Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 22
________________ कपिल ने हाथ जोड़कर कहा महाराज ! मैं कौशाम्बी निवासी राजपुरोहित काश्यप का पुत्र कपिल हूँ। तृष्णा का जाल क्या? कौशाम्बी के | जितशत्रु ने कहाराजपुरोहित का पुत्र | राजपुरोहित का पुत्र होकर और चोर.... चोरी करने निकला था? क्या ? क्या कौशाम्बी के चोरों को श्रावस्ती ही अच्छी लगी? क्या? apoCOccou पूरी रामसभा आश्चर्य के साथ उसे देखने लगी। कपिल बोला- महाराज ! मैं विद्याध्ययन के लिए आया । | कपिल ने आदि से अन्त तक आपबीती था, परन्तु एक दास-कन्या के प्रेम-जाल में | सुनाकर कहाफँस गया, यही मेरी दुर्गति का कारण है। महाराज ! इस प्रेम-जाल ने ही मुझे मैं चोर नहीं, एक पागल प्रेमी हूँ। फँसाया है। मैं राज्य का, गुरु का, माता का, युवक ! तुम्हारी सभी का अपराधी हूँ। आप जो चाहें मुझे दण्ड कहानी तो बड़ी रोचक दीजिए, ताकि मैं पापमुक्त हो सकूँ। लगती है, सुनाओ क्या बात है? POOR Oncoloco Oworcaron Jain Education International 20 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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