Book Title: Uttaradhyayanani Part 03 And 04
Author(s): Bhavvijay Gani, Harshvijay
Publisher: Vinay Bhakti Sundar Charan Granthmala

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Page 423
________________ उत्तराध्य यनसूत्रम् || १४५|| acaex मूलम् — इंदिया एए रोगहा एवमायो । लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ विमाहिया ॥१३०॥ संतई पप्पऽणाईभा, अपज्जवसियावि अ । ठिई पडुच्च साईआ, सपज्जवसियावि ॥ १३१ ॥ धासाई बारसेव उ, उक्कोले विमाहिया । बेइदिम भाउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१३२॥ संखेज्जकालमुक्कोसा, तोमुहुत्तं जहन्निया । बेइंदिकायठिई, तं कार्यं तु श्रमुचो ॥१३३॥ अांतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहगणयं । बेइंदियाण जीवाणं, अंतरेचं विमाहि ॥ १३४ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गंध रसफास । संठाणादेस वावि, विहाणारं सहस्तसो ॥१३५॥ व्याख्या - अत्र 'चउरोति' चतुरिन्द्रियाः ॥ १२६ ॥ द्वीन्द्रियानाह — श्रत्र क्रमयोऽशुच्यादिजाताः, मातृवाहका ये काष्ठशकलानि समोभयाग्रतया सम्बन्धन्ति, वास्याकारमुखा वासीमुखाः, 'सिप्पीअत्ति' शुक्तयः, 'शंखनका' लघुशंखाः, 'चन्दनका' अचाः, शेषास्तु केचित्प्रसिद्धाः केचित्तु यथासम्प्रदायं वाच्याः इति ॥ १२७ ॥ १२८ ॥ १२६ ॥ १३५ ॥ त्रीन्द्रियानाह - मूलम् - तेईदिना उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुरोह मे ॥ १३६ ॥ ॐ पिपील उद्दसा, उक्कलुद्दे हिचा तहा । तणहारकट्ठहारा, मालुगा पत्तहारगा ॥१३७॥ कप्पासट्ठिमिंजा य, तिंदुगा तउसमिंजगा । सदावरी अ गुम्मी अ, बोधव्वा इंदकाइया ॥१३८॥ अव्य० ३६ ॥ १४५॥

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