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तृष्णा का जाल सोचते-सोचते सहसा कपिल के विचारों को झटका लगा
मूर्ख कपिल, क्या माँग रहा है, जो तुझे दे रहा है तू उसे ही हड़पना चाहता है, छि: छिः कृतघ्न !
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| कपिल को जैसे अनुभव होने लगा-वह तृष्णा के भँवर-जाल में फँसकर गोते खा रहा है। कई बड़े-बड़े मगरमच्छ उसे निगलने को मुँह बांये खड़े हैं।
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तृष्णा
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लालच
अहंकार
कपिल चौंक गया
200 तृष्णा का कोई पार नहीं।।
यदि समूचे संसार का धन वैभव भी मिल गया तो भी मेरा मन नहीं भरेगा।
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