Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 16
________________ 66 समुद्रविजय तेडी कहइ, सांभलि वसुदेव बाहिरि वछ न हीडीइ उन्हालउ हेव ॥९७॥ सयल दिवसि भमतां शरीरि तावड तुझ लागइ राल गुन माहि रह्युं वच्छ सिरि तु कृश आगइ एह वयण मानी करी परहीउ मनरंगि निय आवासि रामति रमइ लीलां करई अंगि ॥९८ ॥ बावन - चंदन सुरही घसी कसतूरी साथई भरीय कचोलउ शिवादेवी दिई दासी हाथि राय भणी ते मोकलिउं दीठउं वसुदेवि दासी देखाइ नही विलगीनइ लेवि ॥ ९९ ॥ नाखिउ महीअलि सुरही द्रव्य रहीठ निअ अंगि कुंअर लगाडइ ताम दासि बोलइ मनभंगि राइ न्याइ राखीउं तुं बंदीखाणइ कुंअर वयण ते सांभली ए मनि शंखा आणइ ||१००|| दूहा सीह किवार हलि वहइ, दीणयर ढांकिउ जाइ हुं बंदीखाणइ रहूं, वात हीई न समाइ ॥ १०१ ॥ नगर मांहि कीधउ नथी, मई काइ अन्याय विण कारणि कां राखिउ, बंदिखाणइ राय ॥ १०२ ॥ मई काइ उध्धतपणइ, लोपी भूपति आण तेह भणी सही मझ हूउ दासी वयण प्रमाण ॥१०३॥ धन वंछइ एक अधम नर, उत्तम वंछइ मान ते थानकि सही छंडीई, जिहां लहीइ अपमान ॥ १०४ ॥ अनुसंधान- २८ दंत केश रख अधम नर, निय थानकि शोभंति सपुरिस सीह फणिंद मणि, सघले मान लहंति ॥१०५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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