Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 27
________________ July 2004 कहई कृष्ण अम्ह छू गोवाल, मल्ल बिहुं बलवंत भूआलि जाणीसइ बल तणु प्रमाण, तेडउ मल्ल अतिहिं सपराण || २१३ ॥ * शमि युध करि बल चंड मुष्टिष्क (मस्तिष्क) मूठि कीउं शतखंड सिरि पाखलि केरी चाणूर, कीधड मल्ल चतुभुजि चूर ॥ २१४॥ सारंग धनुष चडाविउं जाम, कंस कटक हक्कारिउं ताम सही जीवतुं जाइ रखे, ए वयरी वीटु चिहुं पखे ॥ २१५ ॥ रामकृष्ण बेहूं बलवंत, कटक साथि दीसई झूझंत एक सुभट धाई धसमसइ, एक रण देखिनई उल्हई || २१६ ॥ एक कायर देखी कमकमई, कृष्ण पाय आवी एक नमई भागा सुभट सवे अति डंस, युध करई नव केसव कंस ॥ २१७॥ वेणिधारीनई कंसह पूठि वास (सु) देव तव मूकि मूठि कंस भवंतरि पुहतु कीउ, देखी लोक सहू वस कीउ ॥२१८॥ * 77 हरि [व] वसुदेव पणमी पाउं, नेहि बोलावई देवकि माई नगरलोक चितइ ए किसउं, कवण पुरुष कहीइ ए किसिउ ॥ २१९ ॥ गोकुल वृद्धवंत अतिरूप, कहिउं वसुदेवि कान्ह सरूप प्रेतकाज सहू कंसह करई, जीवयिशा अधिकुं दुख धरइ ||२२० ॥ मुझ भरतार हणी दुख सोइ, सूतु सीह जगावीउ सोइ जरासंध मझ मोटउ तात, थोडे दिने करीसइ तुम्ह घात ॥ २२२ ॥ थी (जी) वयशा कोपि इम कही, पीहरि पुहचइ राजगृही जरासिंध आगलि दुख कहइ, रोखता रोती नवि रहई ॥ २२३ ॥ जरासिंध कहई वछि म रोइ, यादवनइ सुड कीधउं जोइ एहवुं वयण सुणी गहगही, जीवयशा पोहरि सुखि रही ||२२३ || अहीं १८ नंबर नथी अपायो भूलथी सीधो १८ ने स्थाने १९ छे अने तेने में योग्य क्रमे सुधार्युं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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