Book Title: Tulsi Prajna 2005 01 Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ तर्क का हनन तार्किक दृष्टिकोण से न तो मर्यादाओं का पालन किया जा सकता है और न कराया जा सकता है। उनका पालन करने वाला श्रद्धावान और उनका पालन कराने वाला हृदयवान हो तभी उसका निर्वाह हो सकता है। बहुत लोग, जो अपने आपको कूटनीतिक मानते हैं, अहिंसा में विश्वास नहीं करते। हृदय का मतलब ही है- अहिंसा। जहां हिंसा है, बल प्रयोग है, राजसी वृत्तियां हैं वहां हृदय नहीं होता, छल होता है। छल और श्रद्धा के मार्ग दो हैं। श्रद्धा की उपज निश्छल भाव में है। जहां नेता के तर्क के प्रति अनुगामी का तर्क होता है, वहां बड़े-छोटे का भाव नहीं होता। वहां होता है तर्क की चोट से तर्क का हनन । Jain Education International — - अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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