुद्रविजय सोरिपुरमा राज्य करता हता त्यारे पोताने त्यां पधारेला ज्ञानी गुरुने वन्दन करवा गयेला अने पोताने प्रिय एवा नाना रूपवंता भाई वसुदेवना मनमोहक रूप विशे पृच्छा करतां तेओने एना पूर्वभवनी माहिती प्राप्त थाय छे.
अनुसंधान- २८
वसुदेव पूर्वभवे नन्दिषेण तरीके दुर्भागी अने कुरूप बाळक हतो जेना मातपिता बाळपणमां मृत्यु पाम्या होवाथी मामाने त्यां आश्रये रहेवुं पडेलुं. त्यां मामानी सात दीकरीओमांथी एकेय तेनी साथे परणवानी ना पाडतां अने मामाए अन्य कन्या शोधवा प्रयत्न करवा छतां क्यांय ठेकाणुं न पडतां आत्महत्या करवा प्रवृत्त थाय छे त्यारे मुनिनो मेळांप थतां धर्म पामे छे. साधुओनी वैयावच्च करवानुं व्रत लई सुपेरे पाळतां, देवे उग्र कसोटी करी अने ते तेमांथी पार उतरे छे. अन्तकाळे तेणे रमणीजनने वल्लभ बने तेवुं निआणुं बांधेल तेथी वसुदेव मनमोहक रूप साथे जन्म्यो छे.
मथुरामां राज्य करता उग्रसेन राजाए रामवाडीमां तापस जोतां मासखमणना पारणा माटे ऋण ऋण वार बोलावी, भिक्षा न आपतां, तापसना कोपनो भोग बने छे अने तेने त्यां ज अवतरे छे अने रायमांसनो दोहद थतां राणी धारिणी जन्मतांवेंत आवा दीकराने कांसानी पेटीमां सुवर्ण अने पुत्रनी ओळख साथे यमुना नदीमां पधरावी दे छे जे सुभद्र शेठने त्यां कंस तरीके उछरे छे. पण बाळपणनां तेना क्रूर तोफानोथी वाज आवी ते राजा समुद्रविजय पासे आवीने, तेना जन्मनी वात कहेतां, वसुदेव आ बाळक कंसने प्रीतिपूर्वक पोतानी पाते राखे छे. धारिणीनो बीजो पुत्र ते अइमत्त कुमार. मगधदेशना बृहद्रथ राजानो पुत्र जरासन्ध सोरीपुरना समुद्रविजयने जणावे छे के पोतानी आण न माने तेने बांधीने लावे तेवी व्यक्तिने ते पोतानी
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दीकरी जीवयशा परणावशे. कंस तथा वसुदेव लडवा जाय छे अने समुद्रविजयनी सूचनाथी कंसना पराक्रमने आगळ धरी वसुदेवने बदले कंसने जीवयशा परणाववामां आवे छे.
वसुदेवकुमार नगरमा परिभ्रमण करता रहे छे त्यारे तेना रूपथी स्त्रीओ एटली तो खेंचाय छे के महाजनो समुद्रविजय पासे आवी, स्त्रीओनी लाज लोपाती होवानुं जणावी योग्य उपाय करवानुं जणावे छे. तेथी राजा वसुदेवने ते कृश थया होवानुं बहानुं बतावी राजमहेलमां ज रहेवानुं जणावे छे. पण एकवार सुगंधी द्रव्य लईने जती दासी पासेथी वळगीने ए द्रव्य लई लेतां, समुद्रविजये महेलमा रहेवानी सजा आवा स्वभावने कारणे करी छे तेनी वात जणावी देतां दुभायेला वसुदेव नगर बहार जई, एक मडईं चितामां मूकी, चिठ्ठी लखी, पोते आत्महत्या करी छे ते जणावी गुप्तवेशे नीकळी पडे छे. बांधव समुद्रविजय विलाप करे छे.
वसुदेव एमनी आ भ्रमणयात्रामां कनकवती, विद्याधरी, रोहिणी, देवकी जेवी अनेक कन्याओ स्वबळे परणे छे, अनेक पुत्रोना पिता बने छे. रोहिणी साथेना लग्न वखते जरासन्ध अने कंस स्वयंवरमां उपस्थित छतां वसुदेव पसंद कराता युद्ध थाय छे अने त्यां समुद्रविजय भाई वसुदेवने पिछाने छे अने ते मर्यो नथी जाणी आनन्द पामे छे. कंस ज्यारे ज्ञानी भगवंत द्वारा वसुदेवना दीकरा थकी पोता तथा ससरा जरासन्ध- मृत्यु थशे तेम जाणे छे त्यारे कपट करीने बेन देवकीना साते गर्भने जन्मता वेंत मांगी ल्ये छे. कंसे पिता उग्रसेन तथा माता धारिणी पर तो वेर लीधुं ज हतुं. पिताने काष्ठपिंजरमां पूर्या हता.
देवकीना सात पुत्रोमांना छ पुत्रो भद्दिलपुरिनी सुलसाना मृत बाळकोने बदले आपवामां आव्या अने कंसे ते छ मृत बाळकोने शिला पर पटकीमे मारी नांख्या. सातमा गर्भने बाळकने देवने प्रभावे ऊंघेला चोकीदारनी नजरमांथी चूकावीने नंदनारीनी जन्मेली बेटीना बदलामां मूकवामां आवे छे. नारी थकी मारुं मृत्यु नथी ज एम गणीने आ दीकरी, मात्र नाक छेदीने पाछी आपवामां आवे छे. पर्व निमित्ते देवकी गोकुल पुत्रने मळवा जाय छे. गोकुळमां कृष्ण नामधारी आ बाळक शैशवमां ज पोताना पराक्रमो दाखवतो
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मोटो थई रह्यो छे. कंस ज्ञानीनां वचनो द्वारा पोतानो वैरी हजु जीवतो जाणीने ओने मारवा प्रवृत्त थाय छे. कृष्णजन्म समये समुद्रविजयने त्यां नेमिकुमारनो जन्म थयो होय छे.
सत्यभामाना स्वयंवरना मिषे बन्ने भाई बलदेव-कृष्ण बे मल्लोने हरावे छे, दुर्दान्त अश्व अने वृषभने वश करे छे. अने अन्ते कंसनो वध करीने उग्रसेनने काष्ठपिंजरमांथी छोडावे छे.
_____ कंसपत्नी जीवयशा पोतानाभाई जरासन्ध पासे जई पतिना खून- वेर लेवाने कहे छे. आ बाजु कृष्ण सत्यभामा साथे परणे छे. ए समये नैमित्तिकने पूछतां जणावे छे के यादवो साथे तमे सौ दक्षिण दिशामां जाव. सत्यभामाने युगल पुत्र जन्मे त्यां वसी जजो. आम दशारो यादवकुल साथे दक्षिणे जाय छे. विन्ध्याचल सुधी जरासन्धपुत्र कालक तेओने मारवा पीछो करे छे. यादव-कुलदेवीनी सहायथी कालक चितामां पडीने सळगी जाय छे. सत्यभामा पुत्रोने जन्म आपे छे त्यां धनदनी सहायथी सुवर्णनी द्वारिका नगरीनुं निर्माण थाय छे. द्वारिकानी प्रशंसानी वात सांभळतां, जरासन्ध जाणे छे के यादवो हजु जीवे छे तेथी बन्ने वच्चे युद्ध भीषणतया जामे छे जेमां जरासन्धनो नाश थाय छे. आ युद्धमा नेमिनाथनी सहाय मोटी होय छे.
एकदा आयुधशाळामां पहोंचेला नेमिकुमार कृष्णनो शंख वगाडे छे. पोतानो प्रतिस्पर्धी जन्म्यो के शुं तेनी अवढवमा कृष्ण भाई नेमिनी बाहुबल परीक्षा ले छे अने तेना सामर्थ्यने ते पिछाणे छे. कृष्णने जाणवा मळे छे के ते निरागी छे, राज्यमां तेने रस नथी. आम छतां, पत्नीओनी मदद लई जळक्रीडाने बहाने लग्न माटे तैयार न थयेला छतां नेमिकुमार तैयार छे तेवू पोतानी स्त्रीओ जणावे छे त्यारे राजुल साथे लग्न नक्की करे छे. जान तेडी जतां, पशुओनो पोकार सांभळी, तेओने छोडावी, तोरणथी पाछा फरेला नेमिकुमार दीक्षा ले छे. राजुल पण विलाप बाद, नव भवना स्नेहीने मार्गे ज छे. मोक्षमार्ग ज पाळे छे,
मदथी छकेला कृष्णपुत्रो द्वारिका तथा यादवविनाशनुं कारण बने छे, आ पहेलां देवकी पोताना जन्मतावेंत छोडेला, साधु बनेला छ पुत्रोने जोईने ज अपार मातृत्वनो अनुभव करे छे अने स्तन्यपानथी वंचित रहेल देवकी
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गजसुकुमालनी माता बने छ जे यौवनवये ज दीक्षा लई, ससरा द्वारा माथे सगडीना हारथी, समता थकी कर्म खपावी मोक्ष पामे छे. द्वारिकानी पडती थतां, कृष्ण-बलराम वनमां जाय छे ज्यां कृष्ण माटे पाणी लेवा जतां बलरामनी गेरहाजरीमां जराना बाण द्वारा कृष्ण मृत्यु पामे छे अने बळरामने भाई- मृत्यु स्वीकारवू अघळं थई पड़े छे अंते बलराम पण मासक्षमण अने तप द्वारा कर्म खपावी, देवलोक सिधावे छे.
वसुदेव पण द्वारिकानी पडती थाय ते पहेलां, बहु नारीओ साथे, अणसण लई देवलोक पामे छे.
अंते रचनाकार प्रशस्ति पुष्पिकामां पोतानो परिचय आपे छे.
प्रस्तुत प्रतमा ज्यां 'ष' खना अर्थमां छे त्यां तेनो ख को छे. वळी, प्रतनी कडीओना नंबरो आप्या छे त्यां बेएक स्थळे नंबर आपवो रही गयो छे के एक ज नंबर बे वार अपायो छे. जेमके- कडी नं. २२९ दर्शाववानो रही गयो छे जेने [ ]मां जणाव्यो छे. कडी नं. २३४ ने २३५ नंबर आप्यो छे अने ते पछी २३५ नंबर फरीवार आवे छे तेने सुधारी लीधेल छे. कडी नं. २६३ने २६४ नंबर आप्यो छे तेथी तेने सुधारी ते पछीनी बधी ज कडीओना नंबरो फेरव्या छे. आथी प्रतमा ३६० कडीनी जे कृति जणाय छे ते वास्तवमां आ रीते, ३५८ कडीनी लिप्यन्तरमां बनी छे तेनी पण नोंध लेवी घटे. वळी, 'छ' छे त्यां त्छ लखवानी टेव जोवा मळी छे.
'श्रीत्रिषष्ठीशलाकापुरुषचरित्र'मां पर्व ८ना बीजा सर्गथी 'वसुदेवचरित्र' आलेखायुं छे. ११मा सर्गमां द्वारिकादहन समये द्वारिकामाथी बहार जता, अणसण करी, दाहथी मृत्यु पामता वर्णव्या छे. आनी अन्तर्गत ज नेमिकुमारचरित्रनी वात ज समांतरे चाले छे. अहीं पण एम ज थयेल छे छतां, अहीं वसुदेवचरित्रमांनी घणी बधी विगतो अहीं संक्षेपे जणावी छे. जेमके- विद्याधर कन्याओनी साथेना लग्नोनी विस्तृत वात अहीं मात्र एक ज लीटीमां छे. वळी, कनकवती, रोहिणी, नळदमयंती कथानक वगेरे खूब ज लाघवथी वर्णवाया छे. शिशुपालवध के रुक्मिणी के पांडव द्रौपदी स्वयंवरकथा, प्रद्युम्नचरित्र, नारद- पात्र वगेरे अनेक बाबतो आ कथानकमा जोवा मळती नथी.
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अनुसंधान-२८ प्रस्तुत कृतिना रसकेन्द्रोनो निर्देश जरूरी छे. यादवो अने जरासन्धना युद्धमां कविनी वर्णनकला खीली ऊठी छे. लोकभोग्य दृष्टान्तोथी कथानक रोचक बने छे. अहीं एक दृष्टान्त जणावं. १७०मी कडीमां मदमस्त बनेली जीवयशानो अइमत्त मुनिनां वचनोथी नशो उतरे छे ते जणाववा आपेला दृष्टान्तो केटलां रोचक छे ! मदहानि पामती व्यक्तिनी दशा खरेखर आवी ज होय छे.
क्यांक कविनी वर्णनकला ओर खीली ऊठे छे. वसुदेवथी मोहित थती नगरनारीओनी चेष्टाओना अतिशयोक्तिसभर वर्णन बाद कवि लज्जा ए शील छे ते विषये नानकडो निबंध ज आपी दे छे. (जुओ : कडी ९२ थी ९६ मां).
साहित्य समाजनुं प्रतिबिंब छे ते उक्ति अहीं सार्थक बने छे. कडी १२९मां वसुदेव ज्यां ज्यां जाय छे. त्यां त्यां सुन्दर कन्याओ परणे छे ते जणावी कहे छे.
"हंसानइ सर सरोवर घणा, कुसुम घणा भमराई सपुरिसनइ थानक घणां, देशविदेश गयाइं.''
वसुदेवचुपइ सकल मनोरथ सिद्धि कर, धुरि चउवीस जिणंद पय प्रणमुं भावि करी, भविया नयणानंद ॥१॥. कासमीर मुखमंडणी, मनि समरूं सरसत्ति कविअण वंछित पूरणी, दिइ वाणी सरसति ॥२॥ जे वसुदेव सोहामणउ, यादव कुल शिणगार चरित्र रचउं हुं तेहर्नु, सुणियो अतिह उदार ॥३॥
वस्तु जंबुदीवह (जंबुदीवह) भरहषि(खि)त्तंमि, सोरिपुर वर नयर यदुनरिंद
हरिवंसमंडण तसु संतानि सोहामणउ, सूरराय अरिअण विहंडण
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तस पटराणी सूरप्रिया, बे सुत अंधकवृष्णि राज करइ मथुरापुरी, बीजउ भोजकवृष्णि ॥४॥
अंधकवृष्णि तणइ छइ सार, दस बेटा ते दसई दसार पहिलु समुद्रविजय अक्षोभां थिमित्त अनइ सागर · अक्षोभ ||५|| धरण अनई पूरण हिमवंत, अचल अनइ अभिचंद महंत अनुपम रूप जिसउ हुइ देव, दसमउ पणि नामइ वसुदेव ||६||
भोजकवृष्णि तणइ सुत बेड, उग्रसेन देव कहइ तेउ समुद्रविजय सोरिपुरधणी, राज करइ लीला आपणी ॥७॥
ज्ञानी गुरु आव्या एकवार, समुद्रविजय बंधव परिवार हरखि हरखि गुरु (रु) वंदणि सहु जाइ, अवसर लहीनई पूछई राई ||८||
मझ बंधव दसमउ वसुदेव, दीसई जिम दोगंडुगदेव सोहग सुंदर साहस धीर, गिरुउ सहजि गुणह गंभीर || ९ ||
रूप अनोपम कहीई किसउं अभिनव इंद्र तणउं नहीं तिसउं नरनारी मन मोहण हेलि, इच्छा हीडई करतुं गेलि ॥१०॥
अधिक पुण्य किसिउं छइ एह, न्यान करी मझनई कहुं तेअ गुरु कहइ ए संबंध छइ घणउं, इहां थीकु भव त्रीजउ सुणउ || ११ ||
नंदिषेण नामि एक गामिइ, बंभणपुत्र हतु तिणि ठामि अति करूप दोभाग बहूत, मातपिता परलोक पहूत ॥१२॥
बालपणइ मामा घरि रहइ, नंदिषेणनइ मामा कहइ बेटी सात अछइ अम्ह तणी, इक परणाविसु तुज हितभणी ॥ १३ ॥
पुत्रीइ ते जाणी वात, पुत्री बोलइ सांभली तात
वरि विस पीईनई हुं मरुं, ए दोभागी नवि पति करु ||१४||
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सातइ पणि पुत्री इम कहइ, मामउ हीइ विमासइण वहइ थानकि धानकि कन्या जोइ, नंदिषेण[ ने] दिइ नइ कोइ ॥ १५ ॥
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ते जाणि अधिकुं दुख धरइ, नंदिषेण मनि चिंता करइ हुं अभागीउ सरजीउ ईसिउ, माहरउ माणसनुं भव किसउ ॥१६।। मझ देखइ स्त्री थूकइ बहू, मझ देखइ मुख मोडइ सहू हिव मझ मरण तणी छइ आहि, इम चीतवतुं गयउ वन माहि ॥१७|| ऊंचा पर्वत उपरि चडइ, खोह माहि जव हेठउ पडइ तव मुनिवर तिहां बोलइ एकं, कुमरण म करि वछ अविवेक ||१८।।
ढाल
वयण सुणी मुनि पासइ, नंदिषेण गयउ विमासइ पूरव करम प्रकासइ, तुंइ मुनिवर भासइ ॥१९॥ करम न छूटइ ए कोई, राजा हरिचंद जोइ डुंब तणइ घरि नीर, वहइ ते साहस धीर ॥२०॥ नामई ब्रह्मदत्त भणीइ, चक्रव्रती अंध ते सुणीइ सनतकुमार ज उत्कुष्ट, हीअडइ न थयुं ते दुष्ट ।।२१।। करमि तीर्तंकर नडीआ, पांडव वनमाही पडीआ कर्मह एवडी आहि, राम भमइ वनमाहि ॥२२॥ जउ तु मरइ अखूटइ, परभवि करम न छूटई लाख चउरासीअ भमीउ, काल अनंत नीगमीउ ॥२३॥ कीजइ जिणवर धम्मो जीव लहइ शिवशर्म नरभव दुर्लभ अपार, करि वछ पुण्य ते सार ॥२४॥
चउपड़
ऋषि प्रतिबोधि चारित्र लेई, निर्मल दुक्खर तपह करेई हिअडइ उपशम आणइ घणउं, मुनिवर करम खपइआ पणउ ॥२५॥ न सकइ डीलिं मुनिवर जेअ, मई वेआवच्च करिवलं तेअ एहवउ नियमनि निश्चयउ धरइ, तेहनी इंद्र प्रसंसा करइ ॥२६।।
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नंदिषेण[मुनि] मानवलोकि वैयावच्च करइ सुविवेक सुरवर चालिउं न चलइ किमइ, एह वयण सुर एक नवि गमइ ॥२७॥ मायारोग विकुवी घणउं, मुनिवर रूप करी आपणउं ते सुर आवइ वनह मझारि, बीजउ साधु थइ तिणि वारि ॥२८॥ नंदिषेण जव लिइ आहार, तव मायामुनि आविउ बारि रीसई कहइ नथी तुझ सान, हवडां खावा बेइठउ धान ॥२९।। अतीसारीउ मुनि सुविचार, बाहिरि पडिउ तु न करई सार वेयावच्च नउं निश्चउ धरइ, असत्य वचनि तप निष्फल करइ ॥३०॥ नंदिषेण ऊठइ आणंद, हुं वरांसिउ कहइ मुणिंद विहरणि चालिउ साहसधीर, तव असूजतुं सघले नीर ॥३१॥ असावधान सुर थिऊ एकवार, तुं ति सूजतुं विहरी वारि जइ वनमाहि पधारु कहइ, तुं वेदन माहरी नवि लहइ ॥३२।। ताहरि परि हुं न लिउं आहार, आतलइ आविउ दुखि अपार हुं रोगि पीडिउ छउं ईम, हीडी न सकउं आवउं कीम ॥३३॥ इम करतां कंधोलइ करइ, ऋषि मुनिवर मारगि संचरइ वांकु कां हीडई इम कहइ, अतीसार खंधोलइ वहइ ॥३४॥ हीयडई ते वह्यइ दुर्गंध, ते सुरवर जाणी संबंध करी प्रसंसा प्रणमइ पाय, देवलोकि खमावी जाइ ॥३५|| अंतकालि ऋषि अणसण लीइ, निय अभाग संभारइ हीइ सौभागइ अधिकहुं हुं जउं, बहु नारी निश्चई परणिजउ ॥३६॥ तपह तणी तिणि आणी सीम, ऋषि नीआणु कीधुं ईम अणसण पालीउ गिउ सुरलोकि, सहजि सुख भोगवइ अनेकि ॥३७॥
दुहा आउखुं पूरी करी पुण्य प्रभावइ देव तुझ बांधव दसमउ हूउ, ते नामइं वसुदेव
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एहवी गुरुवाणी सुणी, हिअडइ हरखि राउ नगर माहि आवइ सहू, सहिगुरु प्रणमी पाय ||३८||
समुद्रविजय बंधव सहित, करतुं पुण्यह काज राजनीति संभारतुं, पालइ पुहवी राज ॥ ३९ ॥ चउपई हिव मथुरानगरीनुं राय, उग्रसेन नामि बोलाइ एकवार रइवाडी जाइ, वनमाहि दीठउ तापसराय ||४०||
मासखमण करइ ते सदा, नगरमाहि न रहइ ए कदा एक जि घरनी भिख्या (क्षा ) लीइ, बीजइ घरि वली पग नवि दीइ ॥ ४१ ॥ राइ तें आमंत्रण कीध, घरि आविउ, भिक्षा नवि लीध अणबोलाविउ पाछउ वलिउ, निय आखडी थिकु नवि चलिउ ॥४२॥
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मासखमणन तप उचरइ, वली राजा आमंत्रण करइ राय घरि भिक्षा न दीइ कोई, तप उचरी रहइ वनि सोइ ||४३||
त्रीजीवार थयउं ते जाम, तापस कोपि चडीउ ताम एहनइ दुक्ख तणउ देणहार हुं घा (खा) झिउ ( ? ) जउ तप हुइ सार ||४४||
रीसइ एह नीआणुं करइ, नीय आउखु पूरुं करइ उग्रसेननइ गुणधारणी, पटराणी नामि धारणी ||४५ ॥
तास उअरि तापस उपन्न, अधम डोहला भइलउ मन्त्र जाणइ पाप सवे आचरुं, रायमांसनुं भक्षण करुं ॥४६॥
बुद्धि डोहलउं पूरुं कीउ, अशुभ दिवसि सुत ते जनमीउ कांसानी तव पेई करी, माहे सोवन्न रतने भरी ||४७||
मथुरानगरी उग्रसेन राय, पिता एहनुं धारणिमाइ इम लिखीनइ चीठी करइ, ततखिणी पेई मांहि धरी ॥ ४८ ॥
पुत्र सहित यमुना नय माहि, मेल्ही पेई गई प्रवाहि छोरु शुद्धि रायानई कही, बेटी जाइ जीवी नही ॥४९॥
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बीजउ गर्भ धरइ धारणी, इच्छा थाइ धर्मह तणी अहनिसि दान दिउ सुविचार, शुभ वेलां सुत जायउ सार ॥५०॥ अयमतउ तसु दी● नाम, वाधइ रूपकला अभिराम परणावि उचत्त आचार, अहनिसि निरखइ धर्मविचार ॥५१॥
__ वस्तु नयर मथुरा नयर मथुरा, राय उग्रसेन, पटराणी गुणधारणी तास उअरि अरि तापस उप्पनह, पुत्रजन्म की(क)सा तणी पेई भरी कंचण सुवन्नह, प्रवाहि वहिउं ते गयु, मूकिउ यमुना ठामि बीजउ सुत हिव जाइइ, तस अयमतउ नाम ॥५२॥
चउपइ पेई वहती यमुना तीरि, पहुती सोरीपुरनइ तीरि नदी कंठि बइठउ व्यवहारि, पेई दीठी अतिहि उदार ॥५३।। घरि आणी उघडाइ जिसइ, उत्तम बालक दीठउं तिसइ ए निश्चवइ राजानुं अंश, चीठी वाची जाणिउ वंश ॥५४॥ सुभद्र सेठि धरि वाधइ बाल अठमि ससिहर दीपइ भाल मानस सरवरि जिम रायहंस, नाम तेहनउ दीधउ कंस ॥५५॥ आठ वरस वउलिया तस जाम, शास्त्र शा(शास्त्र भणी अभिराम बुधि आगलउ अति बलवंत, बाहरि जाइ रामति करंत ५६|| पांच सात बालक तिहां मिलइ, रमतां माहोमाहइ भिलइ कूड रमीनइ आणइ डंस, तु कूटइ बालनइ कंस ||५७॥ ते बालक रोतु घरि जाइ, कंसइ कूटिऊ इम कहइ माइ सुभद्र सेठि करइ घरबारि, ऊलंभा दिइं आवी नारि ॥५८॥ पुत्र आपणउं राखु तम्हे, एहवं सांसहिस्युं नहीं अम्हे पुत्र पीआरा मारी जाइ, नगर माहि स्यु थइ छइ राय ॥५९।।
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अनुसंधान - २८
इस्या दिन प्रति घर घर तणा, उलंभा दिइ आवी घणा मावीत्र वार्य न करइ किमइ, बाहरि जइनइ तिम जि रमइ ॥ ६०॥
दुहा
सुभद्र सेठि विमासीउं, ए अति जूठउ कंस
माहरि घरि छाजइ नही,
सही राजानुं अंश ॥ ६१ ॥
राजसभा राजा तणी, सुभद्र सेठि ग्यु हेवि भूपतिनइ इम वीनवइ, पासइ छइ वसुदेव ॥६२॥
यमुना वहतुं आवीउ, पेई माहि पहूत लेख लिखइ मइ जाणीउं, उग्रसेन रायपूत ॥६३॥
वृद्धिवंत मझ घरि हूउ, कंस कहीइजइ नामि राजपुत्रनइ रायनी, सेवा युगति स्वामि ||६४॥
एह वयण राजा सुणी, तिहां तेडावइ कंस तेजवंत देखी करी, जाणीठं विद्यावंस ॥ ६५ ॥
वसुदेवि ते राखिउ प्रीतइ आपण पासि स्नेह बिनइ अधिकु धरई, रमइ कला अभ्यासि ॥ ६६ ॥
वस्तु नदीय यमुना नदीय यमुना तणइ परवाहि पेई दीठी आवती सुभद्र सेठि निअ गेहि आणीअ, बालक देखी सोहामणउ
कंस नाम दीधरं स जाणीय, अतिबलवंत ते हूउं जणाविउ राय पासि, वसुदेव ते राखीउ, प्रीत आपण पासे ॥६७॥
चउपइ
मगध देस माहि जाणीइ, राजगृह नयर वखाणीइ
तिहां बृहदरथ राजा तणउ, पुत्र अछइ अति सोहामणउ ||६८ ||
जरासिंध नामि, सुविशाल, त्रिहुं खंड केरु भूपाल यादव जेहनी मानइ आण, चित्तिहि अति आणइ अभिमान ॥ ६९ ॥
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जरासंध कहावर एकवार, समुद्रविजयनइ एह विचार सीमाहेडउ सोरीपुर पासि, एकइ गामि वसइ छइ वासि ॥ ७० ॥ माहरि आण न मानइ तेअ, एहनइं बांधी आणई जेअ जीवयस्था मझ पुत्री सारी, तेहनइ परणावंड सुविचार ॥७२॥
दूतमुखि ते एहवुं सुणी, चितइ सोरीपुरनउ धणी जरासंधनी विसमी आण, कीधी जोईइ ते परमाण ||७२ ||
कटक सजाइ राय गहगहइ, तव वसुदेव कुमर इम कहइ स्वामी एह काज मझ कहवु, तुम्हे सुखइ समाधई रहउं ॥ १७३॥
तुं नान्हउ ए वात अबूझ, दोहिलू करीय न जाणइ झूझ दडे रमतां छइ सोहिलउ, मस्तक झूझ सवे दोहिलूं ॥ ७४ ॥
इम कहीउं मानइ नहीं खेव, कंस सहित चालिउ वसुदेव सीमाहंडेउ छइ विसमइ ठामि, कटक लेइ गिउ तीणइ ठामि ॥७५॥
बिहु पासे तव मंडिडं झूझ, माहोमाहि प्रकासइ गूझ सुभट सवे मचकोडिआ जिसई, वसुदेवइ आकीउ तिसइ ॥ ७६ ॥
ताकीनइ एक मूंकिउ बाण, सीमाहडआ भागउ सपराण कंस ते अति बल बोलतुं, रथि बांधी घालिउ जीवतुं ॥७७॥
कटक लेइ पाछउ वलिउ, सोरिपुर आविनइ मिलिउ समुद्रविजय साहमुं आविउ, वसुदेव हरीखड़ बोलावीउ ॥७८॥ नगर माहि कीधउ परवेस, नगर महोत्सव हुइ सविसेस समुद्रविजय तेडइ एकंत, सुणि वसुदेव कहुं वृत्तं ॥ ७९ ॥ तुझ गियां तापस आविउ छेक, ज्ञानवचन कहीउं तिणि एक जीवयशा कन्या पापिणी, बिहुं वंशनइ क्षयकारिणी ॥८०॥
जरासिंधु तुझ देसिइ सखे, ते तुं कन्या परण रखे कंसजनइ दिवरावे सिरइ, सीगिइं सांकल जिम ऊतरइ ॥८१॥
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इम सुणी वसुदेवकुमार, कंस साथि लेइ परिवार सीमाहडउ साथइ चालीउ, राजगृह नयरी आवीउ ॥८२॥ जरासिंधनइ कीथ प्रणाम, प्रतिवासुदेव बोलावइ ताम सीमाहडउ आणीउ कणइ, कंसतणउं बल वसुदेव भाइ ॥८३॥ जरासिंध जव जाणिऊ वंश, तु पुत्री परणाविउ कंस . पिता वयरी तिणि मथुरापुरी, करमोचनि मागी वसि करी ||८४||
दूहा
कंस पितानइ पाछिलउं वयर वालवा काजि जरासिंध बइसारीउ, मथुरानगरि राजि
उग्रसेन कठपंजरइ, कंसइ घालिउ राय
पूर्व नियाणउं जे कीउ, ते निष्फल किम थाइ ? ॥८५॥ धारणिमाता इम भणइ, तुझ पिता नहीं दोस सघलां वानां मइ कीआं, तु मझनइ करि रोस ||८६ ॥
अनुसंधान - २८
मातवचन मानइ हीइं, कंस पिता दुःख देइ अइमतु हिव पिता दुखि, वइरागउ व्रत लेउ (इ) ॥८७॥
चारित्र पालइ निरमलउं न्यान उपन्नउ सार तव संयम आराधउं, वसुहा करइ विहार ॥८८॥ कटकसहित हिव आविउ, सोरिपुरि वसुदेव राजरिद्धि लीलां करइ, जिम दोगंदुक देव ॥८९॥ वस्तु मगधदेसह मगधदेसह तणउ भूपाल, जरासिंधु आदेशथी कंस सहित वसुदेवकुमार, सीमाहडउ बांधी बिन्ह ते पहूत -
जीवजस्या परणी करी, कंस करइ निय काज पिता वयरी मागी लिउ, मथुरानगरी राज ॥९०॥
राजगृह नयरि
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१३॥
ढाल (वीरजिनेसर चरणकमल ए ढाल) हिव वसुदेवकुमारउं, जे कुतिग वीत ते सुणिज्यो सहू सावधान लइ जगह वदीउ, रूप मयण करी अवतरिउं अश्विनीकुमार, नयर माहि रामति रमइ ए वसुदेवकुमार ॥२१॥ जे जे देखइ कुमर रूप, तेह मनि अति भावइ रूपि मोही नगरनारि, सहू जोवा आवइ एक अटाले चडइ नारि, वेला नवि चूकई एक नारि भरतारनइ अप्रीसिउं मूंकई ॥९२|| बालक रोतुं नवि लइ, इक जाइं पूठिइ कुंवर रूप जोवा भणी ए, अधजिमति ऊठइं एक आखि आंजी करी, बीजी अणआंजई ढलतुं घी मूकइ घणी ए, तस जोवा काजि ॥९३।। करिय विमासण सयल लोकि वीनवीउ राय सामी अम्ह वसवा भणी तुम्हे आपु ठाय राजा कारण पूछीउ ए माहाजनइ इम बोलइ सोभागि वसुदेव रूप बीजउं नवि तोलइ ॥९४|| तीणइ मोही सयल नारि, दिन रात न जाणइं धान अलूणउ नवि लहइ, पति मोह न आणइ एह रीति रूडी नही, स्त्री लोपइ लाज स्वामी उत्तम कुल तणुं ए, इम विणसइ काज ॥९५॥ लाजइं पालई शील एक लाजि दिइ दाम लाज लगई इक तप तपई ए भवदेव समान धरम काज लाजि करई, लाजइ व्रत राखइं कहीइ धरमइ जोग जीव जे लाजह पाखइं ॥९६।। महाजननइ राजा कहइ, तुम्हे पुहचउ ठामि वारिसुं हुं वसुदेवनइं, सुखि वसज्यो गामि
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समुद्रविजय तेडी कहइ, सांभलि वसुदेव बाहिरि वछ न हीडीइ उन्हालउ हेव ॥९७॥
सयल दिवसि भमतां शरीरि तावड तुझ लागइ राल गुन माहि रह्युं वच्छ सिरि तु कृश आगइ एह वयण मानी करी परहीउ मनरंगि निय आवासि रामति रमइ लीलां करई अंगि ॥९८ ॥
बावन - चंदन सुरही घसी कसतूरी साथई भरीय कचोलउ शिवादेवी दिई दासी हाथि राय भणी ते मोकलिउं दीठउं वसुदेवि दासी देखाइ नही विलगीनइ लेवि ॥ ९९ ॥
नाखिउ महीअलि सुरही द्रव्य रहीठ निअ अंगि कुंअर लगाडइ ताम दासि बोलइ मनभंगि
राइ न्याइ राखीउं तुं बंदीखाणइ
कुंअर वयण ते सांभली ए मनि शंखा आणइ ||१००||
दूहा सीह किवार हलि वहइ, दीणयर ढांकिउ जाइ हुं बंदीखाणइ रहूं, वात हीई न समाइ ॥ १०१ ॥
नगर मांहि कीधउ नथी, मई काइ अन्याय विण कारणि कां राखिउ, बंदिखाणइ राय ॥ १०२ ॥
मई काइ उध्धतपणइ, लोपी भूपति आण तेह भणी सही मझ हूउ दासी वयण प्रमाण ॥१०३॥
धन वंछइ एक अधम नर, उत्तम वंछइ मान ते थानकि सही छंडीई, जिहां लहीइ अपमान ॥ १०४ ॥
अनुसंधान- २८
दंत केश रख अधम नर, निय थानकि शोभंति सपुरिस सीह फणिंद मणि, सघले मान लहंति ॥१०५॥
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दीसई कुतिग विविह परि, सघले वचन वदंति सजण दुजण अंतरु, जाणिजइ परदेसि ॥१०६।। इम चीतवतुं नीकलिउं, निसि भरि खडगह बेलि पोलि बाहरी जाई करी, ईधण मेल्ही हेल ॥१०७।। मृतक माहि मूकी करी, चिहि परजाली एक पोलइ परगट बंधीउं, पत्र लखी सविवेक ॥१०८।। मइ अन्याय कीयउ घणउ, खमयो सहूइ लोक आपणपुं मइ छइ दहुं, कोई म करयो शोक ॥१०९॥ पत्र लिखी इम वालीउ, आघउ वनह मझारि पाछलि वसुदेव सोधीउ, समुद्रविजय दुःख भारि ॥११०॥ पत्र लिखिउ देखी करी, समुद्रविजय भूपाल वाचंति धरणि ढलिउ, बंधुसहित तत्काल ॥१११॥
राग केदारु समुद्रविजय विलवलइ घणउं रे, साथइ सहू परिवार हा हा देव किसिउं कीउं रे, सूनु आज संसार ॥११२।। बंधव जी कांई मेल्हीउ गयु ............... तुं तु विनयवंत वरवीर, तुं तु सोहगसुंदर धीर ॥११३ आंकणी माहरु मोह न आणीउ रे, नीठर थयुं निटोल साद करतां सहोदर रे, एकवार दिई बोल ॥११४॥ बंधव० वीसारतां न वीसरइ रे, तुझ गुण न लहु पार हीअडउ हेजि हेलविउं रे, साथि आवणहार ।।११५।। बंधव० नयण रोअंता रहिइं नहीं रे, जिम निझरणे नीर दुख भरी भूपति इम भणइ रे, दिइ दरिसण मज्झ वीर ॥११६।। पोतइ पुण्य न सींचीउ रे, तु मझ भाय वियोग पुण्य पसाई संपजई रे, सुख संपति संयोग ॥११७||
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अनुसंधान-२८
चउपई समुद्रविजय अधिक दुख धरई, प्रेतकाज सवि तेहनां करइ दुक्ख धरंतु पालइ राज, अहनिसि धर्म करइ महाराज ॥११८॥ हिव चालई वन माहि कुमार, थिउ प्रभात उगिउ दिनकार खडग सखाइ तु पालउ पुंलइ, तुं वाटई बांभणरथ मिलइ ॥११९।। बांभणरथ बेसारिउ कुमर, जोअण पाच दस आविउ नयर तिहां नृपकुंअर प्रतिन्या एह, गीतकला जीपइ पति तेह ॥१२०॥ पडह छबी देखाडी कला, कुंअरि मनि भागा आमला पाणिग्रहण करी तिहार रहिउ, केते दिनि आघउ संचरिउ ॥१२१।। विद्याधर नगरी जांइ, कन्या परणइ मोटा राय पांच पांचसइ कन्या सार, विद्याधरी पणमइ इकवार ॥१२२॥ करमविहूणउ जे नर होइ, सफल मनोरथ तास न होइ पुण्यवंत नर जिहां जिहां जाइ, तिहां तिहां रानी वेलाउल थाइ ॥१२३।। पोढउं नयर अछइ पेढाल, राज करइ हरिचंद भूपाल कनकवंती तस बेटी नाम, रूपि रंभा अति अभिराम ॥१२४।। नल राजानी जे स्त्री हती, पूरव भवइ दमयंती सती ते कनकवतीनुं भरतार, कुंअर हुउ ते पुण्यप्रचार ॥१२५।। ए पूरव तपह प्रमाण, सघले महिमा मेरु समान जिन भाखीउ तप को खरु, जिम लीला भवसायर तरु ॥१२६।। कुंअर भमंता जिहा जिहां जाइ, तिहां तिहां उत्सव हरख न माइ जे थानक पणि छंडी जाइ ते वसउं पणि शून्य कहाइ ॥१२७।।
हंसा जिहि गय तिहि गया, महि मंडणा हवंति छेह उ तांह सरोवरा, जे हंसे मुच्चंति ।।१२८॥
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हंसानइ सर सरोवर घणा, कुस(सु)म घणा भमरांइ सपुरिसनइं थानक घणां, देश विदेश गयाइं ॥१२९।।
चउपइ कुअर भमंतु देस विदेश, आविउ अरिठ नयरि नववेस रूधिरराय बेटी रोहिणी, यौवन वय परणावा भणी ॥१३०॥ सयंवरा मंडपसु विचार, जरासिंधु नइ नवइ दसार बीजा राय कटक परवरिया, आपइ रूपि इंद्र अवतरिआ ॥१३॥ कूबड वेस करी तिहां रहइ, प्रज्ञप्ती विद्या तव कहइ पडह वाअंता निश्चय करिउ, वसुदेव कुंमर रोहिणीइं वरिउ ॥१३२॥ जरासिंध सोरिपुरधणी, कंस सहित ऊठइ रण भणी आपण छतां ए परणइ नारी तु अयुगतुं हुइ अपार ॥१३३|| रणि रंगि दीठउ झूझंत, जरासिंध कहइ ए बलवंत समुद्रविजय जव मंडिउ झूझ, बाण लिखी तव कहीउं गूझ ॥१३४॥ तव जाणी वसुदेवकुमार, हेज हरखनुं न लहुं पार हरख अवधरतां सवि मिल्या, सहजि सकल मनोरथ फऱ्या ॥१३५।। विद्याधर कुमरी जे घणी, परणी छइ ते तेडा भणी विद्याधरी आवी आकासि, तव वसुदेव रहिउ विमासी ॥१३६॥ मिलिवा दीधी अनुमती राय, वसुदेवि ते पणमी पाय विलंब रहित वछ वहिलउ वले सोरीपुर आवीनइ मिले ॥१३७|| समुद्रविजय सोरीपुर गयउ, कुंअर आवतां अति साम्यहउ वसुदेव ठामि ठामि स्त्रीवृंद, परिवरीउ जिम तारा चंद ॥१३८।। महाविमान रवी आकाशि, तव आव्यउ सोरीपुर पासि राय महोत्सव करइ प्रवेस, उत्सव अधिका नयर निवेस ॥१३९।।
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अनुसंधान-२८
दूहा भाव विरूपी नीकल्यउ, हुंतुं कुंअर विदेसि बहुत्तरि सहस अंतेउरी, परणिओ नव नव वेस ॥१४०॥ पुण्यई सुखसंपद मिलेइ, पुण्यई नव नव रिद्धि पुण्य लगइ सहू संपजइ, पुण्यई वंछित सिद्धि ॥१४१॥ पुण्य करी वसुदेवनंइ, रिद्धि अचिंती जोइ भावठि भंजण मानवी, पुण्य करु सहू कोइ ॥१४२॥ हिव हत्थिणाउरि च्छइ एक सेठि, ललइतना सुत सुललित देठि बीजउ गंगदत्त सुत होइ, कर्मभावि माइ न गमइ सोइ ॥१४३|| दासी हाथि छंडावइ जिसइ, सेठि छानउ राखिउ तिसिइं वृद्धिवंत माता जाणिउ, तु काढिउ बाहिरि ताणीउ ॥१४४।। गिउ वनमाहि मुनीश्वर दीठ, तव तस हीअडइ हरख अनीठ तस प्रतिबोधइ चारित्र लेइ, ललितकुमार पणि तिम जि करेइ ॥१४५।। चारित्र अणसण पाली रोक पामिउ महाशुक्र सुरलोक वल्लभ पणइ नीआणउं करइ, गंगदत्त वली तिहां अवतरइ ॥१४६।। वसुदेवह रोहिणी कलत्र, धज, सायर, गज, सीह पवित्र च्यारई सुपन निसि नीद्र मझारि, देखइ हिव तेहनइ विचार ॥१४७॥ देवलोकि ललतांगकुमार, जीव चिवीनइ पुण्य प्रकारि, रोहिणी गर्भवासि उपन्न, उत्तम डोहला हुइ धनधन्न ॥१४८॥ . सुत जायु ते जिंइ अभिराम, नाम तेहनुं दीधउं राम वरस आठनउं लील विलास, भणिउ गुणिउ अति बल अभ्यासि ॥१४९।।
वस्तु
कुंअर वसुदेव कुंअर वसुदेव अतिर्हि सुविसाल बहुत्तरि सहस अंतेउरि, सपरिवार पुरंदर रोहिणीसुत हिव ज नमिउ तास नाम बलदेवसुंदर, कंसई हिव तेडावीउ धरी सनेह बहूत समुद्रविजय पुच्छी कुमर, मथुरा नयरी पहुत ॥१५०।।
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ढाल
कंस दसार बेहू मिल्याए, तेह प्रीति मनोरथ सवि फल्या ए कंस कहइ सुणि तुं कुमार, अच्छा वृत्तिका नगरी नयर सार || १५१ ।। मझ पीतरीउ कुमर राज, तिहां देवक नामिइ करइ राज देवकन्यां जिसी देवकीओ, तस बेटी नामइ देवकीए || १५२ ||
तेहनूं रूप तुंह जि वरूए, इणि वातई थावुं सादरू अ बेउ वृत्तिकापुरि गया ए तिहां देवक राइ कीधी मया ॥ १५३ ॥
कंस कहइ सुणउ स्वामि सार सोभागी ए दसमुं दसार देवकीयोग्य वर अति भलउ ए, संयोगिई पुन ही सोहिलं ए ॥ १५४॥
दूहा सिसिहर विण पूनिम किसी, विण पूनिमसिउं चंद सुकुलीणी स्त्री सुगुण नर, जडती जोडि नदि ॥ १५५ ॥
हंसा रच्वंति सरे, भमरा रच्चंति केतकीकुसुमे चंदनवने भोअंगा, सरिसा सरिसेहि रच्वंति ॥१५६॥
हंसा राच्चइ सरवरे, चंदनि चतुर भूअंग केतकि राच्च भमरला, ए संयोग सरंग ॥१५७॥
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ढाल
एह ज वयण साचुं सुणीए, देवकराजा इहां भणीओ कन्या देव मन कीयुं ए तव ढूंकडउं लगन जोइ लीउं ए ।। १५८।।
मणहर मंडप मंडी ए वली अशुभ अंशुक सवि छंडीइ अ केलवीइं नवरसवती ए, जिमइ जासक जन ते रसवती ए ॥१५९॥
कन्या रूप सिणगारी ए करी ऊगदि (टि) अंग समारीइ ए वेणी लहकइ ढलकती ए. चंद्रानदि चालइ चमकती अ ॥ १६० ॥
मृगनयणी मन मोहती ए गय गमणी चतुर चंपकवनी अ पाणि सुकोमल बांहडीओ, कर कयणर (कणयर) केरी कांबडी से || १६१ ॥
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सीहलंकी सुंदरि इसीओ, ऊरु थंभकेरी कलहंसी ए हेम हुइ मही महमहंत, सिणगारी जउ इसी रूपवंत || १६२ || कुंअर वरघोडइ चडइ चडइए, वार्जित्रई अंबर गडगडइ ए सकल कला जिम चंदलउं ए, तिम कुंअर हिसिउं अवनितिलउ ए ॥ १६३॥ धवल मंगल दीइ अंगनाओ, सवि भाव धरइ अंगना ए तस आगलि नाचई सोलही ए, नर नारी जोवा सवि मिलइ ए || १६४॥ लाडण तोरणे आविउ ए तव सूहवि हरखि वधावीउ ए चतुर चउरीसीहि आवीउ ए तव विधिकन्या परणावीउ ए ॥ १६५ ॥ लाख गाइ तणउ जेअ स्वामि, करमोचनि आपीउं नंदन नामि कंस कुमर सहू संचरीओ, हिव हरखि आव्या मथुरापुरी || १६६ ॥
चउपड़ कंसि कन्या परणावा तणउ, नगर महोच्छव मांडिउ घणउं मदर्भिभल जीवयशा नारि, अयमत्तउ मुनि आविउ बार (रि) || १६७॥ मदवंतीणी मुनि राय देउर विगोइ कीधइ वाय
तव मुनि कोपि चडिउ इम कहइ, गहिली गर्व किसीउ ए वहइ ॥ १६८ ॥ देवकी नारि गर्भ सातमउ, अति बलवंत हूसिइ ए समुं तुझ भरतार अनइ तुझ तात, बिहुं तणउ करसिइ उपघात ॥ १६९ ॥
अनुसंधान- २८
आभ पडल जिम वाइ टलइ, सिंघनादि मयगलमद गलइ जळ सिंचीउ जिम दव उल्हाइ, जिम रवि ऊगिइ रयणी जाई || १७०||
जिम निर्धन नर मूंकइ माण, रणि जिम कायर पडइ परांण तिम मुनि वयण तणइ परमाणि, जीवयशान हुइ मदहांणि ॥ १७१ ॥ जइनइ कंस कहिउं ततकाल, कंसइ माग्या सातइ बाल वसुदेव आप उत्तम पणइ, क्षुद्र भावि नवि हिअडइ सुणइ || १७२॥
दूहा
द्रोह करइ मित्रह तणउ, ए दुर्जन आचार
रोस न आणई तेहनिई, ए सज्जन आचार || १७३ ||
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उत्तम अतिहिं पराभव्यु, हीअडइ न धरइ डंस च्छेद्यु भेधु दूहव्यु, मधुरु वाजइ वंस ॥१७४।। ते स्वरूप जाणी करी, कंस तणउ वसुदेव पच्छितावइ नीअ हीइ पणि, वाच न मिल्हइ खेव ॥१७५।। मेरु सिखर अविचल वलइ, रवि ऊगिइ निसिहो सपुरिस निअ मुखि उच्चरी, वाच न मिल्हइ तोइ ॥१७६।।
चउपइ भद्दिलपुरि जिन धरम सनामि, नागनारि छइ सुलसा नामि सुत कारणि आराधिउ देव, मृतबालक तू इम कहइ हेव ॥१७७।। देवकीना उत्तम छइ पुत्र, कंस मारिवा थिउं अपवित्र ते तुझ आणी आपसि, इहां मृत ताहरा मुकिसु तिहा ॥१७८॥ हरिणगमेसी सुर इम कहइ, मृत बेटा ते कंस जि हरइ शिला आस्फाली नाखइ सवइ, गर्भ सातमउं सुणज्यो हवइ ॥१७९।। दिणयर सीह अनइ गजराज, वन्हि विमान जिसिउं सुरराज पदमसरोवर धज देवकी, सात सुपन देखइ देवकी ॥१८०॥ महाशुक्र सुर कहू चवी, गंगदत्त सुरसुख भोगवी सात सुपन सूचित बहु पुन्न देवकी केरइ उदरि उपन्न ।।१८१।। अभिनव पुण्य मनोरथ थाई, गर्भ दिहाडा हरखि जाई पूरे दिनि सुत जनमिउ किसु, अभिनव रविमंडल हुइ तिस्यउं ॥१८२।। कंसि पाहरी मुक्या जेअ, देवप्रभाविउ उंध्या तेअ सुत लेइ वसुदेव नीकलिङ, बाहरी गोकुलमाहे भिलउ ॥१८३|| नंदह नीअ सुत आपई धणी, नंदनारि तव बेटी जिणी कही वृत्तंत लेइनइ सुता, नगरमाहि आविउ हरि पिता ॥१८४|| देवकिनइं जव आपी सुता तव पीहरी हूआ जागता सिउं जायुं इम पूछई जिसिइं, बेटी लेइ आपी तिसिइं ॥१८५।।
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कंसि लगार एक छेदी नाक, पाछी आपी जाणी ताकं नारी थिकुं मझ मरण न होइ, ऋषितुं वचन वृथा सही होइ ॥१८६।। ते सुत सहजइ शरीरि कृष्ण नंदिई नाम दीउ तसु कृष्ण गोकुल माहि देवकि माइ, परव मिसिइ सुत मिलवा जाइ ॥१८७।। गोकुल रक्षा काजि राम सुत पासिइ मुकिउ अभिराम माधव कला कुतूहल करइ, राम सहित इछा संचरइ ॥१८८॥
वस्तु देवलोकह देवलोकह आउ पूरेवि गंगदत्तसुर देवकी उअरि-सात सपने उपन्नह शुभवेलां सुत जाइउ, कृष्ण नाम दीधउ सुधन्नह वृद्धिवंत गोकुलि हुइ किसु न जाणइ भेउ राम सहित रामति करइं मथुरा बाहिरि बेउ ॥१८९॥
ढाल त्रिपदीउ अचलपुरी धन नृप सुविचारी धनवइ नामि अछइ तस नारी भव पहिलई अवतारी ॥१९०।। देवलोकि पहिलइ भवि लीजइ चित्रगति नाम विद्याधर त्रीजइ रयणवइसिउ रीझइ ॥१९१॥ सरगलोकि चउथइ सुख दीपति महाविदेहि अपराजित भूपति प्रियमति तस पटराणी ॥१९२॥ सुरलोकि एकाधिक दसमइ शंखराय हूआ भवि सातमइ यशोमतीसिउं रमइ ॥१९३||
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महाविमान अपराजित नामि भवि आठमइ दोइ तिणि ठामि हिव सोरीपुर गामि ॥१९४॥ समुद्रविजय राजा पटराणी शिवादेवि नामि सहिनाणी रयणि सपन लहेति ॥१९५॥ चउद सुपन महिमा अणुसरीउ शिवादेवी कूखइ अवतरीउ ते सुर तिजी विमान ॥१९६।। शुभ वेलां सुत हूउ जनम दिशिकुमरी विरचइ शुचिकर्म जनम महोत्सव इंद ॥१९७।। स्वामि नेमिनाथ सुविचक्षण बहुत्तरि कला बत्रीसइ लक्षण यौवनवइ अणसरीउ ॥१९८|| नेमिसर त्रिभुवन मनमोहन मेघवन्न कांति अति सोहइ लहूउ लील विलास ॥१९९।।
वस्तु नेमिनाथह नेमिनाथह, जनम सुविचार मथुरा नगरी सांभळी हीआ हरखी कीजइ महोत्सव कंस देवकी धरि आविउ, छिन नाक दीठी सुता हिव गर्भ सातमउं सांभरिउं, असत्य वयण मुनि सोइ घरि आविउ शंका धरइ, निमित्तअ पूछइ ।।२००॥ ज्ञानि मुनिवर इम पभणेइ, अरिट्ठअश्व दुर्दत वृष मल्ल बेउ चाणुर मुट्ठीय एतां हणी वडाविसिइ
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धनुष सार सारंग मुट्ठय यमुना द्रह जो नाथसिइ कालीनाग महंत गर्भ सातमुं देवकी, ते तुझ करसई अंत ॥ २०१ ||
अनुसंधान - २८
चउपइ
अश्व वृषभ मेल्हिय, वन माहि, मल्ले बिहूनी अधिकी आहि शस (शस्त्र) अभ्यास करई ते दोइ, नगर माहि नवि जीपइ कोइ ॥ २०२॥
राम सहित केसव वनमाहि, भमइ रमतां माहोमाहि अरिट्ठ अश्वनइ वृषभ महंत, हरि देखी धाइ दुर्दत ॥ २०३ ||
केशव कोपि मुष्टि प्रहारि, बे पुहचाड्या यम घरिबारि रमलिई हिव आंघो संचरइ, यमुनाजल माहि क्रीडा करइ || २०४ ||
तेह माहि द्रह एक अताग, सहस फणुं त्तिहां काली नाग लोक भयंकर अति विकराल, नारायणि नायु ततकाल ॥२०५॥
ते स्वरूप कंसि सुणी, नीय वयरी जाणेवा भणी सत्यभामा छई भगिनी सार, रवितलि रूपी अतिहि उदार ॥ २०६॥
यौवन बेस कला अभिराम, मयण राय लीला आराम सयंवरा तस मंडिउं जंग, आपीडं धनुष तिहां सारंग ॥२०७॥
नगर माहि जाणावी वात मल्ल बिहुं मु करी उपघात सारंग धनुष चडावर जेअ, सत्यभामा सही परणई तेअ ॥ २०८॥
सुणीअ वात गोकुल माहि जिसि, नगर माहि बे आव्या तिसिइ वासुदेव साथइं बलदेव, बिह्नई कंस सइं बोलइ हे || २०९ || तेडउ मल्ल जे च्छइ बलवंत, तेहसिउं झूझ करउ एकांत कंस हसी बोलइ गोवाल, तुम्हे पहरा जाउ बिहू बाल ॥ २९० ॥ गिरिवर सिखर चलs जिम वाय, आंकतूल किम मंडइ छाइ जेह सिउ सुभट न मंडई पाग, तिहां तुम्हारउं केहउं लाग ॥२११॥
तिहां आविउ वसुदेव कुमार, नगर लोक सहूइ परिवार मन माहि शंकइ वसुदेव, राम कृष्ण सिउं करसिइ हेव || २१२||
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कहई कृष्ण अम्ह छू गोवाल, मल्ल बिहुं बलवंत भूआलि जाणीसइ बल तणु प्रमाण, तेडउ मल्ल अतिहिं सपराण || २१३ ॥
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शमि युध करि बल चंड मुष्टिष्क (मस्तिष्क) मूठि कीउं शतखंड सिरि पाखलि केरी चाणूर, कीधड मल्ल चतुभुजि चूर ॥ २१४॥ सारंग धनुष चडाविउं जाम, कंस कटक हक्कारिउं ताम सही जीवतुं जाइ रखे, ए वयरी वीटु चिहुं पखे ॥ २१५ ॥
रामकृष्ण बेहूं बलवंत, कटक साथि दीसई झूझंत एक सुभट धाई धसमसइ, एक रण देखिनई उल्हई || २१६ ॥ एक कायर देखी कमकमई, कृष्ण पाय आवी एक नमई भागा सुभट सवे अति डंस, युध करई नव केसव कंस ॥ २१७॥ वेणिधारीनई कंसह पूठि वास (सु) देव तव मूकि मूठि कंस भवंतरि पुहतु कीउ, देखी लोक सहू वस कीउ ॥२१८॥ *
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हरि [व] वसुदेव पणमी पाउं, नेहि बोलावई देवकि माई नगरलोक चितइ ए किसउं, कवण पुरुष कहीइ ए किसिउ ॥ २१९ ॥ गोकुल वृद्धवंत अतिरूप, कहिउं वसुदेवि कान्ह सरूप प्रेतकाज सहू कंसह करई, जीवयिशा अधिकुं दुख धरइ ||२२० ॥ मुझ भरतार हणी दुख सोइ, सूतु सीह जगावीउ सोइ जरासंध मझ मोटउ तात, थोडे दिने करीसइ तुम्ह घात ॥ २२२ ॥
थी (जी) वयशा कोपि इम कही, पीहरि पुहचइ राजगृही जरासिंध आगलि दुख कहइ, रोखता रोती नवि रहई ॥ २२३ ॥ जरासिंध कहई वछि म रोइ, यादवनइ सुड कीधउं जोइ एहवुं वयण सुणी गहगही, जीवयशा पोहरि सुखि रही ||२२३ ||
अहीं १८ नंबर नथी अपायो भूलथी सीधो १८ ने स्थाने १९ छे अने तेने में योग्य क्रमे सुधार्युं छे.
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अनुसंधान-२८
ढाल विवाहलउ मथुरा नगरी मांडीउ वसुदेवि जंग सरूप रे कठपंजरा थिकु तव काढीउं उग्रसेन भूप रे ॥२२४|| जोसी लगन गणावीठं कान्हु कुमर परणावीई रे नाचई निरुपम नारीय, अमरीरूप हरावीई ए ।।२२५॥ तलिया तोरण ललकइ, लहकइ ए वन्नर वालि रे घरि घरि हुइ वधामणां, रंग हुइ सवि साल रे ॥२२६॥ धवल मंगल सवि सूहवि, गावई निअ मनि रंग रे सत्यभामा सिणगारीअ, सारीअ ऊगटि अंग रे ।।२२७॥ श्रीपति भोग पुरंदर, सुंदर अति सुकुमाल रे । गुहिर मृदंग वजावई, गावइ गीत रसाल रे ॥२२८॥* इणि परि सयल महोत्सव, नरवर धरी उत्साह रे केशव सत्यभामा तणउं, मन रंग कीध वीवाह रे ॥२२९॥ तव नेमित्तिय आवीउ, पूछइ इसिउं विचार रे जरासंध इम (अम्ह) ऊपर्नु वयरअइ अनिवार [रे] ॥२३०॥ कहइ नैमित्तिय सांभलु, मेली सहि परिवार रे दक्षण दिशि तुम्हि संचरुं, लिहिसिउं तु जयजयकार रे ॥२३१।। सत्यभामा प्रसवइ जव, पुत्रयुगल जिणि ठामि रे निरभय यादव सहू मिली, वसज्यो तिणि ठामि रे ॥२३२।। इसिउ सुणी सवि यादव, मेलि कटक बहूत रे छडे पीआणे चालीआ, वीझ गिरिंद पहूत रे ॥२३३।।
दहा जरासिंध हिव सांभली, यादव गया विदेसि
कटक सजाई तुं करई, पूठि जावा रेसि ॥२३४॥ ★ नोंध : २२९ नंबर अपायो नथी. में रही गयेल नंबर सुधारीने मूकेल छे.)
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कालिक सुत इम वीनवई, यादव केही माउ एह काज मझन कहु ए छई थोडी वात ॥ २३५ ॥ जिहां जाइ तिहां थां (थी) मिली, तिह करूं संहार अहणि पाछउं नवि वलउं एह प्रतिज्ञा सार ||२३६ || कटक लेइनइ चालीउं, व्यंधाचलि आवंत यादव सघले जाणीउ, तस भय अधिक धरंत ॥ २३७ ॥
तव यादव कुलदेवता, सानधि भाव धरेवि वंध्याचिलगिरि पांखत्ती, चिहिना सहस करेइ ॥ २३८ ॥ ते परजालि चिहि घणी, डोकरी रूप धरि कुलदेवति करुणासरइ, गाढइ रुदन करेड़ ॥२३९॥
कटक सहित ( सहित) कालिककुमर, तिहां आविउ पूछेइ संध्यावेला एकला, ए सिउ रुदन करेइ ? ॥२४०॥
तुझ आवंता भय थिका बीहना यादव लक्ष चिहि माहे आ सवि बलइ, दीसइ छई परतक्ष || २४१ ||
हुं केशवनी धावि छउँ, मोहि करु विलाप इम कहीनई देवता, चिहि माहि दीधी झाप ॥ २४२ ॥
जिहां हुइ तिहांथी काढिवा, चिहि माहि झंपा दीध कालक काल करिडं तिसिहं, काज न पूरिउं सीध ॥ २४३ ॥
दिणयर ऊगिउं जाईउ, चिहि नवि दीसइ एक कालक क्षय जाणी करी, नासइ कटकसु छेक ॥२४४||
सूषि (खि) पहूतां यादव सवे, सोरठ देश मज्झारि सत्यभामा सुत जाईआ, भीरु भीमक सुविचार || २४५ ||
तिहां अठ्ठमुं तप करी, हरि आराध्य हेव पुण्य प्रभावइ आवीउं, धनद अनोपम देव || २४६ ||
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सोवनवर आवास घर चउपट पोलि पगार नगरी नामई द्वारिका, कीधी धनदइ सार ॥२४७॥
वस्तु अमरनगरी अमरनगरी तणउं अवतार दीसई धनपति धवलहर गिरुअ गोगु(मु)ष(ख) भमरी मनोहर देवभूअण घण दीपता, कनक सार प्रकार सुंदर ।।२४८।। नव बारी निरुपम नगरी, जोयण बार विशाल देवह नीमी द्वारिका, यादव वसइ भूआल ॥२४९।।
चउपइ यादव कुल कोटि छपन्न, तेह माहि निवसइ धनधन्न बाहरि तिहां बहुतरि कुल कोडि, यादव वसई नहीं इक खोडि ॥२५०॥ केते वरसि गओ इक वार, सारथवाहि कहिउं वचार द्वारिका नगरी यादव सुणी, जरासिंधु राई सुधि सुणी ॥२५१।। पूरव वयरि चिंतइ इसिउं, हजी यादव जीवि ए किसिउं पुत्र जमाई बे मुझ हण्यां, हिव ए सही देवि अवगण्या ॥२५२॥ जरासिंध तव थिउं विकराल, दह दिसि कटक मिलई ततकाल एक असुर जिम काल कृतांत, मोडई मूछ महा बलवंत ॥२५३॥ मदबिंभल मयगल माचता, तरल तुरंगम सवि नाचता रथ पायका नवि लहीइ पार, दंडायुध छत्रीसइ अपार ॥२५४।। पाष(ख)र टोपनई जरह रह नइ जीण, सुभट कोइ नवि दीसई दीण वाजइ मदनभेरि रणतूर, चालइ कटक समुद्रह पूर ॥२५५।। वाटइ पर्वत कीजइ चूरि, (खे)हाडंबरि छायु सूर शेषनाग पणि न सहइ भार, जाणे धरणे 5जइ थाहर ॥२५६!!
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छडे पीआणे कटक अपार, परंतु सोरठ देस मझारि ते जाणी यादव गहगहइ, वैरि पराक्रम नवि सांसहई || २५७||
कृष्ण राम नेमीसर नाथ, समुद्रविजय वसुदेवह साथ यादव तणी मिलइ कुल कोडि, दसई दसार सबा ( ब ) ल नही खोडि
॥२५८॥
साम्हा आवी मंडई झूझ, घणा दि वदतुं प्रगटइ गूझ गयमर कु ( कुं) भि करई एक घाउ, एक वयरी सिरिपर परठिई पाउ
॥२५९॥
कोपि मस्तक विण एक भिडई, झूझंता धरणि तलि पडइं एक भड ऊडइ मोडी मूझ, मयगलनां छेदइ सिरि पूछ || २६१ ॥
नागपाश बधइं बल बंड, इक त्रोडि नाखईं शतखंड घाय तणउं तिहां न पडई चूक, भड भाजीनई कीजई चूक || २६१ ।।
यादव अति दीसइ झूझार, जरासिंध तव करीय विचार मेल्ही जरा यादवदल माहि, सुभट सवे छंडाव्या आहि ॥ २६२ ॥
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यादव कटकि जरा विस्तरी, ततखिणी सुभट पड्या थरहरी इकि वयण भरि छांडइ चीस, कर कंपावरं धूणइ सीस ॥ २६३ ॥ धरणि पड्या मुहि मूकई लाल, बोल न बोलइ जाणे बाल विगति न नाण निसिनइ दीस, हयगयनी नवि सुणी हीस ॥ २६४॥
नेमिनाथ नारायण विना, सुभट सहु नाठी चेतना
चिंतातुर माधव मन माहि, इहां कहीनी नवि लागइ आहि || २६५॥
सिउं होस पूछई जिनराय, नेमिसरि तब कहिउ उपाय पायालि छ प्रतिमा पास, ते सुर नरनी पूरई आ || २६६ ||
तेहना पगर्नु आवइ नीर, तुं सवि हुइ निराकुल वीर ते किम आवइ हरि नवि लहइ, वलतु नेमीसर इम कहइ ॥ २६७॥
अट्ठम तप करि तुं गोविंद, तप महिमा आवइ धरणिद अवधिज्ञान करी जाणिसिह, ते सुर पगथी धोअण आणसइ || २६८ ॥
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अनुसंधान-२८
हरि बोलइ ए साचुं मेल, नगर माहि पडसिइ पणि भेल । कहइ नेमि तुम्हि म करु खोह, जरासिंधु दल करिसुं निरोह ॥२६९।। इम कही तप कीआ गोविंद, पुण्यभावि आविउं खा(धर)णंद वात कही ते जलनी इसी, सुरवर बोलइ इम तव हसी ॥२७०।। कांइ कीधु एवडु उपाय, एह जि जिनना उहली (?) खाय काई न छांटउं सेना सवे, विघन रोग नवि आवइ भवे ॥२७१।। लाख राय जिणि रुंध्या जोइ, सोइ पुरुष सामान्य न होइ एह वातनुं न लहइ थाय, ते तु कहीइ मूरख राय ॥२७२।। अनंत बल जिनवर देव, चउसट्ठि इंद्र करइ पयसेव विधन सवे दूरइ नीगमइ, रोग शोक नामई उपशमई ॥२७३॥ हरि बोलई अह्मि न लहउ सार, तु सुर आणी आपिउ वारि छाटिउ सेन निराकुल अंग, तु वली सुभट धरइ रणरंग ॥२७४॥ एक निरता वीजोइ वाह, लीधई टोप अन्नइ सन्नाह बाण तणी धारा धारणी, तिणि वयरी कीधा रेवणी ॥२७५।। समरभूमि दीसई अति क्रूर, रुधिर नदीना पसरियां पूर जरह जीणनइ चूटइ जोड, वीर सवे तिहां पूरई कोड ॥२७६।। समरांगण जोवा सुर मिलई, सिंहनादि तेहूं खलभलई वेणिधर इक नाखई दूरि, सुभट तिहां मचकोडिआ भूरि ॥२७७।। बिहुँ कटक करतां संग्राम, छ मास हुआ जिम रावण राम जरासंध नारायण तेउ, युध करइ हिव साथइ बेउ ।।२७८।। पंचायण परि बिहु बलवंत, विविध परई दीसई झूझंत मुष्टि धाय पर्वत चूरंति, दंडायुध छत्रीस धरंति ॥२७९।। ए वयरी दुर्जेय अभंग, जरासिंध चिंतइ मनभंग अगनिझाल झलकति विशाल, चक्ररयण मूकिउ ततकाल ।।२८०॥
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सिर पाखलि परदक्षिण देइ, ते आवी हरि हाथ रहेइ वलतउ तेह जे हरि मूकेइ, प्रति वासुदेव प्राण चूकेइ ॥२८१।। चक लेइ आविउं तस सीस, पुहती यादव तणी जगीस सुरवर पुष्पवृष्टि तव करइ, बंदण जय जय उच्चरइ ॥२८२॥ वासुदेव नवमउ ए सही, हरखी सुर जाइ इम कही सात रयण ऊपना जिसई, त्रिणि खंड हरि साधइ तिसई ॥२८३।। देव असुर नवि लोपइ आण, कोडि सिलाधर अधिक पराण सोलि सहस नृप मुकुट धरंति, वासुदेव उलग सारंति ॥२८४|| उमावइ गोरी गंधारि अनइ सुसीमा लक्षण नारि सत्यभामा रुक्मणि जंबुवइ, आठि अग्रमहिषी हरि हवइ ॥२८५।। एवं सहस छत्रीसइ नारि, वासुदेव परणइ सुविचार सांब पजून प्रमुख सुत सार, अऊठ कोडि दुर्दंत कुमार ॥२८६।। द्वारिकानगरी नव नव रंग, वासुदेव नवमउ अति चंग महामहोत्सव अतिहि उदार, दिनि दिनि यादव जयजयकार ॥२८७।।
जिम जिम वाधई ते कुमर ए-ढाल हिव निरूपम गुण नेमि जिण, समुद्रविजय सुत सार तुं नगर माहि रामति रमइ ए, मेल्हइ राग विकार तुं ॥२८८।। एक वार भमतुं गयु ए, हरिनी आयुध शाल सधर धनुष सारंग तिहां, चाडावइ चउसाल तु ॥२८९॥ गदाचक्र हथीआर सवे, शम्मी मेल्हा नेमि वासुदेव विण कहिं नरिं, न चलई निश्चइ खेम तु ॥२९०।। शंखनाद जव पूरीउ ए, थरहरीउ ब्रह्मांड अचल चलइ गिरिवरसिहर, त्रासइ अति बलवंत ॥२९॥ नाद सुणि नारायणि ए, चंता कीधी चिंतिउ इंद्र किसिउं ए अवतरिउ ए, ए नही रूअडी रीति तु ॥२९२।।
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मुझ टाली पूरि सकइ अ, सबल शंख ए कुंण तु नेमिकुमर जाणी करी अ, हरि चिंतइ मनि खूंण तु ॥ २९३ ॥
अनुसंधान - २८
हरि नेमीसर तेडीउंए, बाह नमावइ. बेड तु
कमलनाल जिम बांह हरि तुं, नेमिइ वाली लेउ तु ॥ २९४ ॥
नेमि बाह हरि वालतु ए, माधव वलगु एम तु तरुअर डालि हींचतु ए. कपिवर दीसइ जेम तु ॥ २९५ ॥
अति बल जाणी चतवइ ए, लेसई ए मज्झ राज तु हरिनइ रामि इसिउ कहिइ ए ए नही राजि काज तु ॥ २९६ ॥
एक नारि परणइ नहींअ, नेमीसर नीराग तु
हरि तेडइ वइसिउं सणी, गिउं अंतेउर अति राग तु ||२९७||
अभिनव रूप अंतेउरीअ, साथ नेमि लेयंतु
वनि जाइ तव आवीउ ए, महीयलि मास वसंत तु ॥२९८॥
मुरीयडा सहकार सवि चंपकनइ नारिंग तु
कामकुं भमरु (?) रुणझुण ए, चीति धरंतु रंग तु ॥ २९९ ॥ कोइलडी कलिरव करई ए विर [ ही ] हीअडां न सुहाइ तु चंदन परिमल महमहइ ए, वा मलयानिल वाइ तु ||३०० || हरि नारी सवि मोकलीय, खडोखली झीलंति तु सुरहि नीर सींगी भरीयां, नेमीसर छाटंति तु ||३०१ || हावभाव अधिक धरई ए, देउर मनावइ नारि तु नेमिकुमर नीराग मन, पुहचइ नही विकार तु ॥ ३०२ ॥
पाणिग्रहण मानइ नहीय, तव नारीय पभंणति तु देउर एक नारी तणउं ए, तइ निर्वाह वहंति तु ॥ ३०३ ॥ इस्यां वचन बहु बोलीयां ए, नवि बोलइ जिनराय तु मानि मानिउं इम कहीअ, जणाविउं हरिराय तु ॥ ३०४ ||
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उग्रसेन बेटी सगण, राजीमती सरंग तु नेमि वीवाहनु मेलीउ ए, माडिउ मोटउ जंग तु ॥३०५||
उहिव रुअडउ देश ए-ढाल लगन लेई सविचार, सार महोत्सव सवि करई ए सज्जन दीजई मान, गान मनोहर आलविइ ए ॥३०६|| नेमिकुमर वर जान, मानव महीअलि त[व] वस्यु ओ गयमर चडई कुमार, हार मुकुट सिरि मणहरु ए ||३०७।। चामर ढालइ चउसाल, साल सदा फूल अभिनवउ ए चालइ जान सुचंग तु, रंग हुई वली नव नवु ए ॥३०८॥ पहुतां तोरणि बारि, पसुअ पोकारित तव सुणइ हे सारथि वचन विचार, एह [-] न सारही इम सुणइ हे ॥३०९।। कटरे लोग अयाण, जाण नही निय मनि इसिउं हे जीव हणिइ नही धर्म, कर्म करि जोउ इ जन इसिउं हे ॥३१०॥ सवि हुं धर्मविचार, तारण जीवदया कहइ हे रुलीया ते संसार, सारदया जे नवि लहइं हे ॥३१॥ दया न जाणइ नाम, ठाम वंच्छि जे सुख तणउ ए ते नर विसआहारि, जीवअ वंच्छई आपणउ हे ॥३१२।। अति थामे करतां रीव, जीव छोडि सवि जिणवरू ए ए संसार असार, सार मार मथिउ सादरू मे ॥३१३।। देइ संवत्सर दान, मानव सवि ऊरण करइ रेवइ गिरिवर शृंगि, रंगि संयम सिरि वरइ ए ॥३१४॥ चउपन्न दिन कीअ थान, न्यान अनंतु ऊपर्नु ए वसुहां विहरइ स्वामि, नामि नवनिधि संपजइ ए ॥३१५।।
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अनुसंधान-२८
राग मेघ तोरणि आवीउ वली गयु, सुणीय पसू पोकार रे विरहि दाझइ राणी रायमइ, हीइ हार अंगार रे ॥३१६।। राजलि राणी वीनवइ, मोरा नीठर नाहा रे सुणि न वयण स्वामी सोमलां, न छोडउ तोरी बांह रे ॥३१७।। सद्गुण तुं विण दोस दई, ईम दाखि न छेह रे वली वीसारि म वल्हहा, नव भव तणउ नेह रे ॥३१८।। चंदन चंदन केवडी, नही राजलि रंग रे करई वेदन वली केवडी, नही चंपक चंग रे ॥२१९॥ राजलि केडई संचरइ गिरनारि नरनइ शृं(सं)गि रे झिरिमिरि वरसइ इच्छइ मेहलर, घण भीजइ छइ अंग रे ॥३२०।। जिणवर हाथि चारित्र लीउं, संवेग [रंग] अभंग रे केवलि पामी सिद्धिगइ, हुइ अविचल रंग रे ॥३२१॥
चउपइ बावीसमउं जिणेसर सामि, पाप पडल सवि नासइ नामि द्वारिका नगरी पुहतां जिसिइं, देवे समोसरण कीउ तिसइं ॥३२२॥ चउसठि इंद्र करई जस सेव, आवई हिव नवमुं वासुदेव अभिगम पंच धरी वंदेइ, जिनवर वाणी अमृत वरसेइ ॥३२३।। देवकिना उत्तम छय पुत्र, जिणवरि हाथि लीउं चारित्र देवकि घरि आव्या वहिरवा, अनुक्रम दीठा ते अभिनवा ॥३२४॥ नेह अधिक उपन्नउं इसिउं, जिन पूच्छई सामि ए किसउं जिन कहइ ए तुझ सुत जूजूआ, सुलसा घरि वृद्धिवंता हुआ ।।३२५।। संवेगी ए संयम लीध, देवकि हीइ विमासण कीध सात पुत्र माहरइ सविवेक, स्तन्यपान न कराविउ एक ||३२६॥
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अपुत्रीणी छते सुत सात, दुक्ख धरंती दीठी मात हरि आराधई हरिणगमेस, देव कहई सांभलि सविवेक ॥३२७।। देवकिपुत्र हुसइ अतिसार, चारित्र लेसिइ त्यजी संसार थानकि इम कही गिउ देव, देवकि गर्भ उपन्न हेव ॥३२८॥ पूरे दिने सुत आव्यु जाम, गयसुकुमाल दीउ तसु नाम, वृद्धिवंत गुणवंतु वीर, पुण्यप्रभावइ गुणगंभीर ॥३२९।। राजकन्या नइ विप्रह सुता, सोमशर्म नामि तस पिता करीय महोत्सव माधव सोइ, तव परणाविउ कन्या दोइ ॥३३०।। समोसरीआ तव श्री जिनराय, भवियण बइसइ पणमीय पाय जिन भाखइ संसार प्रपंच, सुणइ सहू सुर नर तिर्यंच ॥३३१॥ जामण मरण दुक्ख भंडार, चिहुं गते कहीइ संसार फिरि फिरि जीव भमिउ बहुवार, भवसायर नवि लाधउ पार ॥३३२॥ धनयौवन जे हूंउ जलबिंद, जीवी कृष्णपक्षि जिम चंद राजरिद्धि नइ रमणी रंग, निश्चल जाणे नीर तरंग ॥३३३।। दुलहु माणसनुं भव लही, जिणवाणी आराधउ सही दुक्ख तणउ जिम आणी अंत, प्राणी पामउ सुक्ख अनंत ॥३३४।। इसिउ सुणी जिण वयण रसाल, मनि संवेगी गयसुकुमाल यौवनवय परहरीय बि नारी, कीधउ चारित्र अंगीकार ॥३३५॥ जइ मसाणि ऋषि कासग करइ, ससरु तिहां रीसइ वरइ मस्तकि बाधि माटी पालि, अति अंगारे भरी विचालि ॥३३६॥ क्षमावंत मुनिवर चउसाल, धन धन गिरुउ गयसुकुमाल देह दाझतई सघला कर्म, परजाली पामिउ शिवशर्म ॥३३७॥ हिव हरि पूछई जिन कहइ वात, द्वारिका नगरीनुं अवदात कोपि कुमर तुझ अवराह, द्वीपायन रिषि करसइ दाह ।।३३८||
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अनुसंधान-२८
हिव हरि मदवंता माधवना पूत, नगरी बाहरि गया बहूत द्विपायन रिषि आकुल कीड, करीय नीयाणउं व्यंतर हूउ ॥३३९।। नगर माहिं तपतणउ विभाग, बार वरस नवि लाधउ लाग पुण्य जव समतां होइ, द्वारिकादाह करइ तव सोइ ॥३४०॥ बहु यादव व्रत अंगीकरइ, सयल उपद्रव ते ऊतरइ केता सुर रमणी वर थया, के आराधी शिवपुरी गया ॥३४१॥ शुभ ध्यानइ वसुदेव कुमार, अणसण लीइ नारी परिवार पुण्य प्रभावइ सुरलोक पहूत, लीला सुख भोगवइ बहूत ॥३४२।। केसव राम गया वन माहि, तृषा लागीनइ करइ आणाही वनि बलदेव गयउ जल काजि, तव तिहां सूतु केशव राजि ॥३४३॥ हरि बंधव तिहां जराकुमार, हरिनइ लागु बाण प्रहार जिनभाषित गति पहुतु खेव, देखी शोक धरइ बलदेव ॥३४४ कधि वहिउँ छ मास शरीर, सुर प्रतिबोधि जागीउ वीर नेमि पासि चारित्र आदरइ, निय काया तपि निरमल करइ ॥३४५।। मोह धरइ स्त्री देखी रूप, नगरमाहि नावई रिखिभूप वनि निवसई मनि नही विकार, सपरिवार आविउं रथकार ॥३४६।। मुनिवर तिहां विहरणि आवीउ, भाव धरी तिणि विहराविउ रिषिभ तिहां करतुं सेवना, देखी हरिण धरई भावना ॥३४७॥
दूहा भावण भावइ हरिणलु, नयणे नीर भरंति मुनि विहरावत करि करी, जउ हुं माणस हुँत ।।३४८॥ ततखिणि वडतरु अरणी, अधछेदी छइ डाल पवनवेगि उपरि पड़ी, त्रिहूं पहूतुं काल ॥३४९।। सूत्रहारनइ हरिणलउं, बलदेव हरिखी राय देवलोकि पंचमि गया, त्रिणिइ पुण्य पसाय ॥३५०॥
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मणुअ जनम पामी हुसिह, सुख अनंत निवास नेमि सीस बलभद्र रिषि, पूरु मनची आस ॥ ३५१ ॥
ढाल जयमालानी
हिव सामी नेमि जिणंद, पय सेवई चउसठि इंद
पडिबोही बहु परिवार, हूउं सिद्धि रमणि उरि हार ॥३५२ ॥
धन एह चरीअ विशाल, धन धन जिन धर्म रसाल
एह चरीय सुणडं अति चंग, जिम पामु अविहड रंग ॥ ३५३ ॥ आंचली
श्रीनेमि जिणेसर नामि, नविनधि हुई घरि ठामि
श्रीनेमि जिणंद अराहई, तस अलीय विघन सवि जाई || ३५४॥
जस नामइ वंछित सिद्धि, जस नामइ, अविहड रिद्धि तस नाम जपु निसदीस, जिम पूजइ मनह जगी ||३५५ || तपगछ केरु सिणगार, श्रीलखिमीसागर गणधार श्रीसुमतिसाधूसूरीसीस, श्रीहेमविमलसूरीस ||३५६||
वर लास नयरि धरि हरिस, सय पन्नर सत्तावन वरिस कुलचरण सुपंडित सीस, कहइ हरखकुल निसिदीस ||३५७ || धन धन एह चरिय विशाल, धन धन जिन धरम रसाल एह चरीय सुणउ अतिचंग, जिम पामु अविहड रंग || ३५८ ॥
इतिश्रीवसुदेवचुपइ राग गुडी
सीरोही नगरे भ० श्री श्री श्री श्रीविद्यासागरसूरि आ० श्री श्री श्रीलिखिमीतिलकसूरि शिष्य मुनि कर्मसुंदरेण लिखतं स्वगछ निमत्तं ॥ छ ||
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टी.वी. टावर सामे ड्राइव इन रोड, थलतेज अमदावाद - १५
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कडी. १७
कडी १८
कडी. २०
कडी २६
कडी २८
कडी ३०
कडी ३१
कड़ी ३१
कड़ी ३७
कडी ४६
कडी ४६
कड़ी ४६
कडी ४७
कडी ४७
कडी ५२
कडी ७०
कडी ७४
कड़ी ७६
छइ आहि
खोह
=
= खीण
डुंब = चांडाल / अत्यंज
डीलि = जात वडे
विकुवी
खया - क्षय / नाश
वरांसिउ = भ्रांतिमां पडवुं / वहोरावीश.
खपे नहि ते
असूजतुं
नीआणुं
उअरि =
मईलउ
मेलुं / दुष्ट
डोहलउ = गर्भवतीनी ईच्छा / दोहद पेई
= पेटी
सोवन्न = सुवर्ण
कीसा = शा माटे
तणी = ते / तेणे
अठमि ससीहर
वउलिया = पसार थया
भिलई = लडे / कूड = कपट / अंचई
ठपको
अघरां शब्दोनी यादी हिंमत छे / शक्ति छे.
थउ छई
वि
=
*
झूझ
गूझ
कडी ५५
कडी ५६
कडी ५७ कडी ५८ ऊलंभा = कूटिउ = मार्यो
कडी ५८
कडी ५९
कडी ५९
कडी ६२
=
=
=
=
दिव्य सामर्थ्यथी उत्पन्न करवुं.
सांसहिस्यु = सांखीश, सहन करीश
थयुं
तपनुं फळ इच्छ उदरि / पेटे
=
हवे
सीमाहेडउ = सीमाडो
आठमनो चंद्र
युद्ध
गुह्य
अशोभनीय वचनो कहेवा
अनुसंधान - २८
भांडण लीला
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कडी ७७ ताकीनई = ताकीने कडी ७९ एकंत = एकांत । खानगीमां कड़ी ८४ करमोचनि = पाणिग्रहण कडी ८४ वसि - वश कडी ८९ दोगंडुक = च्यवे त्यारथी नित्य आनंदमा रहेता देव कडी ९० बिन्ह = बनेने कडी ९२ अप्रीसिङ = पीरस्याविना कडी ९३ जिमति = जमती - खातांखातां कडी ९४
ठाय = स्थान कड़ी ९५ विणसइ = बगडशे कडी ९७ उन्हालउ = उनाळो कडी ९८
तावडतडको/ताप
परहोउ=छोड्युं. कडी ९९ विलगीनई लेवी - वळगीने लीधुं कडी १०० शंखाणलई = शंका लावे छे कडी १०७ पोलि = दरवाजो कडी १०९ आपण' = पोतानी जात
छइ दहुं = बाळे छे कडी ११४ नीठर = नठोर / निष्ठुर
नीटोल = साव । नक्की । नकामुं कडी ११८ प्रेतकाज = मरणोत्तर क्रिया कडी ११९ सखाइ = साथे
पालउ = पगे चालतो
पुंलई = गयो कडी १२० जीपई = जीते कडी १२१ छबी = अकडीने । स्पर्श करीने कडी १२१ आंमला = अभिमान कडी १२४ पेढाल = नगरनुं नाम
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अनुसंधान-२८
कडी १२८ छेह = धूळ
उ = ओ
तांह = त्यां कडी १३७ वहीलउ = वहेलो कड़ी ४० भावठि = जंजाळ । मानसिक उपाधि । मुसीबत / दुःख कडी १४३ हस्थिणाउरी = हस्तिनापुरी कडी १४५ अनीठ = अनंत कडी १५३ सादरं = श्रद्धाथी । ईच्छाथी कडी १५८ जासक = घणा कडी १६० ऊगटि = स्नान द्रव्य कडी १६१ कणयर = करेण फूल / कांबडी=सोटी कडी १६२ सीहलंकी = पातळी कमर कडी १६२ इसीए = एवी कडी १६४ तिलउ = तिलक कडी १६५ चउरीसिहि = चोटीमां
सूहवी = सौभाग्यवती कडी १६७ मदभिभल :- मदमस्त / मदिराने वश थयेली कड़ी १६८ देउर-दियर कडी १६८ विगोइ = वगोवी कडी १६९ उपघात = वध कडी १७० मयगल = हाथी
वाई टलइ = वायुथी वीखराय
उल्हाइ = ओलवाय कडी १७५ मिल्हइ = मूके
खेव = दूर करे / विलंब / तरत कडी १८५ पाहरी = पहेरावाळा कडी १८५ सिउं = शुं ? कडी १८७ मिसिई = निमित्ते कडी १८९ आउ = आयुष्य । भेउं = भेद
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1 77 77 7777777777777971967
कडी १९५ सहिंनाणी = ओळखाण कडी २०१ एतां = एटला कडी २०२ शस = शस्त्र कडी २०५ द्रह = धरो । सरोवर कडी २०९ बिहई = बन्ने । सई = साथे कडी २१० पहरा = परा । आधा कडी २११ सिउं = साथे, आंकतूल-आकडानुं रू/शेमर, जेहसिउ = जेथी कडी २१४ पाखलि = पाछळ कडी २१५ वीटु = वीट-हलका / लंपटता भर्या कडी २१५ चिहुं पखे = चारे बाजु कडी २३२ सही = निश्चित कडी २३५ माउ = मात्र । कडी २४१ परतक्ष = प्रत्यक्ष कडी २४३ झाप = कूदको । झंपा कडी २४४ तिहांथा = त्यांथी कडी २४८ चउपट = चौटो कडी २४९ पोलि = दरवाजो
पगार = प्राकार / किल्लो
धनदई = कुबेरे कडी २५५ पाखर = बख्तर कडी २५६ थाहर = स्थान कडी २६० गयमर = गजवर / हाथी कडी २६२ झूझार = भयंकर कडी २६५ आहि = शक्ति / हिंमत कडी २६६ पायालि = पाताळमां कडी २७२ लहई = समज / ओळख कडी २७६ जरह = एक प्रकार- बख्तर कडी २७६ जरह जीणनई = बखतरना प्रकारो कडी २८२ जगीस - होश / अभिलाषा
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________________ 94 अनुसंधान-२८ कडी 284 उलग = सेवक/विनंति, परदेशमा राजसेवा कडी 299 मुरीयडा = म्होर्या कडी 301 खडोखली = क्रीडा माटेनी नानी वाव कडी 307 तरवयु = टोळे मळ्युं / उभरायु कडी 313 मार = अडचण सार = सहाय / साचुं / परिणाम कडी 314 ऊरण - ऋणमुक्त कडी 332 जामण = जन्म कडी 37 कासग = काउसग्ग कड़ी 338 चउसाल = विशाळ सुधारो अनुसन्धान-२७मां पृ. 15 पर एक विधान आ प्रमाणे थयुं छे : "आ पछी पालित्ताचार्य तथा बप्पभट्टसूरिनां नामो आवे छे. अहीं पण एक ऐतिहासिक विसंगति जोवा मळे छे, ते ए के मुरंड राजानो सम्बन्ध बप्पभट्टिसूरि जोडे होवानुं प्रसिद्ध छे, छतां तेनो सम्बन्ध पादलिप्ताचार्य साथे जोडी देवायो छे." / आ विधान बराबर नथी. मुरंडनो सम्बन्ध खरेखर पादलिताचार्य जोडे ज हतो, ते प्रबन्ध-ग्रन्थो थकी सिद्ध ज छे. सुज्ञ वाचकोने आ सम्पादकीय भूल सुधारी लेवा विज्ञप्ति.