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तृष्णा का जाल
-कपिल मुनि ने कहा-तुम सब शान्तिपूर्वक सुनो, मैं सुनाता हूँ। मुनि छ ने अपने मधुर स्वर में गाना प्रारम्भ किया-अधुवे असासयमि.....इस अध्रुव चंचल और नाशवान संसार में जहाँ चारों ओर दुःख ही दुःख है। वह कौन-सा कर्म है जिसे करने से मनुष्य की दुर्गति न हो, दुःख न हो? -मुनि का स्वर इतना भावपूर्ण था कि सभी चोर तन्मय होकर सुनने ही नहीं लगे, मस्त होकर साथ-साथ ताल-लयपूर्वक गाने-नाचने भी लग गये। -कपिल मुनि का यह अध्यात्म उपदेश सुनकर चोरों ने चोरी कर्म तो छोड़ा ही, अपने धन, परिवार आदि को त्यागकर कपिल मुनि के शिष्य बन गये और संसार को तृष्णा से मुक्ति पाने का सच्चा मार्ग बताने लग गये। -कपिल मुनि छह मास तक साधना, तपस्या करने के पश्चात् केवली बन गये। उनके द्वारा चोरों को दिया गया वह उपदेश उत्तराध्ययनसूत्र ८ में संगृहीत है, जिसे आज भी पढ़-सुनकर वैराग्य का उदय होता है।
समाप्त
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