Book Title: Uttaradhyayanani Part 03 And 04
Author(s): Bhavvijay Gani, Harshvijay
Publisher: Vinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
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उत्तराध्ययनसूत्रम् ॥१३॥
अध्य०३६ ॥१३॥
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मूलम-दुविहा आउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥४॥
बायरा जे उ पज्जता, पंचहा ते पकित्तिा । सुद्धोदए अ उस्से, हरतणु महिआवि अ ॥५॥ एगविहमनाणत्ता, सुहुमा तत्थ विआहिआ। सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे अ बायरा ॥८६॥ संतई पप्पऽणाईआ, अपज्जवसिावि अ । ठिई पडुच्च साईआ, सपज्जवसिावि अ॥८॥ सत्तेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिआ भवे । आउठिई आऊ, अंत्तोमुहत्तंजहन्निा ॥८॥ असंखकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायठिई आऊ, तं कायं तु अमुचओ ॥८६॥ अणंतकालमुक्कोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नगं । विजढम्म सए काए, आऊजीवाण अंतरं ॥१०॥
एएसिवण्णो चेव, गंधो रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १॥ व्याख्या-'शुद्धोदक' जलदजलं 'उस्सेत्ति' अवश्यायः शरदादिषु प्राभातिकः सूक्ष्मवर्षों 'हरतनुः प्रातः स्निग्धपृथ्वीभवस्तृणाग्रजलबिन्दुः, 'महिका" गर्भमासेषु सूक्ष्मवर्षों 'घूमर' इति प्रतीता, हिमं प्रसिद्धम् ॥८४ ॥८५ ॥ अमूनि प्राग्वत् व्याख्ययेयानि ॥८६॥८७॥८८॥८६॥६०॥ ११॥ अथ वनस्पतिकायिकानाहमूलम्-दुविहा वणप्फईजीवा, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥२॥

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