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तृष्णा का जाल
उसे दीखता है सोने-चाँदी के बड़े-बड़े ढेर लगे हैं। कपिल उनके चारों तरफ तेली की घानी से बँधे बैल की तरह चक्कर काट रहा है।
वह आँख मूँदकर अपने भीतर निहारने लगा। एक दृश्य उसके सामने आया -अग्नि-कुण्ड में जलती हुई अग्नि में एक व्यक्ति घी डाल रहा है, अग्नि को बुझाने के लिए। परन्तु अग्नि और अधिक प्रज्वलित हो रही है। जैसे-जैसे वह घी डालकर सोचता है-अब अग्नि-देवता शान्त हो जायेगा किन्तु अग्नि और प्रदीप्त हो उठी। जा
कपिल सोचता है
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कामना
मेरे मन के भीतर लोभ की यही अग्नि जल रही है। धन वैभव की चाह से यह कभी शान्त नहीं होगी.....
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कुछ इलफलल
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