________________
74
अनुसंधान-२८
कंसि लगार एक छेदी नाक, पाछी आपी जाणी ताकं नारी थिकुं मझ मरण न होइ, ऋषितुं वचन वृथा सही होइ ॥१८६।। ते सुत सहजइ शरीरि कृष्ण नंदिई नाम दीउ तसु कृष्ण गोकुल माहि देवकि माइ, परव मिसिइ सुत मिलवा जाइ ॥१८७।। गोकुल रक्षा काजि राम सुत पासिइ मुकिउ अभिराम माधव कला कुतूहल करइ, राम सहित इछा संचरइ ॥१८८॥
वस्तु देवलोकह देवलोकह आउ पूरेवि गंगदत्तसुर देवकी उअरि-सात सपने उपन्नह शुभवेलां सुत जाइउ, कृष्ण नाम दीधउ सुधन्नह वृद्धिवंत गोकुलि हुइ किसु न जाणइ भेउ राम सहित रामति करइं मथुरा बाहिरि बेउ ॥१८९॥
ढाल त्रिपदीउ अचलपुरी धन नृप सुविचारी धनवइ नामि अछइ तस नारी भव पहिलई अवतारी ॥१९०।। देवलोकि पहिलइ भवि लीजइ चित्रगति नाम विद्याधर त्रीजइ रयणवइसिउ रीझइ ॥१९१॥ सरगलोकि चउथइ सुख दीपति महाविदेहि अपराजित भूपति प्रियमति तस पटराणी ॥१९२॥ सुरलोकि एकाधिक दसमइ शंखराय हूआ भवि सातमइ यशोमतीसिउं रमइ ॥१९३||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org