Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030 Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 4
________________ तृष्णा का जाल रात्रि के समय महापण्डित काश्यप ने पत्नी यशा से कहा देवी, हम-तुम कितने सौभाग्यशाली हैं इस अवस्था में पुत्र-प्राप्ति और फिर रजत-शिविका का विशिष्ट राज सम्मान हमारे कुल गौरव को उज्ज्वल बनाने वाला है। राजसभा में पहुँचने पर राजा ने राजपुरोहित को प्रणाम किया 106764 दूसरे दिन से महापण्डित काश्यप चाँदी की पालकी में बैठकर गाजे-बाजे के साथ राजसभा की ओर चल दिये। nony Jain Education International हाँ स्वामी, यह पुरस्कार वास्तव में ही हमारे लिए अपार प्रसन्नता का विषय है। 10 आइये पुरोहित जी, आज से आपका स्थान हमारे निकट होगा। For Private & Personal Use Only DEYDINE LODEYAY Gov AA Lavan एक और सम्मान पाकर राजपुरोहित काश्यप प्रसन्न हो गये। www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38