Book Title: Vaiyakaran Siddhant Kaumudi
Author(s): Vasudev Lakshman Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 465
________________ गणपाठे अष्टमोऽध्यायः । ४६१ १२३ द्वारादीनां च ।७।३।४ ॥ द्वार स्वर खाध्याय व्यल्कश खस्ति स्वर स्फ्यकृत् खादु मृदु श्वस् श्वन् ख ॥ इति द्वारादिः ॥२॥ १३२ स्वागतादीनां च ।७।३।७ ॥ खागत स्वध्वर खङ्ग व्यङ्ग व्यड व्यवहार खपति ॥ इति स्वागतादिः ॥३॥ १२६ अनुशतिकादीनां च ।७।३।२० ॥ अनुशतिक अनुहोड अनुसंवरण ( अनुसंचरण ) अनुसंवत्सर अङ्गारवेणु असिहत्य अस्यहत्य अस्यहेति वध्योग पुष्करसद् अनुहरत् कुरुकत कुरुपञ्चाल उदकशुद्ध इहलोक परलोक सर्वलोक सर्वपुरुष सर्वभूमि प्रयोग परस्त्रि । राजपुरुषात्प्यञि । सूत्रनड ॥ इत्यनुशतिकादिराकृतिगणोऽयम् ॥ ४॥ तेन । अभिगम अधिभूत अधिदेव चतुर्विद्या । इत्यादि । ४४ * क्षिपकादीनां चोपसंख्यानम् * ।७।३।४५ ॥ क्षिपका ध्रुवका चटका सेवका करका कटका अवका लहका अलका कन्यका ध्रुवका एडका ॥ इति क्षिपकादिराकृतिगणः ॥५॥ २७२ न्यक्कादीनां च ।७।३।५३ ॥ न्यङ्क मद्गु भृगु दूरेपाक फलेपाल क्षणेपाक दूरेपाका फलेपाका दूरेपाकु फलेपाकु तक (तत्र ) वक्र (चक्र ) व्यतिषङ्ग अनुषङ्ग अवसर्ग उपसर्ग श्वपाक मांसपाक ( मासपाक ) मूलपाक कपोतपाक उलूकपाक । संज्ञायां मेघनिदाघावदाघार्घाः । न्यग्रोध वीरुत् ॥ इति न्यक्वादिः ॥६॥ २३१ * कणादीनां चेति वक्तव्यम् * ।७।४।३ ॥ कण रण भण श्रण लुप हेठ हायि वाणि लोटि (लोठि) लोपि ॥ इति कणादिः ॥७॥ अष्टमोऽध्यायः। ३७४ तिङो गोत्रादीनि कुत्सनाभीक्ष्ण्ययोः ।८।१।२७ ॥ गोत्र ब्रुव प्रवचन प्रहसन प्रकथन प्रत्ययन प्रपञ्च प्राय न्याय प्रचक्षण विचक्षण अवचक्षण खाध्याय भूयिष्ठ वानाम ॥ इति गोत्रादिः॥१॥ ३७८ पूजनात्पूजितमनुदात्तं काष्ठादिभ्यः ।८।१।६७ ॥ काष्ठ दारुण अमाता पुत्र वेश अनाज्ञात अनुज्ञात अपुत्र अयुत अद्भुत अनुक्त भृश घोर सुख परम सुअति ॥ इति काष्ठादिः॥२॥ १५३ मादुपधायाश्च मतोर्वोऽयवादिभ्यः ।८।२।९ ॥ यव दल्मि ऊर्मि ( उर्मि ) भूमि कृमि क्रुच्चा वशा द्राक्षा ध्राक्षा ध्रजि व्रजि ध्वजि निजि सिजि सञ्जि हरित् ककुत् मरुत् गरुत् इक्षु द्रु मधु ॥ इति यवादिराकृतिगणः ॥३॥ १३ * अहरादीनां पत्यांदिषूपसंख्यानम् * ।८।२।७० ॥ १ अहर गीर धूर ॥ इत्यहरादिः॥४॥

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