Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
78
अनुसंधान-२८
ढाल विवाहलउ मथुरा नगरी मांडीउ वसुदेवि जंग सरूप रे कठपंजरा थिकु तव काढीउं उग्रसेन भूप रे ॥२२४|| जोसी लगन गणावीठं कान्हु कुमर परणावीई रे नाचई निरुपम नारीय, अमरीरूप हरावीई ए ।।२२५॥ तलिया तोरण ललकइ, लहकइ ए वन्नर वालि रे घरि घरि हुइ वधामणां, रंग हुइ सवि साल रे ॥२२६॥ धवल मंगल सवि सूहवि, गावई निअ मनि रंग रे सत्यभामा सिणगारीअ, सारीअ ऊगटि अंग रे ।।२२७॥ श्रीपति भोग पुरंदर, सुंदर अति सुकुमाल रे । गुहिर मृदंग वजावई, गावइ गीत रसाल रे ॥२२८॥* इणि परि सयल महोत्सव, नरवर धरी उत्साह रे केशव सत्यभामा तणउं, मन रंग कीध वीवाह रे ॥२२९॥ तव नेमित्तिय आवीउ, पूछइ इसिउं विचार रे जरासंध इम (अम्ह) ऊपर्नु वयरअइ अनिवार [रे] ॥२३०॥ कहइ नैमित्तिय सांभलु, मेली सहि परिवार रे दक्षण दिशि तुम्हि संचरुं, लिहिसिउं तु जयजयकार रे ॥२३१।। सत्यभामा प्रसवइ जव, पुत्रयुगल जिणि ठामि रे निरभय यादव सहू मिली, वसज्यो तिणि ठामि रे ॥२३२।। इसिउ सुणी सवि यादव, मेलि कटक बहूत रे छडे पीआणे चालीआ, वीझ गिरिंद पहूत रे ॥२३३।।
दहा जरासिंध हिव सांभली, यादव गया विदेसि
कटक सजाई तुं करई, पूठि जावा रेसि ॥२३४॥ ★ नोंध : २२९ नंबर अपायो नथी. में रही गयेल नंबर सुधारीने मूकेल छे.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44