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तृष्णा का जाल
| राजपुरोहित सोमिल अब काश्यप के घर के सामने से ही चाँदी की पालकी में बैठकर गाजे-बाजे के साथ राजसभा में जाता। किसी उत्सव के दिन राजपुरोहित सोमिल अपने मित्र-परिवार व राजसेवकों के साथ राजसभा में जा रहा था।
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बाजों की आवाज सुनकर कपिल दौड़कर माँ के पास आया
माँ, माँ ! देखो न कैसी सुन्दर यात्रा निकल रही है।
यशा ऊपर गवाक्ष में खड़ी होकर शोभा यात्रा देखने लगी। उसने चाँदी की पालकी में राजपुरोहित को बैठे देखा तो उसकी आँखों में टपटप आँसू गिरने लगे, वह रोने लगी।
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