Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 26
________________ 76 धनुष सार सारंग मुट्ठय यमुना द्रह जो नाथसिइ कालीनाग महंत गर्भ सातमुं देवकी, ते तुझ करसई अंत ॥ २०१ || अनुसंधान - २८ चउपइ अश्व वृषभ मेल्हिय, वन माहि, मल्ले बिहूनी अधिकी आहि शस (शस्त्र) अभ्यास करई ते दोइ, नगर माहि नवि जीपइ कोइ ॥ २०२॥ राम सहित केसव वनमाहि, भमइ रमतां माहोमाहि अरिट्ठ अश्वनइ वृषभ महंत, हरि देखी धाइ दुर्दत ॥ २०३ || केशव कोपि मुष्टि प्रहारि, बे पुहचाड्या यम घरिबारि रमलिई हिव आंघो संचरइ, यमुनाजल माहि क्रीडा करइ || २०४ || तेह माहि द्रह एक अताग, सहस फणुं त्तिहां काली नाग लोक भयंकर अति विकराल, नारायणि नायु ततकाल ॥२०५॥ ते स्वरूप कंसि सुणी, नीय वयरी जाणेवा भणी सत्यभामा छई भगिनी सार, रवितलि रूपी अतिहि उदार ॥ २०६॥ यौवन बेस कला अभिराम, मयण राय लीला आराम सयंवरा तस मंडिउं जंग, आपीडं धनुष तिहां सारंग ॥२०७॥ नगर माहि जाणावी वात मल्ल बिहुं मु करी उपघात सारंग धनुष चडावर जेअ, सत्यभामा सही परणई तेअ ॥ २०८॥ सुणीअ वात गोकुल माहि जिसि, नगर माहि बे आव्या तिसिइ वासुदेव साथइं बलदेव, बिह्नई कंस सइं बोलइ हे || २०९ || तेडउ मल्ल जे च्छइ बलवंत, तेहसिउं झूझ करउ एकांत कंस हसी बोलइ गोवाल, तुम्हे पहरा जाउ बिहू बाल ॥ २९० ॥ गिरिवर सिखर चलs जिम वाय, आंकतूल किम मंडइ छाइ जेह सिउ सुभट न मंडई पाग, तिहां तुम्हारउं केहउं लाग ॥२११॥ तिहां आविउ वसुदेव कुमार, नगर लोक सहूइ परिवार मन माहि शंकइ वसुदेव, राम कृष्ण सिउं करसिइ हेव || २१२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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