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कोतवाल ने वापस आकर राजा से कहा
कपिल, देखो विलम्ब
हो रहा है, जो माँगना है झट से माँग लो।
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राजा स्वयं उठा, उद्यान में आकर पुकारा। परन्तु कपिल तो अपने आप में खोया था। उसने सुना ही नहीं। राजा ने निकट आकर उसे झकझोरा-.
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तृष्णा का जाल महाराज ! वह तो न हिलता है, न डुलता है। कुछ उत्तर भी नहीं दे रहा है।
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राजा एक आशंका से काँप गया
राजा के झकझोरने से कपिल जैसे योगनिद्रा से उठा हो, उसके चेहरे पर अपूर्व शान्ति और तेज | दमक रहा था। प्रसन्न भाव से उसने कहाअरे, तुम्हारी जो इच्छा क्या? कुछ नहीं ! हो वही माँग लो। मैं दूँगा, अवश्य दूँगा।
राजन् ! अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।
क्या सोच रहा होगा? कहीं वह पूरा राज्य ही न माँग ले, फिर क्या होगा?
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