Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृत
दिवाकर चित्रकथा
तृष्णा का जाल हा
जयपुर
भारती
अकादमी
अंक ३० मूल्य १७.00
DIS/
HARVINDER SINGH
सुसंस्कार निर्माण - विचार शुद्धिः ज्ञान वृद्धि
मनोरंजन
For Frivate & Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल (कपिल केवली)
संसार में गरीब इसलिए दुःखी है कि उनके पास जीवन निर्वाह के साधनों की कमी है, और धनवान इसलिए दुःखी है कि उसके पास भरपूर सुख-साधन होते हुए भी वह उनसे अधिक जुटाने के • लिए दिन-रात दौड़ लगा रहा है। मनुष्य के शरीर की भूख तो मिट सकती है, किन्तु मन की भूख कैसे मिटे ? मन का गड्ढा इतना गहरा है कि इसमें समूचे संसार की धन-सम्पदा भर दी जाये तब भी भर पाना मुश्किल है। इस मन के गड्ढे को भरने का एक ही उपाय है, इच्छाओं पर रोक लगाना । तृष्णा के घोड़े पर सन्तोष की लगाम लगाकर ही उसे वश में रखा जा सकता है।
कपिल एक गरीब ब्राह्मण छात्र है। बहुत ही सीधा-सादा । किन्तु एक दास-कन्या के प्रेमजाल में फँस जाता है और उसके लिए केवल दो माशा सोना पाने के चक्कर में चोर समझकर पकड़ा जाता है। राजा उसकी सच्चाई पर प्रसन्न होकर मनचाहा माँगने का वचन देता है। कपिल की तृष्णा भड़क जाती है। सोचता है - क्या; कितना माँगूँ ताकि बार-बार नहीं माँगना पड़े। माँगने की दौड़ में वह राजा का पूरा राज्य ही माँगने की सोचता है, फिर भी मन सन्तुष्ट नहीं हुआ। अन्त में, भटकता हुआ कपिल का मन मोड़ लेता है और तृष्णा के जाल से निकलकर कुछ भी नहीं माँगने का संकल्प कर लेता है।
तृष्णा के जाल से मुक्त होने की यह कहानी स्वयं भगवान महावीर ने सुनाई और हजारों श्रोताओं को इससे बोध मिला। इसी कहानी को चित्रमय रोचक संवादों में प्रस्तुत किया है, श्रमणसंघीय साध्वी श्री मदनकुंवर जी म. सा. ने । -महोपाध्याय विनयसागर
-श्रीचन्द सुराना 'सरस'
लेखक : साध्वी श्री मदनकुंवर जी म. सा. सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस'
संयोजक : साध्वी श्री विजयश्री जी म. सा. चित्रण : श्यामल मित्र
प्रबन्ध सम्पादक : संजय सुराना
प्रकाशक
दिवाकर प्रकाशन
ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002 दूरभाष : 351165, 51789 सचिव, प्राकृत भारती एकादमी, जयपुर
3826, यती श्यामलाल जी का उपाश्रय, मोतीसिंह भोमियों का रास्ता, जयपुर-302003
अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.)
मुद्रण एवं स्वत्वाधिकारी संजय सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन, ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-2 के लिए
:
ग्राफिक्स आर्ट प्रेस, मथुरा
में मुद्रित ।
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
| कौशाम्बी के राजपुरोहित महापण्डित काश्यप को प्रौढ़ावस्था में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। नगर के संभ्रांत लोग, राजपुरोहित के
घर पुत्र-जन्म की बधाई देने आने लगे। नगर-नरेश प्रसेनजित भी प्रधान सेनापति के साथ बधाई देने पधारे। बालक का मुख देखकर मुस्कराते हुए बोले
HMMM पुरोहित जी, बालक MER tomy आकृति से तो बिलकुल
आपके जैसा है। इसे अपने जैसा ही विद्वान्
बना देना।
CUDD
TIMINDIAN
ARRO
फिट राजा प्रसेनजित ने जनसमूह के बीच घोषणा की
आज खुशी के अवसर पर। हम राजपुरोहित काश्यप को सम्मानित करना चाहते हैं।
महापण्डित काश्यप ने तन-मन से राज्य की सेवा की है। अतः सम्मान स्वरूप घर से राजमहल तक आने-जाने के लिये इन्हें राजकीय रजत-शिविका (चाँदी की पालकी) दी जाती है।
IDE
ANTOS
सभी अतिथियों ने करतल ध्वनि कर हर्ष प्रकट किया। इसके पश्चात् सभी अतिथियों ने भोजन ग्रहण किया।
,
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
रात्रि के समय महापण्डित काश्यप ने पत्नी यशा से कहा
देवी, हम-तुम कितने सौभाग्यशाली हैं इस अवस्था में पुत्र-प्राप्ति और फिर रजत-शिविका का विशिष्ट राज सम्मान हमारे कुल गौरव को उज्ज्वल बनाने वाला है।
राजसभा में पहुँचने पर राजा ने राजपुरोहित को प्रणाम किया
106764
दूसरे दिन से महापण्डित काश्यप चाँदी की पालकी में बैठकर गाजे-बाजे के साथ राजसभा की ओर चल दिये।
nony
हाँ स्वामी, यह पुरस्कार
वास्तव में ही हमारे लिए अपार प्रसन्नता का विषय है।
10
आइये पुरोहित जी, आज से आपका स्थान हमारे निकट होगा।
DEYDINE LODEYAY
Gov
AA
Lavan
एक और सम्मान पाकर राजपुरोहित काश्यप प्रसन्न हो गये।
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
~
तृष्णा का जाल " " -धीरे बालक कपिल जब सात वर्ष का पण्डित काश्यपनसमझायाला Samanar@kobatirth.org ने उसकी माता यशा से कहाँलामा नि
(कर्त्तव्य से चूक रही हो ! देवी ! कपिल सात वर्ष पूर्ण कर नहीं स्वामी ! यह रहा है। अब इसे विद्याध्ययन के मेरा इकलौता आँखों लिए गुरुकुल भेजना होगा। A का तारा है। मैं इसे AAM अपने से दूर नहीं
कैसे स्वामी?
कर सकती।
OU COULD
AAA.
जो माता-पिता बालक को पढ़ाते नहीं हैं वे उसके हित-चिन्तक नहीं होते।
स्वामी ! आप राजपुरोहित हैं, अनेकों पण्डित, अध्यापक आपके प्रिय मित्र हैं। क्यों न हम
कपिल को घर पर ही विद्याध्ययन कराएँ?
काश्यप ने कहा- गरुकुल में बालक जीवन
का जो सर्वांगीण विकास सम्भव है।वह घर पर पढ़ने से कभी नहीं हो सकता। वृक्ष जैसा वन के शान्त वातावरण में फलता-फूलता है वैसा घर के आँगन में कभी नहीं फल सकता।
200000 ION
MOVAENDRA
ARVICUT
rseeocoo
For Private Personal Use Only
.
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
यशा ने कहा
स्वामी ! बीज में योग्यता व पात्रता होगी तो कहीं पर भी वह अपना विकास कर लेगा।
Poet
यशा ने कपिल को गुरुकुल नहीं भेजा। घर पर रहकर कपिल लाड़-प्यार से बिगड़ने लगा।
1
कपिल लगभग चौदह वर्ष का हुआ होगा, एक दिन पण्डित काश्यप अचानक बीमार हुए और थोड़े ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई ।।
तृष्णा का जाल
यथा ! तुम पुत्र मोह में अपने कर्त्तव्य से भटक रही हो । यदि गुरुकुल में नहीं जायेगा तो यह निश्चित ही मूर्ख रह जायेगा। फिर तुम पछताओगी।
Shany
· Ce+y?
अब कपिल दिन-रात अपने साथी बालकों के साथ खेलता-कूदता रहता। घर पर पढ़ता भी तो उसका | मन नहीं लगता। माँ, अब और नहीं पढ़ा जाता। मैं मित्रों के साथ गेंद खेलने जा रहा हूँ। वे इंतजार कर रहे होंगे।
जा बेटा ! पढ़ते-पढ़ते थक गया होगा।
खेल-कूद में और माँ के लाड़-प्यार में ही उसका बचपन बीतने लगा।
कुछ दिनों पश्चात् महाराज प्रसेनजित ने नगर के एक अन्य विद्वान् ब्राह्मण को राजपुरोहित का पद दे दिया
हमारे महापण्डित काश्यप का पुत्र (कपिल अभी शिक्षित नहीं है अतः आज से राजपुरोहित का पद महापण्डित सोमिल को प्रदान किया जाता है।
रा
--.
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
| राजपुरोहित सोमिल अब काश्यप के घर के सामने से ही चाँदी की पालकी में बैठकर गाजे-बाजे के साथ राजसभा में जाता। किसी उत्सव के दिन राजपुरोहित सोमिल अपने मित्र-परिवार व राजसेवकों के साथ राजसभा में जा रहा था।
NAG
बाजों की आवाज सुनकर कपिल दौड़कर माँ के पास आया
माँ, माँ ! देखो न कैसी सुन्दर यात्रा निकल रही है।
यशा ऊपर गवाक्ष में खड़ी होकर शोभा यात्रा देखने लगी। उसने चाँदी की पालकी में राजपुरोहित को बैठे देखा तो उसकी आँखों में टपटप आँसू गिरने लगे, वह रोने लगी।
D
5
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
कपिल ने आश्चर्य के साथ पूछामाँ ! यह क्या? ये लोग तो खुशियों में गाते-बजाते जा रहे हैं और तू रो रही है ?
कपिल माँ के आँसू पोंछता हुआ बोला
कपिल ने आँखें फाड़कर पूछातो फिर यह सम्मान हमको क्यों नहीं मिला?
मेरे पिता की राजपुरोहित की गद्दी मुझे क्यों नहीं मिली?
बेटा ! मेरे तो
अब रोने के ही दिन हैं।
माँ ! पहेली मत बुझाओ, सच-सच बताओ क्या बात है? क्यों रो रही हो तुम?
तृष्णा का जाल
कपिल ने माँ ! ऐसी अशुभ बात मत बोल ! क्या दुःख है तुम्हें? इन लोगों ने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा?
के मुँह पर हथेली रखी
बेटा ! मेरे रोने
का कारण ये लोग नहीं, तू है ?
बेटा ! एक दिन इस ठाट-बाट से तुम्हारे पिताजी राजसभा में जाते थे। सैकड़ों लोग महापण्डित काश्यप की जय-जयकार करते चलते थे। यही > सम्मान, यही रुतबा तुम्हारे पिताजी का था।
6
पुत्र ! क्योंकि तू पढ़ा-लिखा
नहीं । राजपुरोहित को तो वेद, पुराण, ज्योतिष, गणित सभी का ज्ञान होना चाहिए न ।
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
अरे, त
क्यों नहीं पढ़ाया ? मुझे अशिक्षित क्यों रखा ?
田田
तृष्णा का जाल
बेटा ! इसका कारण मैं ही हूँ । तेरे पिताजी ने सच कहा था, तू अपने पुत्र की माँ नहीं, दुश्मन है, पुत्र को अशिक्षित रखकर एक दिन पछतायेगी। आज वही दिन आ गया।
यशा आशा भरी दृष्टि से कपिल का मुँह देखने लगी ।। | उसने कपिल के सिर पर हाथ फिराया
वत्स ! अब तू कैसे पढ़ेगा? कौन पढ़ायेगा तुझे? कब तक तू विद्या प्राप्त कर महापण्डित बनेगा? असम्भव है।
8
து
कपिल बोला
माँ ! क्या मैं अब पढ़-लिखकर पिताजी की गद्दी प्राप्त नहीं कर सकता?
अरे, असम्भव क्यों? मैं भी उसी पिता का पुत्र हूँ न? दिन-रात अध्ययन कर सम्पूर्ण विद्याएँ प्राप्त कर लूँगा। मुझे बता माँ, मैं किससे पढूँ ?
O Q
9 0
60
0
D
0
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल यशा कपिल के भावुक चेहरे को उदास होकर देखती है। कपिल की आँखों में चमक आ गई। थोड़ी देर सोचकर यशा बोली
'बस माँ, वत्स ! महान् कर्म ही वत्स! श्रावस्ती के महापण्डित
मैं तुम्हारे मनुष्य को महान् बनाता है। तेरा. इन्द्रदत्त तेरे पिताजी के घनिष्ट
चरणों की शपथसंकल्प अवश्य सफल होगा। मित्र हैं। यदि वे चाहें तो तुझे
खाकर कहता हूँ। वैसा ही पण्डित बना सकते हैं
मैं विद्या पदूंगा, जैसे तेरे पिताजी थे।
अवश्य पदूंगा।
(OTA
कपिल ने माँ के चरण स्पर्श किये और श्रावस्ती की ओर चल पड़ा।
| कई दिनों के प्रवास के बाद थका-हारा कपिल श्रावस्ती पहुंचा। नगर | के बाहर एक सरोवर की पाल पर बैठकर हाथ-मुँह धोये और फिर आगे चलने की तैयारी करने लगा। तभी कुछ वटुक छात्र सरोवर पर नहाने के लिए आये। कपिल ने छात्र वटुकों से पूछा
उन्हें कौन नहीं
जानता? श्रावस्ती के बन्धु ! क्या आप
गौरव हैं वे तो। हम महापण्डित इन्द्रदत्त
उन्हीं के शिष्य हैं। को जानते हैं?
अच्छा, तो कहाँ।
तुम कौन हो?
किसलिए आये रहते हैं वे?
हो यहाँ?
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
मैं भी उनके पास विद्याध्ययन करने के लिए आया हूँ।
तृष्णा का जाल
इतने बड़े होकर अब गुरुकुल में विद्याध्ययन करोगे ?
hmon
क्यों नहीं ! मैं अवश्य पढूँगा और महापण्डित बनूँगा।
यह सुनकर वे छात्र वटुक हँसने लगे। उनमें से एक बोला- अच्छा, अच्छा पण्डित जी, आप अवश्य ही महापण्डित
बनेंगे। देखो, वह आम्रकुंज में एक सुन्दर-सी कुटिया है न? वहीं है महापण्डित इन्द्रदत्त का आवास। और उसके सामने आम्रकुंज में है उनका गुरुकुल ।
9
हा, हा, यह अध्ययन करेगा।
Perr
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल कपिल उठा और चलता-चलता सीधा कुटिया के सामने पहुंचा। घर के बाहर गोबर-मिट्टी से लिपे चबूतरे पर स्वयं पण्डित इन्द्रदत्त ही बैठे थे। कपिल ने साष्टांग प्रणाम किया
कौन हो. तुम? कहाँ से आये हो?
मैं महापण्डित काश्यप का पुत्र कपिल आपको प्रणाम
करता हूँ।
HAB88BBARARI
ओह ! देवेच्छा बलीयसी !
अच्छा ! अच्छा! तुम कौशाम्बी से आये हो। कैसे हैं मेरे प्रिय मित्र काश्यप?
बैठो, कैसे हैं बाकी सब लोग? तुम्हारे आने का
क्या प्रायोजन है?
वे तो अब इस लोक में नहीं
V
रहे।
480000000
10
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
कपिल ने अपने आने का कारण बताते हुए कहा
मेरे लिए आप ही आश्रय हैं। कृपाकर मुझे विद्याध्ययन कराइए। मैं सम्पूर्ण निष्ठा के साथ अध्ययन करूँगा।
महापण्डित इन्द्रदत्त कुछ देर सोचते रहे।
विप्रवर ! स्थान कमी के कारण कोई छात्र ज्ञान-लाभ से वंचित रहे तो उचित नहीं लगता। मेरे भवन के अतिथि कक्ष में यदि आप किसी योग्य छात्र को रखना चाहें तो सहर्ष मुझे सेवा का अवसर दें।
inter
तृष्णा का जाल
तभी नगर के श्रेष्ठी शालिभद्र महापण्डित इन्द्रदत्त से मिलने के लिए आये। | नमस्कार करके पूछाहाँ श्रेष्ठीवर, लगभग सौ विद्यार्थी अध्ययन हेतु आ रहे हैं। परन्तु स्थान का अभाव होने से अब अन्य विद्यार्थियों को कठिनाई रहती है।
htt
विप्रवर ! कैसा है आपका स्वास्थ्य? अध्यापन कार्य ठीक तो चल रहा है न? By M
Tit
यह छात्र मेरे प्रिय मित्र राजपुरोहित काश्यप का पुत्र है। कौशाम्बी से अध्ययन हेतु आया है। अपने अतिथिकक्ष में इसकी उचित व्यवस्था कर सकते हैं।
05
श्रेष्ठ शालिभद्र ने कपिल से कहा
11
वटुक ! चलो मेरे यहाँ तुम्हें भोजन आवास की सब सुविधाएँ मिलेंगी।
Pozera
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
श्रेष्ठी शालिभद्र कपिल को अपने घर पर ले आये। भवन व उद्यान के बाहर अतिथि-कक्ष बताते हुए कहा
वटुक ! तुम यहाँ रहो और किसी भी वस्तु की जरूरत हो तो निःसंकोच माँग लेना।
फिर अपने घर की दास-कन्या कपिला को बुलाकर कहा
ठीक है स्वामी,
आपकी आज्ञा का पूरा ध्यान रखूँगी।
कपिला ! देखो यह छात्र हमारा मेहमान है। गुरुमित्र का पुत्र है। इसके भोजन आदि का समुचित ध्यान रखना।
E
VILL
Y
कपिल प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर गुरुकुल में अध्ययन के लिए चला जाता। दुपहर के बाद आता। भोजन कर कुछ समय विश्राम कर पुनः गुरुकुल में चला जाता। गुरुकुल के नियमानुसार वह केवल एक ही समय भोजन करता। दिन-रात अध्ययन आदि में लगा रहता ।।
But rays!
ACANC
कपिला ने तुरन्त ही कक्ष को साफ किया। छात्र कपिल का सामान एक तरफ रखकर कहामेरा नाम कपिला है। जब भी भोजन आदि की आवश्यकता हो आप मुझे पुकार
लें।
12
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
| एक बार वर्षा ऋतु में कपिल को ज्वर आ गया। जब वह दुपहर तक कक्ष से बाहर नहीं आया तो दास-कन्या कपिला को चिन्ता हुई। उसने कक्ष के अन्दर आकर देखा, तो | कपिल ज्वर में पड़ा बुदबुदा रहा था। कपिला ने पुकारा
टुक
आज आप गुरुकुल नहीं गये।
तृष्णा का जाल
VAN
Jun
| कपिला के हाथ का स्पर्श पाकर कपिल का हृदय तरंगित हो उठा। उसने कहाकपिला, तुम्हारे कोमल-कोमल हाथ का स्पर्श कितना सुखद लग रहा है?
कपिल आवाज सुनकर चौंक गया- अपने वस्त्र आदि ठीक करता हुआ वह जैसे ही उठा, तेज चक्कर आया और वह गिर पड़ा। कपिला ने झट से उठाया
आपको चोट तो नहीं लगी?
ओह ! आपका शरीर तो तप रहा है। तेज ज्वर है।
13
WWW
| कपिला ने हाथ का सहारा देकर उसे बिस्तर पर बिठाया।
कपिला ने चौंककर अपना हाथ खींच लिया
ओह ! भूल हो गयी ! क्षमा करें, मैंने आपको छू लिया।
क्यों, क्या मैं चंडाल - पुत्र हूँ? मुझे छूना पाप है ?
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
तष्णा का जाल
नहीं, नहीं, आप पवित्र ब्राह्मण-पुत्र हैं। मैं दास-कन्या
हूँ न ! आपको छूकर । अपवित्र कर दिया मैंने।
थोड़ी ही देर बाद कपिला हाथ में कुछ गर्म पेय लिये आयी
लीजिए ! यह गर्म पेय पी लीजिये। ज्वर
उतर जायेगा।
FOKA
YEN
EVAPALI
तीन-चार दिन तक कपिल ज्वरग्रस्त रहा। कपिला और वह झट से कक्ष के बाहर चली गई। की योग्य देखभाल से वह स्वस्थ हो गया। एक दिन कपिला जब उसके लिए भोजन लेकर आई| कपिला शर्माकर नीचे देखने लगी। कपिल ने उसका तो कपिल बार-बार उसकी तरफ देखता रहा। कपिला हाथ छुआ और कहाने भोजन पात्र रखकर कहा
तुम्हारा यह स्नेह कोई आप यों क्यों देख रहे हैं? कपिला, तुम कितनी अच्छी हो !
| पिछले जन्म का ऋणानुबंध भोजब ठंडा हो रहा है? | तुम्हारा सहन सुकुमार सौंदर्य
लगता है। पिछले जन्म में भोजन कीजिये न? और विनम्र सेवा भाव देखकर
अवश्य तुम मेरी तो लगता है तुम दास-कन्या नहीं कोई देव-कन्या हो।
MYNORN
OPal
,
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल कपिला हाथ छुड़ाकर दूर हट गई
इस प्रकार दास-कन्या कपिला की सेवा और नहीं, नहीं, ऐसा नहीं कहो। मैं
अपनत्व ने छात्र कपिल का मन मोह लिया। तो एक भाग्यहीन दास-कन्या हूँ।
धीरे-धीरे दोनों में परस्पर गहरा प्रेम हो गया। मुझे पता नहीं मेरे माता-पिता कोई क्यों नहीं, क्या
तापक
कपिला ! मैं तुम्हारे कौन हैं, कहाँ हैं? इस संसार
मुझे भी तुम अपना
जीवन के अन्धकार में कोई नहीं है मेरा।
नहीं समझती?
को दीपक की भाँति दूर कर दूंगा।
Ho
MANI
एक दिन कपिल गुरुकुल से घर पर आया तो कपिला उदास बैठी थी। उदास मुाया चेहरा देखकर कपिल ने पूछा
मैं जब भी आता हूँ तब कल नगर में मुस्कराकर स्वागत करती हो, / दास-महोत्सव है, आज यह रोनी-सी सूरत लिये क्यों मेरी सभी सहेलियाँ खड़ी हो? क्या चिन्ता है तुम्हें? जायेंगी।
मैं कैसे माऊँ? मेरे पास न तो नये सुन्दर वस्त्र हैं और न ही कुछ खरीदने के लिए धन है। अनाथ दास-कन्या को उत्सव
से क्या लेना-देना?
तुम नहा जाआगा?
पद
AVORTOINT
AMUDRUADI
DYA
15
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल कपिल कुछ देर सोचने लगा। कपिला की उदासी और कपिला ने कहागरीबी की पीड़ा उसके हृदय में चुभने लगी। वह बोलामैं ब्राह्मण-पुत्र हूँ। भिक्षा
तुम्हें माँगने की जरूरत माँगकर पेट तो भर सकता क्या है? तुम तो आशीर्वाद हूँ परन्तु माँगने पर धन
देकर भी धन पा सकते हो।। कौन देगा मुझे? S
TEXTUAL
( कैसे? आशीर्वाद देने पर धन कौन
देगा?
A
कपिल के मन में उत्साह जाग उठा, कपिल ने दास-कन्या का हाथ पकड़कर कहा
हमारा नगरसेठ 'धन' नित्य प्रातः सबसे पहले आशीर्वाद देने वाले को दो मासा स्वर्ण दान
करता है।
तिब तो मैं अवश्य धन लाकर तुझे दूंगा। कपिला, तुम उदास मत बनो, यह ब्राह्मण कुमार का वचन है।
तुम कितने अच्छे हो कपिल!
Vo
W कपिला का मुझया चेहरा खिल उठा।
16
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
कपिल को रातभर नींद नहीं आई। बार-बार उठकर वह आकाश की तरफ देखने लगता
Poooo
कहीं मुझे विलम्ब न हो जाय ? यदि कोई दूसरा मुझसे पहले पहुँच गया तो दो मासा सोना नहीं मिलेगा।
अरे, कौन है? कहाँ जा रहा है ?
कपिल सहम गया। एक भवन की ओट में छुप गया। सोचने लगा
पहरेदार ने मुझे कहीं पकड़ लिया तो पूछेगा रात को कहाँ जा रहा है, फिर तो बा > का भेद खुल जायेगा। श्रेष्ठी शालिभद्र और आचार्य क्या कहेंगे मुझे? उन्हें हमारे गुप्त प्रेम का भी पता चल जायेगा।.
女
*
इन्हीं विचारों में खोये कपिल को समय का भान नहीं रहा। मध्य रात में ही वह घर से निकल गया। और धन श्रेष्ठी के भवन की तरफ चल दिया। छोटी-छोटी गलियों को पार कर वह राजमार्ग पर आया और डरता, सहमता चल रहा था कि पीछे से एक कड़कती आवाज आई
★
कपिल बैठा-बैठा आशा के महल बनाने लगा। दो मासा सोना लाकर कपिला को दूँगा तो वह प्रसन्न हो जायेगी। फिर तो मेरी हो ही जायेगी, वह मुझे ही चाहेगी।
ओह, पहरेदार, मुझे छिप जाना चाहिये।
कहाँ चला गया? अभी तो यहीं था ।,
17
My
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
पहरेदार ने इधर-उधर देखा
पहरेदार भी वहीं अँधेरे में छुपकर खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद कपिल ने इधर-उधर नजर दौड़ाई, पहरेदार नहीं दिखा तो वह दबे पाँवों से कुछ आगे बढ़ा। अँधेरे में छुपे पहरेदार ने झट से आकर दबोच लिया।
कपिल काँपने लगामैं... मैं चोर नहीं हूँ ......
तृष्णा का जाल
जरूर कोई चोर होगा। मेरी ललकार सुनकर दुबक गया है। मैं छुपकर खड़ा हो जाता हूँ। दुबारा निकलेगा तो दबोच लूँगा।
पकड़ लिया ! चोर को।
छोड़ दो मुझे, छोड़ दो.....
चोर नहीं है तो शराबी होगा? परस्त्रीगामी होगा।
पहरेदार ने उसके दोनों हाथ रस्सा डालकर बाँध दिये।
चोर नहीं, जुआरी- शराबी नहीं, तो आधी रात को कहाँ जा रहा था?
छी: छीः ! मुझ पर ऐसा आरोप मत लगाओ....
18
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
कपिल ने कहा
मैं श्रेष्ठी धन के घर पर जा रहा हूँ आशीर्वाद देने।
हाँ, हाँ ! तुम्हारा आशीर्वाद लेने नगरसेठ आधी रात में प्रतीक्षा कर रहे होंगे न? क्या बहाना बनाया है? इसे ही कहते हैं चोरी और सीनाजोरी |
पहरेदार ने कपिल की पीठ पर दो-चार डंडे बरसाये और लाकर कोतवाली में बंद कर दिया।
प्रातः कपिल को राजसभा में राजा जितशत्रु के समक्ष उपस्थित किया गया। सिपाही कपिल को लेकर राजसभा में आये। कपिल शर्म के मारे नीची आँखें किये हुए खड़ा था। राजा ने कपिल की भोलीभाली सूरत देखी तो उस पर तरस आ गया। सोचा
फिर भी जोरदार आवाज
तृष्णा का जाल
में
पूछा
19
यह चोर तो नहीं हो सकता। आँखों में शर्म है, चेहरा भी कितना कोमल और निर्दोष है इसका।
रात को किसलिए घूम रहे थे ? कौन हो तुम? ध्यान रखो, सब सच-सच बताना। यदि झूठ बोले तो मृत्युदण्ड की सजा मिलेगी....
www.jalnelibrary.org
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
कपिल ने हाथ जोड़कर कहा
महाराज ! मैं कौशाम्बी निवासी राजपुरोहित काश्यप
का पुत्र कपिल हूँ।
तृष्णा का जाल क्या? कौशाम्बी के
| जितशत्रु ने कहाराजपुरोहित का पुत्र
| राजपुरोहित का पुत्र होकर और चोर....
चोरी करने निकला था? क्या ?
क्या कौशाम्बी के चोरों को श्रावस्ती ही अच्छी लगी?
क्या?
apoCOccou
पूरी रामसभा आश्चर्य के साथ उसे देखने लगी।
कपिल बोला-
महाराज ! मैं विद्याध्ययन के लिए आया । | कपिल ने आदि से अन्त तक आपबीती था, परन्तु एक दास-कन्या के प्रेम-जाल में | सुनाकर कहाफँस गया, यही मेरी दुर्गति का कारण है।
महाराज ! इस प्रेम-जाल ने ही मुझे मैं चोर नहीं, एक पागल प्रेमी हूँ।
फँसाया है। मैं राज्य का, गुरु का, माता का, युवक ! तुम्हारी
सभी का अपराधी हूँ। आप जो चाहें मुझे दण्ड कहानी तो बड़ी रोचक
दीजिए, ताकि मैं पापमुक्त हो सकूँ। लगती है, सुनाओ
क्या बात है?
POOR
Oncoloco
Oworcaron
20
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
कपिल की कथा सुनकर राजा जितशत्रु का हृदय पसीज उठा। उसने कहायुवक ! तुम्हारी करुण कथा सुनकर तो हमें भी दया आ रही है। फिर तुमने निःसंकोच सत्य बोला। इस पर भी हम प्रसन्न हैं। तुम्हें दो मासा सोना चाहिए था न? चलो, अब तुम जितना सोना चाहो माँग लो !
लक
तृष्णा का जाल
क्या माँगूँ, कितना
कपिल, ऐसा अवसर बार-बार नहीं आयेगा। आज राजा प्रसन्न है तो इतना माँग ( माँगूँ ? ले कि फिर दुबारा माँगना ही न पड़े......
उसकी आशाओं को पंख लग गये। वह राजा ने कहाखड़ा खड़ा सोचता रहा
| कपिल आश्चर्य के साथ देखने लगाहें ! यह क्या, दंड के | बदले पुरस्कार ! कहीं मेरा उपहास तो नहीं कर रहे हैं सब लोग?
युवक ! तुम चुप क्यों हो? हमने कहा न ! तुम जो चाहो वह माँग लो, मिलेगा।
21
नहीं, नहीं, सत्य के साथ कभी मजाक नहीं होता। अब तो मैं जो माँगूँगा वही मिलेगा...क्या माँगूँ?
Sood
महाराज ! मुझे सोचने के लिए
ठीक है, सामने उद्यान है वहाँ बैठकर सोच लो।
कुछ समय चाहिए।
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
कपिल राजसभा के सामने ही उद्यान में एक अशोक वृक्ष की फिर उसकी कल्पना ऊँची उड़ती है। छाया में बैठ गया और सोचने लगा
जब धन मिल जायेगा तो कपिला के साथ मेरा विवाह हो जायेगा। फिर तो भवन, वाहन के लिए भी धन की जरूरत होगी.... एक ... स्वर्ण मुद्राएँ।
कपिल स्वप्न-लोक में पहुँच गया
क्यों न राजा से एक छोटा-सा राज्य माँग लूँ। फिर कमाने का झंझट ही नहीं रहेगा।
एक लाख से भी क्या होगा? एक करोड़, नहीं-नहीं सवा करोड़ मुद्राएँ माँग लूँ। इतना धन ठीक होगा.....
फिर सोचता है
22
नहीं, यह अपर्याप्त है फिर भी बड़े राजाओं का भय बना रहेगा? क्यों न इसी राज्य का पूरा राज-सिंहासन माँग लूँ।
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल सोचते-सोचते सहसा कपिल के विचारों को झटका लगा
मूर्ख कपिल, क्या माँग रहा है, जो तुझे दे रहा है तू उसे ही हड़पना चाहता है, छि: छिः कृतघ्न !
LJLJI
| कपिल को जैसे अनुभव होने लगा-वह तृष्णा के भँवर-जाल में फँसकर गोते खा रहा है। कई बड़े-बड़े मगरमच्छ उसे निगलने को मुँह बांये खड़े हैं।
(GMAIVINUTww
तृष्णा
IMATREAMIRANE
लालच
अहंकार
कपिल चौंक गया
200 तृष्णा का कोई पार नहीं।।
यदि समूचे संसार का धन वैभव भी मिल गया तो भी मेरा मन नहीं भरेगा।
Ve
ATVGn
CEO
AJM
MARG
23
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
उसे दीखता है सोने-चाँदी के बड़े-बड़े ढेर लगे हैं। कपिल उनके चारों तरफ तेली की घानी से बँधे बैल की तरह चक्कर काट रहा है।
वह आँख मूँदकर अपने भीतर निहारने लगा। एक दृश्य उसके सामने आया -अग्नि-कुण्ड में जलती हुई अग्नि में एक व्यक्ति घी डाल रहा है, अग्नि को बुझाने के लिए। परन्तु अग्नि और अधिक प्रज्वलित हो रही है। जैसे-जैसे वह घी डालकर सोचता है-अब अग्नि-देवता शान्त हो जायेगा किन्तु अग्नि और प्रदीप्त हो उठी। जा
कपिल सोचता है
Do
कामना
मेरे मन के भीतर लोभ की यही अग्नि जल रही है। धन वैभव की चाह से यह कभी शान्त नहीं होगी.....
torean
0000
4.
WWE
24
JT
कुछ इलफलल
MAPAS
44346
aaja
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
तभी एक दूसरा दृश्य सामने आता है। आकाश में उड़ती एक चील माँस के टुकड़े पर झपटकर चोंच में पकड़ती है।
वह आकाश में उड़ी कि कई बड़े-बड़े गिद्ध उसका पीछा करने लगे, उस पर झपटने लगते हैं। तीखी चोंच मार-मारकर उसे घायल कर रहे हैं।
आकांक्षा
चील लहूलुहान हो गई। तभी उसके मुँह से माँस का | टुकड़ा गिर गया। नीचे गिद्ध-मंडली माँस-पिंड पर टूट पड़ी, घायल चील एक तरफ शान्त-सी बैठी है।
CH
सांसारिक लालसा
लोभ
25
दुःख
कपिल के मन को झटका-सा लगा-बस, शान्ति का सूत्र हाथ आ गया।
'ग्रहण करने में भय है, छोड़ने में शान्ति ! त्याग बिना सुख नहीं।
manar
1000
DOL
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
कपिल सोचता है
जिस धन को पाने की तृष्णा ने मुझे इतना तड़पाया है। वह धन आने पर कितना
परेशान करेगा?
नहीं ! मुझे कुछ नहीं । चाहिए। धन से सुख नहीं, सुख तो मन से उपजेगा।
C
कपिल ने इच्छाओं पर लगाम डाल दी।
काफी देर हो जाने पर भी कपिल वापस दरबार में नहीं आया तो राजा ने कोतवाल को कहा
युवक कहाँ गया? अब तक उसने सोचा नहीं ! उससे कहो, जो माँगना है
माँग ले।
कोतवाल उद्यान में आया, कपिल तो आँखें मूंदे शान्त स्थिर बैठा है। कोतवाल ने पुकारा
अरे ब्राह्मण कुमार ! उठो, कुछ माँग लो, महाराज प्रतीक्षा,
कर रहे हैं।
SAR
कपिल अपने विचारों में ही स्थिर था। वह नहीं उठा।
26
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोतवाल ने वापस आकर राजा से कहा
कपिल, देखो विलम्ब
हो रहा है, जो माँगना है झट से माँग लो।
moly
राजा स्वयं उठा, उद्यान में आकर पुकारा। परन्तु कपिल तो अपने आप में खोया था। उसने सुना ही नहीं। राजा ने निकट आकर उसे झकझोरा-.
MAN
0000
तृष्णा का जाल महाराज ! वह तो न हिलता है, न डुलता है। कुछ उत्तर भी नहीं दे रहा है।
Jew
ANG
राजा एक आशंका से काँप गया
राजा के झकझोरने से कपिल जैसे योगनिद्रा से उठा हो, उसके चेहरे पर अपूर्व शान्ति और तेज | दमक रहा था। प्रसन्न भाव से उसने कहाअरे, तुम्हारी जो इच्छा क्या? कुछ नहीं ! हो वही माँग लो। मैं दूँगा, अवश्य दूँगा।
राजन् ! अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।
क्या सोच रहा होगा? कहीं वह पूरा राज्य ही न माँग ले, फिर क्या होगा?
27
129
Gul
P
www
kwwwww wa
A
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल राजन् ! अब कोई इच्छा नहीं रही। मुझे वह धन मिल गया जिसे पाकर मनुष्य परम सुखी हो जाता है।
कौन-सा धन है वह?
संतोष धन ! संयम धन ! समूचा संसार तृष्णा के चक्कर में फँसा है। तृष्णा ही मनुष्य को भटकाती है। नागिन-सी डसती रहती)
है। मैंने तृष्णा को जीत लिया।
PROATIT
राजा कपिल के निकट आकर उसका शान्त मुख हाँ राजन् ! अब मुझे संसार का देखने लगा।
समस्त वैभव भी तुच्छ लग रहा
है। संतोष का परम धन पा लिया क्या कह रहे हो
है मैंने। जहाँ इच्छा है,वहाँ युवक? तुमने तृष्णा
दुःख है। इच्छा को जीतना को जीत लिया?
ही सुख का मार्ग है।
soooooo
koooooooo
28
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
तभी आकाश से देवताओं ने फूल बरसाये। देवगण आकर चरणों में नमस्कार करने लगे
YAAD
देवताओं ने कपिल को मुनि वेष प्रदान किया। वन्दना करने लगेधन्य है आपको। जिस तृष्णा 'ने चक्रवर्ती सम्राट् और इन्द्र महाराज को भी संतप्त किया है। आपने उसका नाश कर दिया।
wm
हे कपिल कुमार ! आपने अपनी इच्छाओं पर संयम करके जो अद्भुत कार्य किया है हम उसका अभिनन्दन करते हैं।
Ge
M
29
--
1
तृष्णा को जीतकर कपिल मुनि बन गये।
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
कथा प्रवाह
तृष्णा को जीतकर कपिल मुनि बन गये। तब सामने उपस्थित राजा एवं सभी सभासदों ने उनको नमस्कार कर कहा-हे तृष्णाजयी त्यागमूर्ति ! आपने कैसे अपनी इच्छाओं को जीता, हमें भी इसका मार्ग बताइए। कपिल मुनि ने अपनी कहानी सुनाकर कहा-विज्ञजनो ! मैं कौशाम्बी के राजपुरोहित का अनपढ़ पुत्र था। विद्याध्ययन के लिए श्रावस्ती के महापण्डित इन्द्रदत्त के पास आया। यहाँ पर श्रेष्ठी शालिभद्र के आवास पर मेरी भोजन और शयन की व्यवस्था थी। यहीं पर एक दास-कन्या के स्नेह में बँध गया। उसकी मनोकामना पूर्ति के 0 लिए आधी रात में दो मासा सोना लेने धनश्रेष्ठी के घर जाने को निकला। पहरेदारों ने चोर समझकर पकड़ लिया और महाराज ने मुझे निर्दोष मानकर मन इच्छित माँगने को कहा। मेरी तृष्णा बढ़ने लगी।
दो मासा सोने से एक तोला, फिर हजार, लाख, कोटि स्वर्ण-मुद्रा र माँगने को मन ललचाया। तृष्णा बढ़ती गयी। राम-सिंहासन माँगने की ललक उठी। तभी मेरे अन्तःचक्षु खुले। कपिल ! तू चाहे जितना माँग ले, तेरी तृष्णा आगे से आगे बढ़ती जायेगी। जलती अग्नि में जितना घी डालो अग्नि शान्त नहीं होगी, अधिक प्रज्वलित होगी। ईंधन डालना बन्द करो, तभी अग्नि शान्त होगी....बस, मैंने इच्छा पर अंकुश लगाया, तृष्णा शान्त हो गई। मन की आतुरता मिट गई। अब किसी भी वस्तु की इच्छा नहीं रही। मेरा मन शान्त है, प्रसन्न है। न भय है, न चिन्ता, न उद्वेग। जो शान्ति का मार्ग मुझे मिला है, आप भी उस पर चल सकते हैं।
30
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
-कपिल मुनि की आत्मकथा सुनकर अनेक लोगों के मन की आँखें खुलीं। उन्हें भी तृष्णा पर विजय पाने का संतोष रूपी मार्ग मिल गया। -वहाँ से चलकर कपिल मुनि नगर से दूर सुनसान खंडहरों में जाकर ध्यानस्थ हो गये। वे निर्भय थे, भय का कोई कारण ही उनके पास नहीं था। रात्रि के गहन अंधकार में चोरों की एक टोली वहाँ आई। अपने शून्य खंडहरों में किसी अज्ञात व्यक्ति को खड़ा देखकर उन्होंने पूछाकौन हो तुम? -कपिल मुनि ने कहा-मैं श्रमण हूँ। -चोर-यहाँ क्यों खड़े हो? -कपिल मुनि-आत्मा के भीतर छुपे असीम धन को पाने। -चोर-वह कौन-सा धन है? क्या हमें भी बता सकते हो? -कपिल मुनि-क्यों नहीं ! वह धन तो ऐसा है जिसे पाने के बाद चक्रवर्ती सम्राट् का वैभव भी तुच्छ है। ऐसा धन पाने के बाद व्यक्ति दुःख, चिन्ता, शोक से मुक्त हो जाता है। अगले जन्म में भी उसे दुर्गति का भय नहीं रहता। -यह सुनकर चोरों का सरदार बलभद्र आगे आया। बोला-श्रमण . क्या तुम सच कह रहे हो? ऐसा गूढ़ धन तुम्हारे पास है? कपिल मुनि-हाँ, मेरे पास है, तुम्हें भी मिल सकता है, तुम्हारे पास भी है। -सरदार-श्रमण ! तुम्हारी बातें बड़ी मनोरंजक लग रही हैं। हमें भी बताओ, ऐसा वह धन कौन-सा है? कैसे, कहाँ मिलेगा, जिसे पाकर हम कभी दुःखी नहीं होंगे?
8000
31
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृष्णा का जाल
-कपिल मुनि ने कहा-तुम सब शान्तिपूर्वक सुनो, मैं सुनाता हूँ। मुनि छ ने अपने मधुर स्वर में गाना प्रारम्भ किया-अधुवे असासयमि.....इस अध्रुव चंचल और नाशवान संसार में जहाँ चारों ओर दुःख ही दुःख है। वह कौन-सा कर्म है जिसे करने से मनुष्य की दुर्गति न हो, दुःख न हो? -मुनि का स्वर इतना भावपूर्ण था कि सभी चोर तन्मय होकर सुनने ही नहीं लगे, मस्त होकर साथ-साथ ताल-लयपूर्वक गाने-नाचने भी लग गये। -कपिल मुनि का यह अध्यात्म उपदेश सुनकर चोरों ने चोरी कर्म तो छोड़ा ही, अपने धन, परिवार आदि को त्यागकर कपिल मुनि के शिष्य बन गये और संसार को तृष्णा से मुक्ति पाने का सच्चा मार्ग बताने लग गये। -कपिल मुनि छह मास तक साधना, तपस्या करने के पश्चात् केवली बन गये। उनके द्वारा चोरों को दिया गया वह उपदेश उत्तराध्ययनसूत्र ८ में संगृहीत है, जिसे आज भी पढ़-सुनकर वैराग्य का उदय होता है।
समाप्त
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
____प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के प्रकाशनों की सूची
14.
क्रमांक कृति नाम
कल्पसूत्र सचित्र राजस्थान का जैन साहित्य प्राकृत स्वयं शिक्षक आगम तीर्थ स्मरण कला जैनागम दिग्दर्शन जैन कहानियाँ जाति स्मरण ज्ञान Half a Tale
गणधरवाद 11. Jain Inscriptions of Rajasthan 12. Basic Mathematics 13.
प्राकृत काव्य मंजरी
महावीर का जीवन सन्देश 15. Jain Political Thought 16. Studies of Jainism
जैन, बौद्ध और गीता का साधना मार्ग
जैन, बौद्ध और गीता का समाज दर्शन 19-20. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन 21.
जैन कर्म-सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन हेम-प्राकृत व्याकरण शिक्षक
आचारांग चयनिका 24. वाक्पतिराज की लोकानुभूति
प्राकृत गद्य सोपान अपभ्रंश और हिन्दीनीलांजना चन्दनमूर्ति Astronomy and Cosmology
Not Far From The River 31-32. उपमिति-भव-प्रपंच कथा 33. समणसुत्तं चयनिका
मिले मन भीतर भगवान 35. जैन धर्म और दर्शन - 36. Jainism 37. दशवैकालिक चयनिका
Rasaratna Samucchaya 39. नीतिवाक्यामृत (English also)
सामायिक धर्म : एक पूर्ण योग गौतमरास : एक परिशीलन अष्टपाहुड चयनिका
Ahimsa 44. वज्जालग्ग में जीवन मूल्य
गीता चयनिका 46. ऋषिभाषित सूत्र (English also) 47-48. नाड़ी विज्ञान एवं नाड़ी प्रकाश 49. ऋषिभाषित : एक अध्ययन
उववाइय सुत्तं (English also) 51. उत्तराध्ययन चयनिका
समयसार चयनिका परमात्मप्रकाश एवं योगसार चयनिका
Rishibhashit: A Study 55. अर्हत् वन्दना 56. राजस्थान में स्वामी विवेकानन्द, भाग 1 57. आनन्दघन चौबीसी 58. देवचन्द्र चौबीसी सानुवाद 59. सर्वज्ञ कथित परम सामायिक धर्म 60. दुःख-मुक्ति : सुख-प्राप्ति
गाथा सप्तशती 62. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 1 63. Yogashastra 64. जिनभक्ति
N000NON-ON AAAAAA00000000000OINNNNNNNNN
लेखक/सम्पादक सं. म. विनयसागर सं. म. विनयसागर डॉ. प्रेमसुमन जैन डॉ. हरिराम आचार्य अ. मोहन मुनि डॉ. मुनि नगराज उ. महेन्द्र मुनि उ. महेन्द्र मुनि Dr. Mukund Lath म. विनयसागर Ramvallabh Somani Prof. L. C. Jain डॉ. प्रेमसुमन जैन काका कालेलकर Dr.G.C. Pandey Dr. T.G. Kalghatgi डॉ.सागरमल जैन डॉ. सागरमल जैन डॉ. सागरमल जैन डॉ. सागरमल जैन डॉ. उदयचन्द जैन डॉ. के. सी. सोगानी डॉ. के. सी. सोगानी डॉ.प्रेमसुमन जैन डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन गणेश ललवानी गणेश ललवानी Prof. L. C. Jain David Ray सं. म. विनयसागर डॉ. के. सी. सोगानी विजयकलापूर्ण सूरि गणेश ललवानी D. D. Malvania डॉ. के.सी. सोगानी Dr. J.C. Sikdar डॉ. एस.के. गुप्ता विजयकलापूर्ण सूरि म. विनयसागर डॉ. के. सी. सोगानी Surendra Bothara डॉ.के.सी. सोगानी डॉ. के. सी. सोगानी सं.म. विनयसागर जे.सी. सिकदर डॉ. सागरमल जैन अ. गणेश ललवानी डॉ. के.सी. सोगानी डॉ. के.सी. सोगानी डॉ.के.सी.सोगानी Dr. Sagarmal Jain म.चन्द्रप्रभसागर पं. झाबरमल शर्मा भंवरलाल नाहटा
अ.प्र. सज्जनश्री जी विजयकलापूर्ण सूरि कन्हैयालाल लोढा अ. डॉ. हरिराम आचार्य अ. गणेश ललवानी Ed. Surendra Bothara अ. भद्रंकरविजय गणि
मूल्य 200.00 50.00 15.00 10.00 15.00 20.00
4.00
3.00 150.00 50.00 70.00 15.00 16.00 20.00 40.00 100.00 20.00 16.00 140.00 14.00 16.00 25.00 12.00 16.00 30.00 12.00 20.00 15.00 50.00 300.00 30.00 30.00
9.00 30.00 25.00 15.00 100.00 10.00 15.00 20.00 30.00 20.00
30.00 100.00 30.00 30.00 100.00
25.00 16.00 10.00 30.00
3.00 75.00 30.00 60.00 40.00 30.00 100.00 100.00 100.00 30.00
45.
50.
52. 53. 54.
61.
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
67.
73. 74. 75.
77.
79.
००००००00000
97.
65. सहजानन्दघन चरियं
भंवरलाल नाहटा
20.00 66. आगम युग का जैन दर्शन
पं. दलसुख मालवणिया
100.00 खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची
भंवरलाल नाहटा, म. विनयसागर
50.00 68. आयार सुत्तं
अम.चन्द्रप्रभसागर
40.00 69. सूयगड सुतं
आममलितप्रभसागर
30.00 70. प्राकृत धम्मपद (English also)
'सं. डॉ. भागचन्द जैन
150.00 71. नालाडियार (Tamil, English, Sanskrit, Hindi
सं.म. विनयसागर
120.00 72. नन्दीश्वर द्वीप पूजा
'सेम. विनयसागर
15.00 पुनर्जन्म का सिद्धान्त
डॉ. एस. आर. व्यास
50.00 समवाय सुत्तं
अ.म.चन्द्रप्रभसागर
100.00 जैन पारिभाषिक शब्दकोश
म.चन्द्रप्रभसागर
10.00 76. जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित्र
म. राजेन्द्र मुनि शास्त्री
100.00 त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 2
अ. गणेश ललवानी
60.00 78. राजस्थान में स्वामी विवेकानन्द, भाग 2
पं. झाबरमल शर्मा
100.00 त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 3
अ.गणेश ललवानी
100.00 80. दादा दत्त गुरु कॉमिक्स
म. ललितप्रभसागर
5.00 81. भक्तामर : एक दिव्य दृष्टि
डॉ. साध्वी दिव्यप्रभा
51.00 82. दादागुरु भजनावली
सं. म. विनयसागर
150.00 83. जिनदर्शन चौबीसी (सचित्र)
सं. म. विनयसागर
50.00 84. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 4
अ. गणेश ललवानी
80.00 Saman Suttam, Part 1
Tr. Dr. K. C. Sogani
75.00 Jainism in Andhra Pradesh
Dr Jawaharlal Jain
450.00 रहनेमि अध्ययन (English also)
सं. डॉ. बी. के. खडबडी
20.00 उपमिति भव प्रपंच कथा (मूल)
सं. विमलबोधिविजय
200.00 मध्य प्रदेश में जैन धर्म का विकास
डॉ. मधूलिका वाजपेयी
130.00 उपाध्याय म. देवचन्द्र जीवन, साहित्य और विचार
म. ललितप्रभसागर
100.00 बरसात की एक रात
गणेश ललवानी
45.00 93. अरिहंत
डॉ. साध्वी दिव्यप्रभा
100.00 योग प्रयोग अयोग
डॉ. साध्वी मुक्तिप्रभा
100.00 95. प्रबन्ध कोश का ऐतिहासिक विवेचन
डॉ. प्रवेश भारद्वाज
100.00 96. पंचदशी एकांकी संग्रह
गणेश ललवानी
100.00 Jainism in India
Ed. Ganesh Lalwani
100.00 98. ज्ञानसार सानुवाद (English also)
अ.गणि मणिप्रभसागर
80.00 विज्ञान के आलोक में जीव-अजीव तत्त्व
सं, कन्हैयालाल लोढ़ा
40.00 100. ज्योति कलश छलके
म. ललितप्रभसागर
40.00 101. जैन कथा साहित्य : विविध रूपों में
डॉ. जगदीशचन्द्र जैन
100.00 102. Neelkeshi
Ed. Prof. A Chakravarty
100.00 104. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 5
अ. गणेश ललवानी
120.00 105. Jain Aachar : Siddhant Aur Swarup
A Devendra Muni
300.00 106. सकारात्मक अहिंसा
सं. कन्हैयालाल लोढ़ा
110.00 107. द्रव्य विज्ञान
डॉ. साध्वी विद्युत्प्रभा
80.00 108. अस्तित्व का मूल्यांकन
डॉ. साध्वी मुक्तिप्रभा
100.00 109. दिव्यद्रष्टा महावीर
डॉ. साध्वी दिव्यप्रभा
51.00 110. जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
डॉ. सागरमल जैन
100.00 112.. श्री स्वर्णगिरि : जालोर
भंवरलाल नाहटा
60.00 113. Philosophy and Spirituality of Shrimad Rajchandra Dr. U. K. Pungalia
180.00 114. कल्याण मन्दिर (यन्त्र विधान सहित)
डॉ. साध्वी मुक्तिप्रभा
100.00 115. सचित्र भक्तामर स्तोत्र
श्रीचन्द सुराना 'सरस'
325.00 116. Studies in Jainology Prakrit Literature and Languages Dr B.K. Khadabadi
300.00 117. सचित्र पार्श्वकल्याण कल्पतरु
श्रीचन्द सुराना 'सरस'
30.00 प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर की चित्रकथाओं की प्रकाशन सूची 1. क्षमादान
2. भगवान ऋषभदेव (अप्राप्य)3. णमोकार मंत्र के चमत्कार 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ 5. भगवान महावीर की बोध कथाएँ 6. बुद्धिनिधान अभयकुमार 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ (अप्राप्य) 8. किस्मत का धनी धन्ना 9-10. करुणानिधान भगवान महावीर 11. राजकुमारी चन्दनबाला 12. सती मदनरेखा (अप्राप्य) 13. सिद्धचक्र का चमत्कार (अप्राप्य) 14. मेघकुमार की आत्मकथा 15. युवायोगी जम्बकमार 16. राजकमार श्रेणिक
17. भगवान मल्लीनाथ 18. सती अंजना सन्दरी 20. भगवान नेमिनाथ 21. भाग्य का खेल
22. करकण्डू जाग गया 23. जगतगरु श्री हीरविजय सरि 24. वचन का तीर 2 5. अजातशत्र कणिक
26. पिंजरेका पंछी 27. धरती पर स्वर्ग
28. नन्द मणिकार . 29. कर भला हो भला (प्रत्येक पुस्तक का मूल्य : 17.00 रुपया मात्र)
पुस्तक क्रमांक 9-10 का मूल्य :34.00 रुपया मात्र) पुस्तक-प्राप्ति स्थान
प्राकृत भारती अकादमी 3826, मोतीसिंह भोमियो का रास्ता
13-ए, कैलगिरि हॉस्पिटल रोड, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302003 (राज.) फोन : 561876 । जयपुर-302 017 (राज.) फोन : 524827,524828
99.
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
आप और हम सब जानते हैं :
* बीड़ी, सिगरेट का एक कस हमारी जिन्दगी को पाँच मिनट कम कर
देता है।
*
दुर्व्यसनों को छोड़िए: दुःखों से छूटिए)
*
शराब का एक घूँट हमारी नसों और फेंफड़ों को जलाकर कमजोर कर देता है।
* तम्बाकू, गुटका, पान-मसाला की एक-एक चुटकी हमारे शरीर में कैंसर जैसे महारोग का जाल बिछा देती है।
इन दुर्व्यसनों की लत के शिकार बनकर हम केवल अपनी जिन्दगी की बाज़ी ही नहीं हारते, अपितु अपने परिवार और प्यार भरे संसार को भी उजाड़ देते हैं। समाज और राष्ट्र के विकास में भी घुन लगा देते हैं ।
तन की हानि, मन की हानि, जीवन की बर्बादी । दुर्व्यसनों में बँधा हुआ तू, कैसी यह आजादी ॥
आपका हित चिन्तक, शाकाहार एवं व्यसन मुक्ति का पैरोकार
जहाँ विश्वास ही परम्परा है
निवेदक :
शाकाहार एवं व्यसनमुक्ति कार्यक्रम के सूत्रधाररतनलाल सी. बाफना ज्वेलर्स
" नयनतारा”, सुभाष चौक, जलगांव - ४२५००१ फोन : २३९०३, २५९०३, २७३२२, २७२६८
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________ जैनधर्म के प्रसिद्ध विषयों पर आधारित रगीन सचित्र कथाए: दिवाकर चित्रकथा जैनधर्म, संस्कृति, इतिहास और आचार-विचार से सीधा सम्पर्क बनाने का एक सरलतम, सहज माध्यम / मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धक, संस्कार-शोधक, .रोचक सचित्र कहानियाँ। 1. क्षमादान 2. भगवान ऋषभदेव 3. णमोकार मन्त्र के चमत्कार 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ 5. भगवान महावीर की बोध कथायें 6. बुद्धिनिधान अभयकुमार 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ 8. किस्मत का धनी धन्ना 9-10. करुणानिधान भ. महावीर 11. राजकुमारी चन्दनबाला प्रसिद्ध कड़ियाँ 12. सती मदनरेखा 13. सिद्धचक्र का चमत्कार 14. मेघकुमार की आत्मकथा 15. युवायोगी जम्बूकुमार 16. राजकुमार श्रेणिक 17. भगवान मल्लीनाथ 18. महासती अंजनासुन्दरी 19. करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) 20. भगवान नेमिनाथ 21. भाग्य का खेल 22. करकण्डू जाग गया 23. जगत् गुरु हीरविजय सूरि 24. वचन का तीर 25. अजातशत्रु कूणिक 26. पिंजरे का पंछी 27. धरती पर स्वर्ग 28. नन्दमणिकार 29. कर भला हो भला 30. तुष्णा का फल 31. पाँच रत्न 55 पुस्तकों के सैट का मूल्य 900.00 रुपया। 33 पुस्तकों के सैट का मूल्य 540.00 रुपया। वचन का रिदमणिकार। गवान नौमिश्रेणिक COMतिसागति) युवायोगी चितामणि पार्श्वनाथ भगवान अषभदेव भगवान महावीर Re Rata चित्रकथाएँ मँगाने के लिए अंदर दिये गये सदस्यता फॉर्म को भरकर भेजें।