Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 02
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Page 559
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1914 उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / ततोऽम्बरचरैरेवं स्वयमानं विलोक्य माम् / तातः प्रह्लादमापनो जननी च सुमालिनी / तथाहि / अन्तःपुरं पुरं सैन्यं बालवृद्धैः समाकुलम् / मद्भूतिं तादृौं दृष्ट्वा संजातं हर्षनिर्भरम् // ततः सर्वे प्रमोदेन सप्रमोदे तदा पुरे। प्रवेष्टुकामास्तोषेण जनाः किं किं न कुर्वते // तथाहि / गगनचारिगणे वियति स्थिते मयि च तातयुते जयकुञ्जरे / करिवरान्तरवर्तिकुचंधरे करिणिकानिहिते दयिताजने // विविधलामविलामपरायणे प्रमदनिर्भरगायनबन्धुरे। वरविभूषणमाल्यमनोहरे विबुधवृन्दसमे निखिले जने // ननु परिस्फुटमेव तदा नरैः प्रमुदिताशयसौख्यभरोडुरैः / अमरलोकसमानमिदं वनं पुरवरं च मुदेति विनिश्चितम् // पृथुनितम्बपयोधरचारुभिः प्रमदनृत्तपरैः प्रमदाजनैः। इति विनामशतैरवलोचने प्रविशति स्म स सर्वजनः पुरे // ततो विद्याधरैः माधैं सबन्धुः कनकोदरः // तातेनालादितोऽत्यर्थ दानसन्मानपूजनैः // किंबहुना / सर्वरत्नमयं किं वा किं वामृतविनिर्मितम् // किं वा सुखरमापूर्ण किं वा वाग्गोचरातिगम् // गाढावादकरं चित्ते पूर्णसर्वमनोरथम् / For Private and Personal Use Only

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