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तृष्णा का जाल
कपिल सोचता है
जिस धन को पाने की तृष्णा ने मुझे इतना तड़पाया है। वह धन आने पर कितना
परेशान करेगा?
नहीं ! मुझे कुछ नहीं । चाहिए। धन से सुख नहीं, सुख तो मन से उपजेगा।
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कपिल ने इच्छाओं पर लगाम डाल दी।
काफी देर हो जाने पर भी कपिल वापस दरबार में नहीं आया तो राजा ने कोतवाल को कहा
युवक कहाँ गया? अब तक उसने सोचा नहीं ! उससे कहो, जो माँगना है
माँग ले।
कोतवाल उद्यान में आया, कपिल तो आँखें मूंदे शान्त स्थिर बैठा है। कोतवाल ने पुकारा
अरे ब्राह्मण कुमार ! उठो, कुछ माँग लो, महाराज प्रतीक्षा,
कर रहे हैं।
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कपिल अपने विचारों में ही स्थिर था। वह नहीं उठा।
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