Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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वैराग्य-M | कारण माटे तुं शीत कहेतां टाढ अने उष्ण कहतां घाम, क्षुत् कहेनां क्षुधा, पिपासा कहेनां तृषा, दंश कहेतां डांस, मशक कहेंतां मगतरां, अने नाना प्रकारना रोगादि रूप, परिषह, उपसर्गो मत्ये सहन करवाने समर्थ नथी. ते कारण माटे हमण तने दीक्षा लेवाने अर्थे आज्ञा आपवाने अमे इच्छतां नयी. अर्थात हम त | आज्ञा नही आपीए." त्यार पछी कुमार कहेतो हवो. "हे अंब ! हे तात! तमे जे संजमनी दुष्करता देखाडी ते दुष्क रता खलु कहेतां निचे क्लिब पुरूषोने अने कातर पुरुषोने एटले कायर पुरूषोने अने कुत्सित पुरुषोने अने आ लोकने | विषे प्रतिबंधवाला पुरुषोनें एटले आ लोकमांज सुख मानी वेठेला तेवाओने, अने परलोकधी अबला मुख| वाला थएला एवा लोकोने एटले परलोकना सुखना अजाण लोकोने, अने विषयनी तृष्णावाला लोकोने छे. | एटले पूर्वे कला एवा लोकोने संजमनुं दुष्करपणुं लागे छे. पण खलु कहेतां निश्वे धीर पुरुषने अने संसारना भयथी उद्विग्न धएला एवा पुरुषने दुष्कर नथी. एटले संजम पालवो कठण नथी. ते कारण माटे हुं तमारी आज्ञाए करीने हम गांज प्रव्रज्या लेवाने इच्छं छं." त्यार पछी ते माता पिता फरीने कहेतां हवा. "हे बाल ! आटलो हठ तुं न कर. तुं शुं समजे छे ?” त्यारे अतिमुक्तक कुमार कहेतो हवो. "हे अंब ! हे तात ! जे | हुं जाणुं हुं तेज नधी जाणतो, अने जे नधी जाणतो तेज हुं जाणुं छं." त्यार पछी ते माता पिता कहेतां हवां, "हे पुत्र ! आम केम बोले छे?” त्यारे ते कुमार कहेतो हवो. "हे माता पिताओ ! हुं जाणुं छं के, जे जनभ्यो लेने जरूर मरखुं छे. परंतु एटलं नथी जाणतो के, ते क्यारे मरशे ? अथवा किया स्थानमां मरशे ?
「
शतकम्
॥ ९ ॥
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भाषांतर
सहित
॥ ९ ॥
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