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तृष्णा का जाल
तभी एक दूसरा दृश्य सामने आता है। आकाश में उड़ती एक चील माँस के टुकड़े पर झपटकर चोंच में पकड़ती है।
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वह आकाश में उड़ी कि कई बड़े-बड़े गिद्ध उसका पीछा करने लगे, उस पर झपटने लगते हैं। तीखी चोंच मार-मारकर उसे घायल कर रहे हैं।
आकांक्षा
चील लहूलुहान हो गई। तभी उसके मुँह से माँस का | टुकड़ा गिर गया। नीचे गिद्ध-मंडली माँस-पिंड पर टूट पड़ी, घायल चील एक तरफ शान्त-सी बैठी है।
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सांसारिक लालसा
लोभ
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दुःख
कपिल के मन को झटका-सा लगा-बस, शान्ति का सूत्र हाथ आ गया।
'ग्रहण करने में भय है, छोड़ने में शान्ति ! त्याग बिना सुख नहीं।
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