Book Title: Vaiyakaran Siddhant Kaumudi
Author(s): Vasudev Lakshman Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 456
________________ ४५२ सिद्धान्तकौमुद्याम् । १४१ तद्धरति वहत्यावहति भाराद्वंशादिभ्यः ।५।१।५० ॥ वंश कुटज बल्वज मूल स्थूणा स्थूण अक्ष अश्मन् अश्व श्लक्ष्ण मूल इक्षु खट्वा ॥ इति वंशादिः॥५॥ १४२ छेदादिभ्यो नित्यम् ।५।१।६४ ॥ छेद भेद द्रोह दोह नर्ति ( नर्त ) कर्ष तीर्थ संप्रयोग विप्रयोग प्रयोग विप्रकर्ष प्रेषण संप्रश्न विप्रश्न विकर्ष प्रकर्ष । विराग विरङ्गं च ॥ इति छेदादिः॥६॥ १४२ दण्डादिभ्यो यः ।५।१।६६ ॥ दण्ड मुसल मधुपर्क कशा अर्ध मेघ मेधा सुवर्ण उदक वध युग गुहा भाग इभ भङ्ग ॥ इति दण्डादिः॥७॥ १४४ * महानाम्यादिभ्यः षष्ठ्यन्तेभ्य उपसंख्यानम् * ।५।१।९४ ॥ महानाम्नी आदित्यव्रत गोदान ॥ इति महानाम्न्यादिः ॥ ८॥ १४४ * अवान्तरदीक्षादिभ्यो डिनिर्वक्तव्यः * ॥५।१।९४ ॥ अवान्तरदीक्षा तिलवत देवव्रत ॥ इत्यवान्तरदीक्षादिः॥९॥ १४४ व्युष्टादिभ्योऽण् ।५।१।९७ ॥ व्युष्ट नित्य निष्क्रमण प्रवेशन उपसंक्रमण तीर्थ आस्तरण सङ्ग्राम संघात अग्निपद पीलुमूल ( पीलु मूल ) प्रवास उपवास ॥ इति व्युष्टादिः॥१०॥ १४४ तस्मै प्रभवति संतापादिभ्यः ।५।१।१०१ ॥ संताप संनाह संयाम संयोग संपराय संवेशन संपेष निष्पेष सर्ग निसर्ग विसर्ग उपसर्ग प्रवास उपवास संघात संवेश संवास संमोदन सक्तु । मांसौदनाद्विगृहीतादपि ॥ इति संतापादिः ॥११॥ १४५ * तस्मैप्रकरणे उपवस्त्रादिभ्य उपसंख्यानम् * ।५।१।१०५॥ उपवस्त्र प्राशितृ चूडा श्रद्धा ॥ इत्युपवस्त्रादिः॥१२॥ १४५ अनुप्रवचनादिभ्यश्छः ।५।१।१११ ॥ अनुप्रवचन उत्थापन उपस्थापन संवेशन प्रवेशन अनुप्रवेशन अनुवासन अनुवचन अनुवाचन अन्वारोहण प्रारम्भण आरम्भण आरोहण ॥ इत्यनुप्रवचनादिः॥१३॥ ___१४५ * स्वर्गादिभ्यो यद्वक्तव्यः * ।५।१।१११॥ वर्ग यशस आयुस काम धन ॥ इति स्वर्गादिः ॥ १४ ॥ - १४५ * पुण्याहवाचनादिभ्यो लुग्वक्तव्यः * ।५।१।१११ ॥ पुण्याहवाचन खस्तिवाचन शान्तिवाचन ॥ इति पुण्याहवाचनादिः ॥ १५॥ १४६ पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा ।५।१।१२२ ॥ पृथु मृदु महत् पटु तनु लघु बहु साधु आशु उरु गुरु बहुल खण्ड दण्ड चण्ड अकिंचन बाल होड पाक वत्स मन्द खादु ह्रख दीर्घ प्रिय वृष ऋजु क्षिप्र क्षुद्र अणु ॥ इति पृथ्वादिः॥१६॥ १४६ वर्णदृदादिभ्यः ष्यश्च ।५।१।१२३ ॥ दृढ वृढ परिवृढ भृश कृश वक्र शुक्र

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