SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | एक बार वर्षा ऋतु में कपिल को ज्वर आ गया। जब वह दुपहर तक कक्ष से बाहर नहीं आया तो दास-कन्या कपिला को चिन्ता हुई। उसने कक्ष के अन्दर आकर देखा, तो | कपिल ज्वर में पड़ा बुदबुदा रहा था। कपिला ने पुकारा टुक आज आप गुरुकुल नहीं गये। तृष्णा का जाल VAN Jain Education International Jun | कपिला के हाथ का स्पर्श पाकर कपिल का हृदय तरंगित हो उठा। उसने कहाकपिला, तुम्हारे कोमल-कोमल हाथ का स्पर्श कितना सुखद लग रहा है? कपिल आवाज सुनकर चौंक गया- अपने वस्त्र आदि ठीक करता हुआ वह जैसे ही उठा, तेज चक्कर आया और वह गिर पड़ा। कपिला ने झट से उठाया आपको चोट तो नहीं लगी? ओह ! आपका शरीर तो तप रहा है। तेज ज्वर है। 13 For Private & Personal Use Only WWW | कपिला ने हाथ का सहारा देकर उसे बिस्तर पर बिठाया। कपिला ने चौंककर अपना हाथ खींच लिया ओह ! भूल हो गयी ! क्षमा करें, मैंने आपको छू लिया। क्यों, क्या मैं चंडाल - पुत्र हूँ? मुझे छूना पाप है ? www.jainelibrary.org
SR No.002829
Book TitleTrushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadankunvar, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy