Book Title: Vasudev Chupai Author(s): Rasila Kadia Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ July-2004 59 नंदिषेण[मुनि] मानवलोकि वैयावच्च करइ सुविवेक सुरवर चालिउं न चलइ किमइ, एह वयण सुर एक नवि गमइ ॥२७॥ मायारोग विकुवी घणउं, मुनिवर रूप करी आपणउं ते सुर आवइ वनह मझारि, बीजउ साधु थइ तिणि वारि ॥२८॥ नंदिषेण जव लिइ आहार, तव मायामुनि आविउ बारि रीसई कहइ नथी तुझ सान, हवडां खावा बेइठउ धान ॥२९।। अतीसारीउ मुनि सुविचार, बाहिरि पडिउ तु न करई सार वेयावच्च नउं निश्चउ धरइ, असत्य वचनि तप निष्फल करइ ॥३०॥ नंदिषेण ऊठइ आणंद, हुं वरांसिउ कहइ मुणिंद विहरणि चालिउ साहसधीर, तव असूजतुं सघले नीर ॥३१॥ असावधान सुर थिऊ एकवार, तुं ति सूजतुं विहरी वारि जइ वनमाहि पधारु कहइ, तुं वेदन माहरी नवि लहइ ॥३२।। ताहरि परि हुं न लिउं आहार, आतलइ आविउ दुखि अपार हुं रोगि पीडिउ छउं ईम, हीडी न सकउं आवउं कीम ॥३३॥ इम करतां कंधोलइ करइ, ऋषि मुनिवर मारगि संचरइ वांकु कां हीडई इम कहइ, अतीसार खंधोलइ वहइ ॥३४॥ हीयडई ते वह्यइ दुर्गंध, ते सुरवर जाणी संबंध करी प्रसंसा प्रणमइ पाय, देवलोकि खमावी जाइ ॥३५|| अंतकालि ऋषि अणसण लीइ, निय अभाग संभारइ हीइ सौभागइ अधिकहुं हुं जउं, बहु नारी निश्चई परणिजउ ॥३६॥ तपह तणी तिणि आणी सीम, ऋषि नीआणु कीधुं ईम अणसण पालीउ गिउ सुरलोकि, सहजि सुख भोगवइ अनेकि ॥३७॥ दुहा आउखुं पूरी करी पुण्य प्रभावइ देव तुझ बांधव दसमउ हूउ, ते नामइं वसुदेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44