Book Title: Vasudev Chupai
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ July 2004 तस पटराणी सूरप्रिया, बे सुत अंधकवृष्णि राज करइ मथुरापुरी, बीजउ भोजकवृष्णि ॥४॥ अंधकवृष्णि तणइ छइ सार, दस बेटा ते दसई दसार पहिलु समुद्रविजय अक्षोभां थिमित्त अनइ सागर · अक्षोभ ||५|| धरण अनई पूरण हिमवंत, अचल अनइ अभिचंद महंत अनुपम रूप जिसउ हुइ देव, दसमउ पणि नामइ वसुदेव ||६|| भोजकवृष्णि तणइ सुत बेड, उग्रसेन देव कहइ तेउ समुद्रविजय सोरिपुरधणी, राज करइ लीला आपणी ॥७॥ ज्ञानी गुरु आव्या एकवार, समुद्रविजय बंधव परिवार हरखि हरखि गुरु (रु) वंदणि सहु जाइ, अवसर लहीनई पूछई राई ||८|| मझ बंधव दसमउ वसुदेव, दीसई जिम दोगंडुगदेव सोहग सुंदर साहस धीर, गिरुउ सहजि गुणह गंभीर || ९ || रूप अनोपम कहीई किसउं अभिनव इंद्र तणउं नहीं तिसउं नरनारी मन मोहण हेलि, इच्छा हीडई करतुं गेलि ॥१०॥ अधिक पुण्य किसिउं छइ एह, न्यान करी मझनई कहुं तेअ गुरु कहइ ए संबंध छइ घणउं, इहां थीकु भव त्रीजउ सुणउ || ११ || नंदिषेण नामि एक गामिइ, बंभणपुत्र हतु तिणि ठामि अति करूप दोभाग बहूत, मातपिता परलोक पहूत ॥१२॥ बालपणइ मामा घरि रहइ, नंदिषेणनइ मामा कहइ बेटी सात अछइ अम्ह तणी, इक परणाविसु तुज हितभणी ॥ १३ ॥ पुत्रीइ ते जाणी वात, पुत्री बोलइ सांभली तात वरि विस पीईनई हुं मरुं, ए दोभागी नवि पति करु ||१४|| 57 सातइ पणि पुत्री इम कहइ, मामउ हीइ विमासइण वहइ थानकि धानकि कन्या जोइ, नंदिषेण[ ने] दिइ नइ कोइ ॥ १५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44