Book Title: Vaiyakaran Siddhant Kaumudi
Author(s): Vasudev Lakshman Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 439
________________ गणपाठे द्वितीयोऽध्यायः । रवायसः मातरिपुरुषः पिण्डीशूरः पितरिशूरः गेहेशूरः गेहेनर्दी गेहेक्ष्वेडी गेहेविजिती गेहेव्याडः गेहेमेही गेहेदाही गेहेदृप्तः गेहेधृष्टः गर्भेतृप्तः आखनिकबकः गोष्ठेशूरः गोष्ठेविचिती गोष्ठेक्ष्वेडी गोष्ठेपटुः गोष्ठेपण्डितः गोष्ठेप्रगल्भः कर्णेटिरिटिरा कर्णेचुरुचुरा ॥ आकृतिगणोऽयम् ॥ इति पात्रेसमितादयः ॥ ३॥ ६९ उपमितं व्याघ्रादिभिः सामान्याप्रयोगे २।१।५६ ॥ व्याघ्र सिंह ऋक्ष ऋषभ चन्दन वृक वृष वराह हस्तिन् तरु कुञ्जर रुरु पृषत् पुण्डरीक पलाश कितव ॥ इति व्याघ्रादयः ॥ आकृतिगणोऽयम् । तेन मुखपद्मम् मुखकमलम् करकिसलयम् पार्थिवचन्द्र ॥ इत्यादिः ॥४॥ ६९ श्रेण्यादयः कृतादिभिः २।१।५९ ॥ १ श्रेणि एक पूग मुकुन्द राशि निचय विषय निधान पर इन्द्र देव मुण्ड भूत श्रमण वदान्य अध्यापक अभिरूपक ब्राह्मण क्षत्रिय [विशिष्ट ] पटु पण्डित कुशल चपल निपुण कृपण ॥ इत्येते श्रेण्यादयः ॥५॥ २. कृत मित मत भूत उक्त [युक्त ] समाज्ञात समानात समाख्यात संभावित [संसेवित ] अवधारित अवकल्पित निराकृत उपकृत उपाकृत [ दृष्ट ] कलित दलित उदाहृत विश्रुत उदित । आकृतिगणोऽयम् ॥ इति कृतादिः॥६॥ ६९ * शाकपार्थिवादीनामुपसंख्यानम् * २।१।६० ॥ शाकपार्थिव कुतपसौश्रुत अजातौल्वलि ॥ आकृतिगणोऽयम् । कृतापकृत भुक्तविभुक्त पीतविपीत गतप्रत्यागत यातानुयात क्रयाक्रयिका पुटापुटिका फलाफलिका मनोन्मानिका ॥ इति शाकपार्थिवादिः ॥७॥ ७० कुमारः श्रमणादिभिः ।२।१।७० ॥ श्रमणा प्रव्रजिता कुलटा गर्भिणी तापसी दासी बन्धकी अध्यापक अभिरूपक पण्डित पटु मृदु कुशल चपल निपुण ॥ इति श्रमणादयः॥८॥ ७० मयूरव्यंसकादयश्च ।२।११७२ ॥ मयूरव्यंसक छात्रव्यंसक कम्बोजमुण्ड यवनमुण्ड । छन्दसि । हस्तेगृह्य (हस्तगृह ) पादेगृह्य (पादगृह्य ) लाङ्गुलेगृह्य (लालगृह्य) पुनर्दाय । एहीडादयोऽन्यपदार्थे । एहीडं एहिपचम् व एहिवाणिजा क्रिया अपेहिवाणिजा प्रेहिवाणिजा एहिस्खागता अपेहिखागता एहिद्वितीया अपेहिद्वितीया प्रेहिद्वितीया एहिकटा अपेहिकटा प्रेहिकटा आहरकटा प्रेहिकर्दमा प्रोहकर्दमा विधमचूडा उद्धमचूडा (उद्धरचूडा ) आहारचेला आहरवसना [ आहरसेना ] आहरवनिता (आहरविनता) कृन्तविचक्षणा उद्धरोत्सृजा उद्धरावसृजा उद्धमविधमा उत्पचनिपचा उत्पतनिपता उच्चावचम् उच्चनीचम् आचोपचम् आचपराचम् [ नखप्रचम् ] निश्चप्रचम् अकिंचन स्नात्वाकालक पीत्वास्थिरक भुक्त्वासुहित प्रोष्यपापीयान् उत्पत्यपाकला निपत्यरोहिणी निषण्णश्यामा अपेहिप्रघसा एहिविघसा इहपञ्चमी इहद्वितीया । जहि कर्मणा बहुलमाभीक्ष्ण्ये कर्तारं चाभिदधाति । जहिजोडः (जहि

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