Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 31
________________ July 2004 छडे पीआणे कटक अपार, परंतु सोरठ देस मझारि ते जाणी यादव गहगहइ, वैरि पराक्रम नवि सांसहई || २५७|| कृष्ण राम नेमीसर नाथ, समुद्रविजय वसुदेवह साथ यादव तणी मिलइ कुल कोडि, दसई दसार सबा ( ब ) ल नही खोडि ॥२५८॥ साम्हा आवी मंडई झूझ, घणा दि वदतुं प्रगटइ गूझ गयमर कु ( कुं) भि करई एक घाउ, एक वयरी सिरिपर परठिई पाउ ॥२५९॥ कोपि मस्तक विण एक भिडई, झूझंता धरणि तलि पडइं एक भड ऊडइ मोडी मूझ, मयगलनां छेदइ सिरि पूछ || २६१ ॥ नागपाश बधइं बल बंड, इक त्रोडि नाखईं शतखंड घाय तणउं तिहां न पडई चूक, भड भाजीनई कीजई चूक || २६१ ।। यादव अति दीसइ झूझार, जरासिंध तव करीय विचार मेल्ही जरा यादवदल माहि, सुभट सवे छंडाव्या आहि ॥ २६२ ॥ 81 यादव कटकि जरा विस्तरी, ततखिणी सुभट पड्या थरहरी इकि वयण भरि छांडइ चीस, कर कंपावरं धूणइ सीस ॥ २६३ ॥ धरणि पड्या मुहि मूकई लाल, बोल न बोलइ जाणे बाल विगति न नाण निसिनइ दीस, हयगयनी नवि सुणी हीस ॥ २६४॥ नेमिनाथ नारायण विना, सुभट सहु नाठी चेतना चिंतातुर माधव मन माहि, इहां कहीनी नवि लागइ आहि || २६५॥ सिउं होस पूछई जिनराय, नेमिसरि तब कहिउ उपाय पायालि छ प्रतिमा पास, ते सुर नरनी पूरई आ || २६६ || तेहना पगर्नु आवइ नीर, तुं सवि हुइ निराकुल वीर ते किम आवइ हरि नवि लहइ, वलतु नेमीसर इम कहइ ॥ २६७॥ अट्ठम तप करि तुं गोविंद, तप महिमा आवइ धरणिद अवधिज्ञान करी जाणिसिह, ते सुर पगथी धोअण आणसइ || २६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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