Book Title: Vasudev Chupai Author(s): Rasila Kadia Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ हर्षकुल रचित वसुदेवचुपइ रसीला कडीआ ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरना ग्रन्थभण्डारमाथी सू. नं. ८४६० नंबरना गुटकामांथी, पृ. ५१ थी ६० पर्यन्तना पृष्ठोमां आवेली प्रस्तुत कृति 'वसुदेव चुपइ' ने श्री लक्ष्मणभाई भोजकना मार्गदर्शन हेठळ तैयार करवामां आवी छे. १० पृष्ठ अने ३५८ कडीयुक्त आ कृति वसुदेवचरित्र तरीके हाल उपलब्ध तेमनां चरित्रोमां एक विशेष उमेरारूप कृति छे. वळी, तेमां प्रशस्ति तथा पुष्पिका आपेल होई, तेमां रचनाकारे पोताना नाम तथा गुरु परंपरानो उल्लेख करेल होइ तथा रचना संवत आपेल होवाथी कृति मूल्यवान बनेल छे. आ ज रीते लिपिकारे पण पोतानुं नाम, स्थळनाम तथा लखवानो हेतु जणाव्यो छे. वि.सं. १५५७मां लास नगरमां तपागच्छना शणगारसमा श्री लक्ष्मीसागरसूरिना शिष्य सुमतिसागर - हेमविमलना शिष्य कुलचरणना सुपंडित शिष्य हरखकुल अर्थात् हर्षकुले प्रस्तुत कृति 'वसुदेवचुपइ' रचेल छे अने सिरोहीनगरमा भट्टारक विद्यासागरसूरिना लक्ष्मीतिलकसूरिना शिष्य श्री मुनि कर्मसुन्दरे आ कृतिने पोताना गच्छ माटे लखी होवानुं जणाव्युं छे. तेओए लेखन संवत आपी नथी कृति राग गुडीमां रचाई होवानुं अन्ते जणावेल छे. जैन गूर्जर कविओ भा. ७नी संशोधित आवृत्तिमां वसुदेव चोपाइ तथा रासनी माहिती आपेल छे तेमां आ कृतिनो उल्लेख छे अने तेना पहेला भागमां पृ. २१४ उपर रचनाकार श्रीहर्षकुलनो परिचय आपेल छे. आ कविओ 'बन्धहेतूदयत्रिभंगीसूत्र' रचेल छे. हर्षकलशना नामे पण आ कृति मळे छे. प्रस्तुत कृतिमा केटलेक स्थाने भ्रष्ट पाठ मळता होई, पूर्वापर सम्बन्धे अनुमानित शब्दने | ] चोरस कौंसमां मूकेल छे पण कडी ३०९ मां एक अक्षर भ्रष्ट होइने अवाच्य रह्यो छे त्यां खाली जग्या राखी खाली चोरस कौंस करेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 44