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________________ तृष्णा का जाल (कपिल केवली) संसार में गरीब इसलिए दुःखी है कि उनके पास जीवन निर्वाह के साधनों की कमी है, और धनवान इसलिए दुःखी है कि उसके पास भरपूर सुख-साधन होते हुए भी वह उनसे अधिक जुटाने के • लिए दिन-रात दौड़ लगा रहा है। मनुष्य के शरीर की भूख तो मिट सकती है, किन्तु मन की भूख कैसे मिटे ? मन का गड्ढा इतना गहरा है कि इसमें समूचे संसार की धन-सम्पदा भर दी जाये तब भी भर पाना मुश्किल है। इस मन के गड्ढे को भरने का एक ही उपाय है, इच्छाओं पर रोक लगाना । तृष्णा के घोड़े पर सन्तोष की लगाम लगाकर ही उसे वश में रखा जा सकता है। कपिल एक गरीब ब्राह्मण छात्र है। बहुत ही सीधा-सादा । किन्तु एक दास-कन्या के प्रेमजाल में फँस जाता है और उसके लिए केवल दो माशा सोना पाने के चक्कर में चोर समझकर पकड़ा जाता है। राजा उसकी सच्चाई पर प्रसन्न होकर मनचाहा माँगने का वचन देता है। कपिल की तृष्णा भड़क जाती है। सोचता है - क्या; कितना माँगूँ ताकि बार-बार नहीं माँगना पड़े। माँगने की दौड़ में वह राजा का पूरा राज्य ही माँगने की सोचता है, फिर भी मन सन्तुष्ट नहीं हुआ। अन्त में, भटकता हुआ कपिल का मन मोड़ लेता है और तृष्णा के जाल से निकलकर कुछ भी नहीं माँगने का संकल्प कर लेता है। तृष्णा के जाल से मुक्त होने की यह कहानी स्वयं भगवान महावीर ने सुनाई और हजारों श्रोताओं को इससे बोध मिला। इसी कहानी को चित्रमय रोचक संवादों में प्रस्तुत किया है, श्रमणसंघीय साध्वी श्री मदनकुंवर जी म. सा. ने । -महोपाध्याय विनयसागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस' लेखक : साध्वी श्री मदनकुंवर जी म. सा. सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' संयोजक : साध्वी श्री विजयश्री जी म. सा. चित्रण : श्यामल मित्र प्रबन्ध सम्पादक : संजय सुराना प्रकाशक दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002 दूरभाष : 351165, 51789 सचिव, प्राकृत भारती एकादमी, जयपुर 3826, यती श्यामलाल जी का उपाश्रय, मोतीसिंह भोमियों का रास्ता, जयपुर-302003 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) Jain Education International मुद्रण एवं स्वत्वाधिकारी संजय सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन, ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-2 के लिए : ग्राफिक्स आर्ट प्रेस, मथुरा में मुद्रित । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002829
Book TitleTrushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadankunvar, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
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