Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 10
________________ ३६) अनुकूल एवां बहु वचनोए करीने ते कुमारने लोभाववाने असमर्थ थयां. पछी विषयने प्रतिकूल एवा, अने | JE/ वैराग्यशतकम् IDEA संजमना भयने देखाडनार एवां वचनोए करीने आ प्रकारे कहेतां हवा. 'हे पुत्र ! नैर्ग्रथं प्रवचनं कहेतां वीत- HTRA सहित ॥८॥ | रागर्नु कहेल ए, सिद्धांत अथवा शासन ते सत्य छ, कहेतां साचुं छे; अने अनुत्तर कहेना प्रधान छे. अने || ॥८॥ शुद्ध कहेतां दोष रहित छे. अने शल्यकर्त्तन कहेता माया शल्य, नियाण शल्य, अने मिथ्यात्व शल्य, एत्रण शल्यने नाश करनारुं छे. अने मुक्तिनो मार्ग छे. अने सर्व दुःखने नाश करनार एबुं वीतरागर्नु कहेलं प्रवचन छे. ते प्रवचनमा एटले जैनशासनमा रहेला एवाज जीवो सिद्धिपदने वरे छे. एटले वीतरागनी आज्ञाना पालनार एवाज जीवो सर्व कर्मे करीने रहित शय छे. परंतु आ प्रवचन, लोढाना चणा चाववानी पेठे अतिशे l Edil दुष्कर छे अने बेलुना कोलयानी पेठे स्वादे करीने रहित छे. अने में भुजाआए करीने महोटा समुद्र तरवानी || पेटे दुस्तर छे एटले दुःखे तरवा योग्य छे. अने वली आ प्रवचन छे ते तीक्ष्ण खड्गादिने उल्लंघन करवा जे छ, तथा दोरडादिके करीने बांधेली एवी महाशिलादिक वस्तु तेने हस्तादिके करीने धारण करवा जेतुं छे. तथा असिधारा व्रत सेवन करवानी पेठे, एटले जेम खड्गादि, अतिक्रमण करवाने अशक्य छे, तेम आ महाव्रत, पालवू अशक्य छे. वली जैनशासनमा साबुभोने आधार्मिक औदेशिकादि भोगववाने न कल्पे. dl पटले जैनना जे साधु होय तो पोताने वास्ते करेलु ए आदिक बेतालीश दोष सहित वस्तु ग्रहण करे नही. Ki अने हे पुत्र! तुं तो सदाय काल सुखमां उत्पन्न भएलो छु. कोइ दहाडो पण दुःखमा रह्योज नथी. एज SamL2 OLDLIDDLED DOODLDC For Private & Personal use only Jain Education Interne 010_05 Jatil PS www.jainelibrary.org

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