________________
July-2004
55
गजसुकुमालनी माता बने छ जे यौवनवये ज दीक्षा लई, ससरा द्वारा माथे सगडीना हारथी, समता थकी कर्म खपावी मोक्ष पामे छे. द्वारिकानी पडती थतां, कृष्ण-बलराम वनमां जाय छे ज्यां कृष्ण माटे पाणी लेवा जतां बलरामनी गेरहाजरीमां जराना बाण द्वारा कृष्ण मृत्यु पामे छे अने बळरामने भाई- मृत्यु स्वीकारवू अघळं थई पड़े छे अंते बलराम पण मासक्षमण अने तप द्वारा कर्म खपावी, देवलोक सिधावे छे.
वसुदेव पण द्वारिकानी पडती थाय ते पहेलां, बहु नारीओ साथे, अणसण लई देवलोक पामे छे.
अंते रचनाकार प्रशस्ति पुष्पिकामां पोतानो परिचय आपे छे.
प्रस्तुत प्रतमा ज्यां 'ष' खना अर्थमां छे त्यां तेनो ख को छे. वळी, प्रतनी कडीओना नंबरो आप्या छे त्यां बेएक स्थळे नंबर आपवो रही गयो छे के एक ज नंबर बे वार अपायो छे. जेमके- कडी नं. २२९ दर्शाववानो रही गयो छे जेने [ ]मां जणाव्यो छे. कडी नं. २३४ ने २३५ नंबर आप्यो छे अने ते पछी २३५ नंबर फरीवार आवे छे तेने सुधारी लीधेल छे. कडी नं. २६३ने २६४ नंबर आप्यो छे तेथी तेने सुधारी ते पछीनी बधी ज कडीओना नंबरो फेरव्या छे. आथी प्रतमा ३६० कडीनी जे कृति जणाय छे ते वास्तवमां आ रीते, ३५८ कडीनी लिप्यन्तरमां बनी छे तेनी पण नोंध लेवी घटे. वळी, 'छ' छे त्यां त्छ लखवानी टेव जोवा मळी छे.
'श्रीत्रिषष्ठीशलाकापुरुषचरित्र'मां पर्व ८ना बीजा सर्गथी 'वसुदेवचरित्र' आलेखायुं छे. ११मा सर्गमां द्वारिकादहन समये द्वारिकामाथी बहार जता, अणसण करी, दाहथी मृत्यु पामता वर्णव्या छे. आनी अन्तर्गत ज नेमिकुमारचरित्रनी वात ज समांतरे चाले छे. अहीं पण एम ज थयेल छे छतां, अहीं वसुदेवचरित्रमांनी घणी बधी विगतो अहीं संक्षेपे जणावी छे. जेमके- विद्याधर कन्याओनी साथेना लग्नोनी विस्तृत वात अहीं मात्र एक ज लीटीमां छे. वळी, कनकवती, रोहिणी, नळदमयंती कथानक वगेरे खूब ज लाघवथी वर्णवाया छे. शिशुपालवध के रुक्मिणी के पांडव द्रौपदी स्वयंवरकथा, प्रद्युम्नचरित्र, नारद- पात्र वगेरे अनेक बाबतो आ कथानकमा जोवा मळती नथी.
Jain Education International
For D
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org