SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कपिल ने कहा मैं श्रेष्ठी धन के घर पर जा रहा हूँ आशीर्वाद देने। हाँ, हाँ ! तुम्हारा आशीर्वाद लेने नगरसेठ आधी रात में प्रतीक्षा कर रहे होंगे न? क्या बहाना बनाया है? इसे ही कहते हैं चोरी और सीनाजोरी | पहरेदार ने कपिल की पीठ पर दो-चार डंडे बरसाये और लाकर कोतवाली में बंद कर दिया। प्रातः कपिल को राजसभा में राजा जितशत्रु के समक्ष उपस्थित किया गया। सिपाही कपिल को लेकर राजसभा में आये। कपिल शर्म के मारे नीची आँखें किये हुए खड़ा था। राजा ने कपिल की भोलीभाली सूरत देखी तो उस पर तरस आ गया। सोचा फिर भी जोरदार आवाज Jain Education International तृष्णा का जाल में पूछा 19 यह चोर तो नहीं हो सकता। आँखों में शर्म है, चेहरा भी कितना कोमल और निर्दोष है इसका। रात को किसलिए घूम रहे थे ? कौन हो तुम? ध्यान रखो, सब सच-सच बताना। यदि झूठ बोले तो मृत्युदण्ड की सजा मिलेगी.... For Private & Personal Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.002829
Book TitleTrushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadankunvar, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy