Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ पहरेदार ने इधर-उधर देखा पहरेदार भी वहीं अँधेरे में छुपकर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद कपिल ने इधर-उधर नजर दौड़ाई, पहरेदार नहीं दिखा तो वह दबे पाँवों से कुछ आगे बढ़ा। अँधेरे में छुपे पहरेदार ने झट से आकर दबोच लिया। कपिल काँपने लगामैं... मैं चोर नहीं हूँ ...... तृष्णा का जाल जरूर कोई चोर होगा। मेरी ललकार सुनकर दुबक गया है। मैं छुपकर खड़ा हो जाता हूँ। दुबारा निकलेगा तो दबोच लूँगा। Jain Education International पकड़ लिया ! चोर को। छोड़ दो मुझे, छोड़ दो..... चोर नहीं है तो शराबी होगा? परस्त्रीगामी होगा। पहरेदार ने उसके दोनों हाथ रस्सा डालकर बाँध दिये। चोर नहीं, जुआरी- शराबी नहीं, तो आधी रात को कहाँ जा रहा था? छी: छीः ! मुझ पर ऐसा आरोप मत लगाओ.... 18 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38