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July 2004
कालिक सुत इम वीनवई, यादव केही माउ एह काज मझन कहु ए छई थोडी वात ॥ २३५ ॥ जिहां जाइ तिहां थां (थी) मिली, तिह करूं संहार अहणि पाछउं नवि वलउं एह प्रतिज्ञा सार ||२३६ || कटक लेइनइ चालीउं, व्यंधाचलि आवंत यादव सघले जाणीउ, तस भय अधिक धरंत ॥ २३७ ॥
तव यादव कुलदेवता, सानधि भाव धरेवि वंध्याचिलगिरि पांखत्ती, चिहिना सहस करेइ ॥ २३८ ॥ ते परजालि चिहि घणी, डोकरी रूप धरि कुलदेवति करुणासरइ, गाढइ रुदन करेड़ ॥२३९॥
कटक सहित ( सहित) कालिककुमर, तिहां आविउ पूछेइ संध्यावेला एकला, ए सिउ रुदन करेइ ? ॥२४०॥
तुझ आवंता भय थिका बीहना यादव लक्ष चिहि माहे आ सवि बलइ, दीसइ छई परतक्ष || २४१ ||
हुं केशवनी धावि छउँ, मोहि करु विलाप इम कहीनई देवता, चिहि माहि दीधी झाप ॥ २४२ ॥
जिहां हुइ तिहांथी काढिवा, चिहि माहि झंपा दीध कालक काल करिडं तिसिहं, काज न पूरिउं सीध ॥ २४३ ॥
दिणयर ऊगिउं जाईउ, चिहि नवि दीसइ एक कालक क्षय जाणी करी, नासइ कटकसु छेक ॥२४४||
सूषि (खि) पहूतां यादव सवे, सोरठ देश मज्झारि सत्यभामा सुत जाईआ, भीरु भीमक सुविचार || २४५ ||
तिहां अठ्ठमुं तप करी, हरि आराध्य हेव पुण्य प्रभावइ आवीउं, धनद अनोपम देव || २४६ ||
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