Book Title: Tulsi Prajna 1996 01 Author(s): Parmeshwar Solanki Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 6
________________ सम्पादकीय जर्मन विद्वान् पीटर फुगेल का थीसिस 'श्री श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ' की स्थापना वि. सं. १८१७ आषाढ़ पूर्णिमा को हुई । साध्वियों का तीर्थ सं. १८२१ में बना और संवत् १८५३ में मुनि हेमराज की दीक्षा के बाद इस पंथ में चतुर्मुखी प्रगति हुई । संवत् १८६० में आचार्य भिक्षु स्वामी के स्वर्गवास होने पर संघ में २१ साधु और २७ साध्वियां विद्यमान थीं और आज सं. २०५३ में गणाधिपति तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ के आज्ञानुवर्ती साधु-१४६, साध्वियां-५४७, समण-४, समणियां-८३ और मुमुक्षु-उपासिका बहनें ४८ कुल ८२८ हैं। ___ यह संप्रदाय प्रगतिशील, वर्तमान और परंपरीण शाश्वत मूल्यों पर आधुत है । इसके आचार-विचार में पांच महावत-सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह; पांच समितियां-ई (देखकर चलना), भाषा (निर्बन्ध बोलना), एषणा (शुद्ध आहार-पानी की गवेषणा); आदान निक्षेप (वस्त्र-पात्र आदि को सावधानी से रखना) और परिष्ठापन (उचित भूमि पर मल-मूत्र करना) और तीन गुप्तियांखण्ड २२, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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