Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 23
________________ July-2004 उत्तम अतिहिं पराभव्यु, हीअडइ न धरइ डंस च्छेद्यु भेधु दूहव्यु, मधुरु वाजइ वंस ॥१७४।। ते स्वरूप जाणी करी, कंस तणउ वसुदेव पच्छितावइ नीअ हीइ पणि, वाच न मिल्हइ खेव ॥१७५।। मेरु सिखर अविचल वलइ, रवि ऊगिइ निसिहो सपुरिस निअ मुखि उच्चरी, वाच न मिल्हइ तोइ ॥१७६।। चउपइ भद्दिलपुरि जिन धरम सनामि, नागनारि छइ सुलसा नामि सुत कारणि आराधिउ देव, मृतबालक तू इम कहइ हेव ॥१७७।। देवकीना उत्तम छइ पुत्र, कंस मारिवा थिउं अपवित्र ते तुझ आणी आपसि, इहां मृत ताहरा मुकिसु तिहा ॥१७८॥ हरिणगमेसी सुर इम कहइ, मृत बेटा ते कंस जि हरइ शिला आस्फाली नाखइ सवइ, गर्भ सातमउं सुणज्यो हवइ ॥१७९।। दिणयर सीह अनइ गजराज, वन्हि विमान जिसिउं सुरराज पदमसरोवर धज देवकी, सात सुपन देखइ देवकी ॥१८०॥ महाशुक्र सुर कहू चवी, गंगदत्त सुरसुख भोगवी सात सुपन सूचित बहु पुन्न देवकी केरइ उदरि उपन्न ।।१८१।। अभिनव पुण्य मनोरथ थाई, गर्भ दिहाडा हरखि जाई पूरे दिनि सुत जनमिउ किसु, अभिनव रविमंडल हुइ तिस्यउं ॥१८२।। कंसि पाहरी मुक्या जेअ, देवप्रभाविउ उंध्या तेअ सुत लेइ वसुदेव नीकलिङ, बाहरी गोकुलमाहे भिलउ ॥१८३|| नंदह नीअ सुत आपई धणी, नंदनारि तव बेटी जिणी कही वृत्तंत लेइनइ सुता, नगरमाहि आविउ हरि पिता ॥१८४|| देवकिनइं जव आपी सुता तव पीहरी हूआ जागता सिउं जायुं इम पूछई जिसिइं, बेटी लेइ आपी तिसिइं ॥१८५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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