Book Title: Vasudev Chupai Author(s): Rasila Kadia Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ 56 अनुसंधान-२८ प्रस्तुत कृतिना रसकेन्द्रोनो निर्देश जरूरी छे. यादवो अने जरासन्धना युद्धमां कविनी वर्णनकला खीली ऊठी छे. लोकभोग्य दृष्टान्तोथी कथानक रोचक बने छे. अहीं एक दृष्टान्त जणावं. १७०मी कडीमां मदमस्त बनेली जीवयशानो अइमत्त मुनिनां वचनोथी नशो उतरे छे ते जणाववा आपेला दृष्टान्तो केटलां रोचक छे ! मदहानि पामती व्यक्तिनी दशा खरेखर आवी ज होय छे. क्यांक कविनी वर्णनकला ओर खीली ऊठे छे. वसुदेवथी मोहित थती नगरनारीओनी चेष्टाओना अतिशयोक्तिसभर वर्णन बाद कवि लज्जा ए शील छे ते विषये नानकडो निबंध ज आपी दे छे. (जुओ : कडी ९२ थी ९६ मां). साहित्य समाजनुं प्रतिबिंब छे ते उक्ति अहीं सार्थक बने छे. कडी १२९मां वसुदेव ज्यां ज्यां जाय छे. त्यां त्यां सुन्दर कन्याओ परणे छे ते जणावी कहे छे. "हंसानइ सर सरोवर घणा, कुसुम घणा भमराई सपुरिसनइ थानक घणां, देशविदेश गयाइं.'' वसुदेवचुपइ सकल मनोरथ सिद्धि कर, धुरि चउवीस जिणंद पय प्रणमुं भावि करी, भविया नयणानंद ॥१॥. कासमीर मुखमंडणी, मनि समरूं सरसत्ति कविअण वंछित पूरणी, दिइ वाणी सरसति ॥२॥ जे वसुदेव सोहामणउ, यादव कुल शिणगार चरित्र रचउं हुं तेहर्नु, सुणियो अतिह उदार ॥३॥ वस्तु जंबुदीवह (जंबुदीवह) भरहषि(खि)त्तंमि, सोरिपुर वर नयर यदुनरिंद हरिवंसमंडण तसु संतानि सोहामणउ, सूरराय अरिअण विहंडण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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