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________________ तष्णा का जाल नहीं, नहीं, आप पवित्र ब्राह्मण-पुत्र हैं। मैं दास-कन्या हूँ न ! आपको छूकर । अपवित्र कर दिया मैंने। थोड़ी ही देर बाद कपिला हाथ में कुछ गर्म पेय लिये आयी लीजिए ! यह गर्म पेय पी लीजिये। ज्वर उतर जायेगा। FOKA YEN EVAPALI तीन-चार दिन तक कपिल ज्वरग्रस्त रहा। कपिला और वह झट से कक्ष के बाहर चली गई। की योग्य देखभाल से वह स्वस्थ हो गया। एक दिन कपिला जब उसके लिए भोजन लेकर आई| कपिला शर्माकर नीचे देखने लगी। कपिल ने उसका तो कपिल बार-बार उसकी तरफ देखता रहा। कपिला हाथ छुआ और कहाने भोजन पात्र रखकर कहा तुम्हारा यह स्नेह कोई आप यों क्यों देख रहे हैं? कपिला, तुम कितनी अच्छी हो ! | पिछले जन्म का ऋणानुबंध भोजब ठंडा हो रहा है? | तुम्हारा सहन सुकुमार सौंदर्य लगता है। पिछले जन्म में भोजन कीजिये न? और विनम्र सेवा भाव देखकर अवश्य तुम मेरी तो लगता है तुम दास-कन्या नहीं कोई देव-कन्या हो। MYNORN OPal Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002829
Book TitleTrushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadankunvar, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
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