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तृष्णा का जाल कपिला हाथ छुड़ाकर दूर हट गई
इस प्रकार दास-कन्या कपिला की सेवा और नहीं, नहीं, ऐसा नहीं कहो। मैं
अपनत्व ने छात्र कपिल का मन मोह लिया। तो एक भाग्यहीन दास-कन्या हूँ।
धीरे-धीरे दोनों में परस्पर गहरा प्रेम हो गया। मुझे पता नहीं मेरे माता-पिता कोई क्यों नहीं, क्या
तापक
कपिला ! मैं तुम्हारे कौन हैं, कहाँ हैं? इस संसार
मुझे भी तुम अपना
जीवन के अन्धकार में कोई नहीं है मेरा।
नहीं समझती?
को दीपक की भाँति दूर कर दूंगा।
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एक दिन कपिल गुरुकुल से घर पर आया तो कपिला उदास बैठी थी। उदास मुाया चेहरा देखकर कपिल ने पूछा
मैं जब भी आता हूँ तब कल नगर में मुस्कराकर स्वागत करती हो, / दास-महोत्सव है, आज यह रोनी-सी सूरत लिये क्यों मेरी सभी सहेलियाँ खड़ी हो? क्या चिन्ता है तुम्हें? जायेंगी।
मैं कैसे माऊँ? मेरे पास न तो नये सुन्दर वस्त्र हैं और न ही कुछ खरीदने के लिए धन है। अनाथ दास-कन्या को उत्सव
से क्या लेना-देना?
तुम नहा जाआगा?
पद
AVORTOINT
AMUDRUADI
DYA
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