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July-2004
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हंसानइ सर सरोवर घणा, कुस(सु)म घणा भमरांइ सपुरिसनइं थानक घणां, देश विदेश गयाइं ॥१२९।।
चउपइ कुअर भमंतु देस विदेश, आविउ अरिठ नयरि नववेस रूधिरराय बेटी रोहिणी, यौवन वय परणावा भणी ॥१३०॥ सयंवरा मंडपसु विचार, जरासिंधु नइ नवइ दसार बीजा राय कटक परवरिया, आपइ रूपि इंद्र अवतरिआ ॥१३॥ कूबड वेस करी तिहां रहइ, प्रज्ञप्ती विद्या तव कहइ पडह वाअंता निश्चय करिउ, वसुदेव कुंमर रोहिणीइं वरिउ ॥१३२॥ जरासिंध सोरिपुरधणी, कंस सहित ऊठइ रण भणी आपण छतां ए परणइ नारी तु अयुगतुं हुइ अपार ॥१३३|| रणि रंगि दीठउ झूझंत, जरासिंध कहइ ए बलवंत समुद्रविजय जव मंडिउ झूझ, बाण लिखी तव कहीउं गूझ ॥१३४॥ तव जाणी वसुदेवकुमार, हेज हरखनुं न लहुं पार हरख अवधरतां सवि मिल्या, सहजि सकल मनोरथ फऱ्या ॥१३५।। विद्याधर कुमरी जे घणी, परणी छइ ते तेडा भणी विद्याधरी आवी आकासि, तव वसुदेव रहिउ विमासी ॥१३६॥ मिलिवा दीधी अनुमती राय, वसुदेवि ते पणमी पाय विलंब रहित वछ वहिलउ वले सोरीपुर आवीनइ मिले ॥१३७|| समुद्रविजय सोरीपुर गयउ, कुंअर आवतां अति साम्यहउ वसुदेव ठामि ठामि स्त्रीवृंद, परिवरीउ जिम तारा चंद ॥१३८।। महाविमान रवी आकाशि, तव आव्यउ सोरीपुर पासि राय महोत्सव करइ प्रवेस, उत्सव अधिका नयर निवेस ॥१३९।।
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